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महेंद्र सिंह टिकैत ने 1993 में इसी तरह के कृषि कानूनों की मांग की थीः सांसद सत्यपाल सिंह

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में सांसद सत्यपाल सिंह ने किसानों की मीटिंग व दिव्यांगजनों के कार्यक्रमो में भाग लिया. इसके बाद मीडिया से तमाम मुद्दों पर बात की.

सांसद सत्यपाल सिंह
सांसद सत्यपाल सिंह

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Published : Jan 23, 2021, 12:36 PM IST

बागपतःदेश के बहुत बड़े किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत ने सन 1993 में इसी तरह के कृषि कानूनों की मांग की थी, जैसे आज सरकार लागू कर रही है. भला देश के किसानों पर बंधन क्यों होना चाहिए, उन्हें भी बिक्री के मामले में आजादी मिलनी चाहिए. यह बातें बागपत से बीजेपी के सांसद डॉ. सत्यपाल सिंह ने शुक्रवार को एक आयोजन के दौरान मीडिया से कहीं. सांसद सत्यपाल सिंह शुक्रवार शाम को किसानों की मीटिंग व दिव्यांगजनों के कार्यक्रमों में पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने मीडिया से तमाम मुद्दों पर बात की. उन्होंने इससे पहले शुक्रवार को खाप पंचायतों के समर्थन में एक ट्वीट भी किया था. इस विषय पर भी विस्तार से उन्होंने अपनी बात रखी.

किसानों की मीटिंग व दिव्यांगजनों के कार्यक्रमों में पहुंचे सांसद डॉ. सत्यपाल सिंह

सरकार खुले दिल से बातचीत को तैयार
वर्तमान कृषि कानून के विवाद और खाप पंचायतों के बारे में कहा कि मुझे नहीं लगता कि किसी खाप पंचायत ने किसान आंदोलन के समर्थन में कोई बयान दिया है. ये बात जरूर है कि कुछ लोगों का उसमें साइलेंट समर्थन हो सकता है. महान किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत ने सन 1993 में इसी तरह के कानून की मांग की थी. वर्तमान हालातों में किसानों के ऊपर ही तो शिकंजा है. किसानों के ऊपर जो पाबंदी है, उसको कृषि कानून के माध्यम से सरकार ने खत्म किया है. कुछ लोगों के अंदर एक भ्रम पैदा हो गया है कि शायद एमएसपी खत्म हो जाएगी. सरकार ने बार-बार ये कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी रहेगा. सरकारी खरीद जारी रहेगी, मंडिया जरूर रहेंगी. यदि वर्तमान कृषि कानूनों में कोई बदलाव करने की जरूरत है या सुधार करने की जरूरत है तो भारत सरकार खुले मन से संशोधन करने के लिए भी तैयार है.

खाप पंचायतों का समर्थन
सांसद सत्यपाल सिंह ने अपने ट्वीटर हैंडल पर गांवों में खाप पंचायतों को लेकर ट्वीट किया था. इस बारे में मीडिया ने सवाल किया तो उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के आने से पहले इस देश के अंदर पंचायत चलती थीं. पंचायत में पंच परमेश्वर होते थे. तब तमाम तरह की पंचायत होती थीं. खाप पंचायतें होती थीं, कौमो की भी होती थीं, जातियों की होती थीं. वह पंचायतें इंसाफ करती थीं, तब न कोर्ट में जाना पड़ता था, न वकील करने पड़ते थे. जब गांव के लोग इकट्ठा होते थे तो पता चल जाता था कि कौन सच्चा है और कौन झूठा है. उसमें तुरंत इंसाफ मिलता था. मैंने अपने ट्वीट से लोगों को यही याद दिलाया कि ये देश कैसा था. अब लोगों को कोर्ट में जाने पर खर्चा भी लगता है. कोर्ट में इंसाफ मिलने में देर भी लगती है. मुझको लगता है कि हम विचार करें. हम इन ग्राम पंचायतों, न्याय पंचायतों, पंच परमेश्वरों की व्यवस्था के बारे में दोबारा सोच सकते हैं.

किसान जानते हैं देश की गरिमा
डॉ. सत्यपाल सिंह ने किसानों की दिल्ली परेड के बारे में कहा कि परेड में जाने की बात किसान नहीं कर रहे हैं. वो आउटर रिंग रोड जाने की बात कर रहे हैं. मुझे लगता है सबसे बड़े देशभक्त हमारे किसान हैं. वह देश की गरिमा जानते हैं. गणतंत्र दिवस की गरिमा जानते हैं. मुझको नहीं लगता कि कोई भी किसान ऐसा करेगा जिससे देश की गरिमा को ठेस पहुंचे. किसी को आगे या पीछे हटने की बात नहीं. हमारी सरकार किसान हितैषी है.

कार्यक्रमों में समझाए कृषि कानून
डॉ. सत्यपाल सिंह ने कार्यक्रमों पर बोलते हुए कहा कि आज मैं कई जगहों पर किसानों के कार्यक्रमों में शामिल हुआ था. इसमें मैंने जो कृषि कानून लाए गए हैं उनके बारे में लोगों को बताया. इसके क्या फायदे हैं यह समझाया. आज (शुक्रवार को) लुहारा गांव में दिव्यांगजनों के लिए कार्यक्रम आयोजित हुआ. भारत सरकार की तरफ से दिव्यांगजनों को स्वावलंबी बनाने के लिए स्कीम चल रही है. इसके तहत दिव्यांगजनों को सिलाई, कंप्यूटर आदि सिखाकर, उनको रोजगार के लिए कम इंटरेस्ट पर लोन दिया जाता है ताकि ये लोग अपने पैरों पर खड़े हो सकें. इसके लिए आज सेंटर पर आया था और इस दौरान दिव्यांगजनों को सम्मानित कर सर्टिफिकेट दिए गए. मोदी सरकार में दिव्यांगजनों के लिए जितना काम हुआ है, उतना पिछले 65 वर्षों में नहीं हुआ है.

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