गाजीपुर : जिले का एक ऐसा बाढ़ प्रभावित गांव जो वर्ष 2013, वर्ष 2016, वर्ष 2019 और वर्ष 2021 बाढ़ की त्रासदी को झेला है. भयंकर बाढ़ ने लोगों का जीना मुहाल करके रख दिया. सैकड़ों लोग बेघर हो गए, लेकिन आज तक इन लोगों को घर नसीब नहीं हुआ. दरअसल, मैं बात कर रहा हूं गाजीपुर जिले के सेमरा गांव की. जोकि वर्ष 2013 में आई भयंकर बाढ़ के चपेट में आकर 548 घर गंगा के कटान की भेट चढ़ गए थे. लोगों का घर गंगा में समाहित हो गया था. लेकिन वर्तमान समय में भी ये लोग बेघर हैं. ये लोग मोहम्मदाबाद के प्राथमिक विद्यालय, कृषि भवन के मंडी समिति के भवन में रह रहे हैं.
हालांकि सरकार ने इन बाढ़ पीड़ितों को विस्थापित करने के लिए जमीन खरीदा है. लेकिन बाढ़ पीड़ितों का आरोप है अभी हम लोग खुद बाढ़ की त्रासदी को झेले हैं, और अब तक झेलते आ रहे हैं. जिस जगह को सरकार ने खरीदा है वह खुद बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है. इस वर्ष की भी बाढ़ में वह पूरी तरह से डूब गया था. उस जगह पर नाव चल रही थी. वर्तमान समय में सरकार के किसी जिम्मेदार अधिकारी व प्रतिनिधि ने अब तक उन लोगों को सुरक्षित स्थान नहीं मुहैया करा पाया है. आज भी लोग प्राथमिक विद्यालयों कृषि भवन की बिल्डिंग में रह रहे हैं.
मुख्यमंत्री भी नहीं पहुंचे इन बाढ़ पीड़ितों के बीच
अभी कुछ ही दिन पहले गाजीपुर में भयंकर बाढ़ आई थी. जिसके लिए खुद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गाजीपुर के गहमर गांव में गए थे. उन्होंने हवाई सर्वेक्षण कर बाढ़ का जायजा लिया और 183 बाढ़ पीड़ितों में राहत सामग्री का भी वितरण किया. लेकिन सवाल यह उठता है कि मुख्यमंत्री गाजीपुर आए तो क्या यहां के किसी जिम्मेदार विधायक या प्रतिनिधि ने उनको सेमरा बाढ़ पीड़ितों के बारे में नहीं बताया या फिर मुख्यमंत्री वहां जाना नहीं चाहते, यह अपने आप में बहुत बड़ा सवाल है.
ईटीवी भारत ने बाढ़ पीड़ितों से उनकी परेशानियों को लेकर बात की. उन लोगों ने बताया कि साहब हम लोग 2013, 2016, 2019 और अब 2021 की बाढ़ की तबाही के मंजर को झेला है. लेकिन आज तक किसी ने हम लोगों की सुधि नहीं ली. वर्तमान सरकार के भी साढे 4 साल हो गए, लेकिन आज तक किसी को अपना एक आशियाना या छत्रछाया नसीब नहीं हो सका. यही नहीं, बाढ़ पीड़ितों ने बताया कि सरकार गरीबों की बात करती है, आवास, शौचालय, उज्ज्वला गैस योजना के तहत कनेक्शन देने की बात करती है, लेकिन इसमें से एक भी सरकारी लाभ इन बाढ़ पीड़ितों तक नहीं पहुंच पाया है. यह अपने आप में बहुत बड़ा सवाल पैदा करता है.