गोरखपुर: प्राकृतिक कारणों से खेती को हुए नुकसान से देश में चावल के उत्पादन में भारी कमी हुई है. जिसे देखते हुए भारत सरकार ने चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है. इस कड़ी में भगवान बुद्ध के महाप्रसाद "काला नमक चावल" के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है. सरकार का मानना है कि दक्षिण भारत के कई राज्यों में आई बाढ़ और पूर्वोत्तर के राज्यों में सूखे जैसी उत्पन्न स्थिति से चावल की फसल को नुकसान हुआ है. भारत सरकार का मानना है कि ऐसे में अगर चावल बाहर के देशों में निर्यात होता रहा तो देश में दिक्कत आ जाएगी. लेकिन कृषि वैज्ञानिक ने इस चावल से प्रतिबंध हटाने के लिए भारत सरकार को पत्र लिखा है.
"काला नमक चावल" से प्रतिबंध हटाने के लिए लिखा पत्र
"काला नमक चावल" को पुनर्जीवित और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले अंतरराष्ट्रीय कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर रामचेत चौधरी ने भारत सरकार के इस कदम से हैरान हैं. उन्होंने कहा कि सरकार ने जो फैसला लिया है, वह ठीक ही होगा. लेकिन "काला नमक चावल" को प्रतिबंधित चावल की श्रेणी से बाहर रखा जा सकता था. वैज्ञानिक ने कहा कि उन्होंने भारत सरकार को पत्र लिखा है. जिसमें उन्होंने "काला नमक चावल" को निर्यात की तय की गई केटेगरी से बाहर कर इसके निर्यात को जारी रखने की मांग की है. इसके साथ ही 200 किसानों ने भी भारत सरकार से इस पर लगे प्रतिबंध को हटाने की मांग की है.
दुनिया का सर्वाधिक चावल उत्पादक देश
अंतरराष्ट्रीय कृषि वैज्ञानिक ने "काला नमक चावल" से प्रतिबंध हटने से होने वाले लाभ और अब तक हुए लाभ की भी चर्चा पत्र के माध्यम से की है. साथ ही भारत सरकार से "काला नमक चावल" के निर्यात से विदेशी मुद्रा के अर्जन की बात कही है. जिससे अन्य देशों से भारत को कई अन्य चीजों के आयात करने में आसानी होगी. कृषि वैज्ञानिक ने तर्क दिया है कि भारत दुनिया का सर्वाधिक चावल उत्पादक देश है. मौजूदा समय में इसका भंडारण भी देश के पास पर्याप्त है. लेकिन जो परिस्थितियां यहां हैं. उसको देखकर अगर सरकार ने प्रतिबंध लगाया है. तो इसके बावजूद भी "काला नमक चावल" प्रतिबंध की श्रेणी से बाहर आ सकता है. उन्होंने इसके लिए कहा कि निर्यात बोर्ड ने चावलों की 2 तरह की श्रेणी बनाई है. जिसमें बासमती चावल पहले पायदान पर आता है. बोर्ड ने एक निश्चित लंबाई और मोटाई के चावल को ही निर्यात करने को अनुमति दिया है. इसके अलावा अन्य प्रकार के चावल व्यापारी और अन्य एजेंसी अपने स्तर से निर्यात कर सकते हैं. लेकिन उत्पादन की घटी आशंका के बीच सरकार ने यह फैसला लिया है.