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51 हजार दीपों की रोशनी से नहाया गोरखपुर का सूरजकुण्ड धाम

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में सूरजकुण्ड धाम में 51 हजार दीप जलाए गए. गोरखपुर के सूरजकुण्ड धाम में पिछले 25 वर्षों से यह कार्यक्रम लगातार किया जाता रहा है. वहीं इस कार्यक्रम को लेकर यहां आने वाले श्रद्धालुओं में खासा उत्साह देखा गया.

देव दीपोत्सव

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Published : Oct 29, 2019, 9:27 AM IST

गोरखपुर:दीपावली से एक दिन पहले अयोध्या में 5 लाख 51 हजार दीप जलाकर विश्व रिकॉर्ड बनाया गया. ठीक उसी तरह दीपावली के दूसरे दिन गोरखपुर के सूरजकुण्ड धाम में भी 51 हजार दीप जलाए गए. सीएम के शहर में इस देव दीपोत्सव कार्यक्रम को लेकर काफी उत्साह देखने को मिला. यहां के लोगों ने बड़ी संख्या में दीपोत्सव कार्यक्रम में शामिल होकर खुद को इसका भागीदार बनाया.

सूरजकुण्ड धाम पर मनाया गया देव दीपोत्सव.

गोरखपुर में पिछले 25 वर्षों से संस्कार भारती की ओर से सूरजकुंड धाम पर देव दीपोत्सव कार्यक्रम का आयोजन पर किया जाता रहा है. हजारों की संख्या में लोग यहां पर दीप प्रज्वलित करने के लिए आते हैं. दीपावली के दूसरे दिन होने वाले इस कार्यक्रम की भव्यता देखते ही बनती है. सूरजकुंड धाम दीपों की जगमग रोशनी से नहाया हुआ नजर आता है. इस अवसर पर संस्कार भारती की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है.

देव दीपोत्सव कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि पधारे पूर्व केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री और राज्यसभा सांसद शिव प्रताप शुक्ला ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि संस्कार भारती की ओर से पिछले 25 वर्षों से देव दीपोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. यह आयोजन अपने आप में अद्भुत है. उन्होंने कहा कि हजारों की संख्या में लोग हर वर्ष यहां पर देव दीपोत्सव में भाग लेने के लिए आते हैं. इस उत्सव से गोरखपुर ही नहीं बल्कि पूर्वांचल की संस्कृति भी लोगों के सामने दिखाई पड़ती है.

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वहीं पिछले कई वर्षों से इस देव दीपोत्सव का हिस्सा रहे विकास जालान ने बताया कि इस बार का आयोजन बड़ा ही खास है, क्योंकि यह देव दीपोत्सव का 25वां वर्ष है. लगभग हर वर्ष वह यहां लोग पर आते हैं और देव दीपोत्सव कार्यक्रम में शिरकत करते हैं. उन्हें यहां आकर काफी अच्छा लगता है और बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है.

पिछले 10 वर्षों से लगातार इस कार्यक्रम में आ रहीं शाइनी अग्रवाल ने बताया कि यहां पर काफी उत्साह दिखाई देता है. वह अपने बच्चों को साथ लेकर आती हैं, क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि बच्चों के अंदर इस तरह के कार्यक्रमों से सामाजिक और सांस्कृतिक भावना उत्पन्न होती है.

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