बाराबंकी:स्वस्थ समाज से स्वस्थ भविष्य का निर्माण होता है, लेकिन जब अधिकांश आबादी को गरीबी और मुफलिसी जकड़ ले तो ये बातें महज कोरी लगती हैं. आजादी को वर्षों बीत जाने के बाद भी देश गरीबी से उबरने के लिए जूझता रहा, लेकिन बहुत सफल नहीं हो पाया.
कई उदारवादी सरकारें आईं औैर गईं. उन्होंने देश से गरीबी और कुपोषण को खत्म करने के दावे भी किए, लेकिन वो बातें भी सिर्फ नारे तक सीमित रहीं. इसी बीच गरीबी ने देश को दिया 'कभी न मिटने वाला कलंक- कुपोषण'.
कुपोषण में उत्तर प्रदेश देश में दूसरे स्थान पर
इस महामारी की बानगी देश के कोने-कोने में फैली मिलेगी, लेकिन उत्तर प्रदेश कुपोषण के मामले में देश में दूसरे स्थान पर है. एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में 46.5 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. वहीं राजधानी से सटे बाराबंकी जिले में 60,447 बच्चे कुपोषण के शिकार बताए जा रहे हैं. ये तो महज आंकडे़ हैं, इसके इतर भी तस्वीर बदरंग है. जिले में 26 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं. हालांकि अन्य जिलों का हाल इससे भी बुरा है.
हर साल सात लाख बच्चों की होती है मौत
यूनिसेफ के आंकड़े की माने तो दुनिया भर में 5 वर्ष का हर तीसरा बच्चा कुपोषण की चपेट में है. विश्व भर में हर साल कुपोषण के कारण करीब सात लाख बच्चे मौत की नींद सो जाते हैं. 6 महीने से लेकर 23 महीने तक के बच्चों में कुपोषण का सबसे ज्यादा खतरा होता है.
भारत में कुपोषण से निजात पाने की गति इसलिए धीमी है, क्योंकि ज्यादातर प्रशासनिक अमला इसको गंभीरता से नहीं लेता. पिछले दिनों मात्र 16 प्रतिशत बजट ही इस पर खर्च हो पाया था. वर्तमान सरकार इसको गंभीरता से तो ले रही है, लेकिन समस्या काफी बड़ी है और इस दिशा में प्रयास भी बेहतर करने की जरूरत है.
बाराबंकी में 60, 447 बच्चे कुपोषण की जद में
कुपोषण समूचे भारत में एक बड़ी समस्या का कारण बना हुआ है. वहीं बाराबंकी जिले में भी इसका असर देखने को मिलता है. यहां कुल 60,447 बच्चे कुपोषण के शिकार पाए गए हैं. जिसमें से तमाम प्रयास के बावजूद मात्र लगभग 3000 बच्चों को कुपोषण की श्रेणी से बाहर लाया जा सका है.
5 वर्ष तक के बच्चों पर कुपोषण का कहर
5 वर्ष तक के बच्चों में यह समस्या ज्यादा है, जिससे बच्चों को तमाम प्रकार की बीमारियां घेर लेती हैं. इसका बड़ा कारण है. पर्याप्त मात्रा में पोषित भोजन न मिलना. चौंकाने वाली बात ये है कि आज की परिस्थितियां और कुपोषण के मायने बदल चुके हैं. अब कुपोषण की दो श्रेणियां हैं.
आयु के अनुसार वजन कम होना
जन्म के बाद से उचित मात्रा में पोषित भोजन न मिलने से बच्चे कुपोषण की समस्या से घिर जाते हैं. जिसकी वजह से उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे असमय कई गंभीर बीमारियां घेर लेती हैं, जिससे उसका शारीरिक और मानसिक विकास बाधित हो जाता है.
मोटापा भी है कुपोषण
जिन बच्चों का आवश्यकता से अधिक भोजन और खाद्य सामग्री खाने की वजह से वजन आयु के अनुसार काफी बढ़ गया है और वह मोटापे की समस्या से ग्रस्त हो गए हैं उन्हें भी सामान्य रूप से कुपोषण की श्रेणी में रखा गया है.
योगी सरकार यूपी से कैसे खत्म करेगी कुपोषण
प्रदेश में कुपोषण को मात देने के लिए समाजवादी सरकार ने हौसला पोषण योजना की शुरुआत की थी, लेकिन योजना धरातल में आते ही धड़ाम हो गई. अब मौजूदा सरकार विकास के बड़े-बड़े दावे कर रही है. प्रदेश की योगी सरकार से भी वही सवाल है कि क्या कुपोषण से प्रदेश को मुक्त करने के लिए कुछ प्रयास किए जाएंगे या नौनिहालों के बचपन और देश के भविष्य को यूं ही गर्त में जाने देंगे.
डीपीओ प्रकाश कुमार ने दी जानकारी
बाराबंकी के डीपीओ प्रकाश कुमार का कहना है किअलग-अलग प्रकार के कार्यक्रम चलाकर बच्चों को कुपोषण से निकालने का प्रयास किया जा रहा है. आंगनबाड़ी केंद्रों और जिले के लगभग 7 विभाग मिलकर एक साथ काम कर रहे हैं, जिससे कुपोषण पर विजय प्राप्त की जा सके.