बस्ती: कहते हैं हुनर आपकी शख्सियत, रुतबे और शान-ओ-शौकत देखकर नहीं मिलता, यह जन्मजात होता है और किसी के पास भी हो सकता है. हुनर किसी दौलतमंद की जागीर नहीं होती है. ऐसे ही एक हुनरमंद शख्स हैं, आलोक शुक्ला. जिन्होंने अपनी कला से न सिर्फ अपनी अलग पहचान बनाई, बल्कि अन्य लोगों को भी प्रशिक्षण देकर साक्षर बनाने का प्रयास किया. कला और हस्तशिल्प के माहिर आलोक शुक्ला अपनी दक्षता का लोहा, अब गांव के परिषदीय स्कूल से निकलकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रदर्शनी में मनवा रहे हैं. इसके लिए उन्हें उत्कृष्ट कचरा प्रबंधन के लिए दो बार अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव में बेस्ट अपकमिंग आर्टिस्ट का अवार्ड भी मिल चुका है. जानिए आलोक के इस खास पहल के बारे में.
अखबार की रद्दी से तैयार लुभावने सजावटी सामान
गौर विकास क्षेत्र का उच्चतर प्राथमिक विद्यालय कवलसिया अब किसी पहचान का मोहताज नहीं है. राष्ट्रीय स्तर तक के सरकारी और गैर सरकारी कला-हस्तशिल्प के मेलों में इस विद्यालय की अपनी अलग पहचान है. साल 2013 में कला और शिल्प शिक्षक आलोक शुक्ला जब अनुदेशक के पद पर तैनात हुए, तो यह विद्यालय बुरे दौर से गुजर रहा था. लेकिन धीरे-धीरे आलोक की कला और शिल्प में निपुणता ने इस विद्यालय को पहचान दिलाई.
विद्यालय को पहचान मिलने के बाद अखबार की रद्दी से आकर्षक और लुभावने सजावटी सामान तैयार होने लगे. फ्लावर पॉट, पेन स्टैंड, टी कोस्टर जैसे रंग बिरंगे वस्तु बनाने में आलोक की टोली माहिर हो गई. अब आलोक के स्कूल के छात्र-छात्राएं तो हुनरमंद बन ही रहे हैं, साथ ही कई सरकारी, गैर सरकारी संस्थाएं भी आलोक से प्रशिक्षण दिलवाकर लोगों को साक्षर और आत्मनिर्भर बनाने में जुट गई हैं.
ईको फ्रेंडली प्रोडक्ट
आलोक के हस्तशिल्प से बने प्रोडक्ट की खास बात यह है कि ये पर्यावरण की दृष्टि से बिल्कुल भी नुकसानदायक नहीं हैं. दिल्ली में कौशल विकास मंत्रालय भारत सरकार द्वारा आयोजित हस्तशिल्प मेले में भी आलोक और उनके टोली के इस हुनर को खूब सराहा गया. लखनऊ मेले में प्रदेश सरकार के मंत्री रीता बहुगुणा जोशी और तमाम मंत्रियों ने भी उनके और उनके टीम की सराहना की. अनुदेशक आलोक शुक्ला को राज्य और केंद्रीय संस्थाओं की कार्यशाला में बतौर प्रशिक्षक आमंत्रित किया जाता रहा है.
कागज से क्राफ्ट बनाने की शुरुआत
आलोक शुक्ला ने बताया कि कला के बूते ही उन्हें बड़ी पहचान मिली है. जिला प्रशासन भी पूरा सहयोग कर रहा है. उन्होंने कहा कि असल में कागज से क्राफ्ट बनाने की मेरी शुरुआत 2013 से हुई. सबसे पहले मैंने बंबू और सरकंडे पर फोकस किया था. दरअसल, मैं आर्ट एंड क्राफ्ट टीचर हूं, तो वहां मुझे लगा कि अगर मैं बच्चों को सिखा रहा हूं, तो क्यों न उनको ऐसी चीजें सिखाऊं कि जब वह आठवीं पास करके निकलें, तो उनके पास एक ऐसा हुनर हो, जिससे वह कुछ कमाई कर सकें.
इसके बाद मैंने अखबार से ऐसी चीजों को बनाना शुरू किया, जिनका उपयोग घर में किया जा सकता है. इस काम में पहले चार साल का समय लगा, लेकिन अब मैं इसमें महारथ हासिल कर चुका हूं. अब मैं छात्र-छात्राओं, स्वयं सहायता समूह की महिलाओं समेत अन्य महिलाओं को प्रशिक्षण देता हूं. अखबार से बने क्राफ्ट की खासियत यह है कि इसमें लागत कुछ भी नहीं है. पर्यावरण के हिसाब से भी यह फ्रेंडली है. साथ ही इसमें आय ज्यादा और लागत बिल्कुल कम है. ऐसी चीजों की मांग होने के कारण बाजार में बेचने में भी आसानी होती है.