बस्ती:जिला मुख्यालय से लगभग 8 किलोमीटर दूर स्थित नगर थाना क्षेत्र का हरनखा गांव एक दशक पहले देसी पान की खेती के लिए मशहूर था. इस गांव के सभी लोग गांव की खेती पर ही निर्भर थे. कभी इस गांव का देसी पान लोगों के मुंह की शोभा हुआ करता था. गांव में लोग इसी खेती पर निर्भर थे क्योंकि इसमें लागत कम और मुनाफा ज्यादा था.
नई पीढ़ी ने छोड़ी पान की खेती. किसानों के अनुसार पान के व्यवसाय पर मौसम की मार पड़ी तो फसल को काफी नुकसान होने लगा और जंगली जानवर भी फसल को नुकसान पहुंचाते थे. पान की खेती खत्म होने की बड़ी वजह पानी की कमी भी है. समय के साथ बाजार में देसी पान की मांग भी कम हो गई, जिसके बाद लोगों ने इस व्यवसाय से मुंह मोड़ लिया है. पान की खेती को लेकर गांव की ख्याति थी. उस समय गांव में जितने भी घर से सब पान की खेती पर निर्भर थे, लेकिन आने वाली पीढ़ी ने कम मेहनत में ज्यादा पैसा कमाने की वजह से पान की खेती से मुह मोड़ लिया.
अधिक मेहनत के कारण बंद हुई पान की खेती
पान की खेती में बहुत मेहनत करनी पड़ती है. गर्मी के मौसम में दिन में लगभग तीन बार सिंचाई करनी पड़ती है. इसको सुरक्षित बनाने के लिए इस पर छाया भी करनी पड़ती है. ठंड में तो एक से दो बार ही दिन में पानी देना पड़ता है. अब इतनी मेहनत करने वाला कोई बचा नहीं. हमारे बाद कि पीढ़ी ने पान की खेती करना बंद कर दिया. नई पीढ़ी जल्दी पैसा कमाना चाहती है. पान की खेती में काफी मेहनत करनी पड़ती है, इसलिए लोगों ने अपना धंधा बदल लिया.
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ग्रामीणों ने बताया कि हरनखा गांव का देशी पान लोगों की पहली पसंद थी. मगर समय बदलने के साथ यह व्यवसाय घाटे का सौदा साबित हो गया. गांव के लोग पान की खेती को छोड़कर परंपरागत खेती जैसे गेहूं, अरहर, सरसों, धान की खेती करना ज्यादा पसन्द कर रहे हैं.
-राजवंत चौरसिया, किसान