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मिलिए राम मंदिर के गवाह से; जिन्होंने तोड़ा था रामलला के दरबार का ताला, देखा संघर्ष

अयोध्या के रहने वाले शख्स (Ram Mandir Witness) ने आज रामलला को लेकर हुए संघर्ष की कहानी बताई. उन्होंने बताया कि राम मंदिर (Ram Mandir 2024) का ताला कैसा तोड़ा गया. वहीं, उन्होंने कारसेवा की एक-एक घटना को करीब से देखा.

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 16, 2024, 3:29 PM IST

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राम मंदिर के संघर्ष को करीब से देखने वाले सीताराम यादव से बातचीत

अयोध्या: अयोध्या में रामलला विराजने जा रहे हैं, ऐसे में रामलला को लेकर संघर्ष की कहानी हर ओर नजर आ रही है. इस संघर्ष की कहानी में आज हम आपको एक ऐसे व्यक्ति से मिलवाने जा रहे हैं, जो न सिर्फ अयोध्या मामले में गवाह बने थे, बल्कि राम मंदिर में ताला टूटने के दौर में भी मौजूद थे. उन्होंने राम मंदिर का ताला भी तोड़ा था. यही नहीं, यह बाबरी विध्वंश के वह चश्मदीद भी हैं, जिन्होंने कारसेवा की एक-एक घटना को करीब से देखा था. यह शख्स हैं अयोध्या के रहने वाले सीताराम यादव. यूं तो सीताराम यादव चाय और मीठे की दुकान संचालित करते हैं. लेकिन, यह रामलला के संघर्ष में एक कारसेवक भी थे.

बता दें कि सीताराम यादव का परिवार तीन पीढ़ियों से राम मंदिर और सीता रसोई के पास दुकान संचालित कर रहा था. मंदिर बनने के दौरान अभी इनकी दुकान हनुमानगढ़ी के पास चली गई है. वो अब अपने आंदोलन की कहानी को बता रहे हैं. ऐसे में ईटीवी भारत ने उनसे उस दौर के बारे में बातचीत की. सीताराम यादव बताते हैं कि किस तरीके से मंदिर के विवाद को लेकर उन्होंने कोर्ट में गवाही दी और जब राम मंदिर का ताला टूटा था तो उन्होंने बाकायदा बेलचे से ताला तोड़ने का भी काम किया था.

जब लोहे के बेलचे से तोड़ा गया था ताला

सीताराम यादव बताते हैं कि जब कोर्ट से रामजन्मभूमि का ताला खोलने का आदेश हुआ था, तब गेट का ताला खोलने की कोशिश हुई थी. उस समय वे भी इन सभी लोगों में शामिल थे. जब ताला खोलने के लिए पहुंचे तो पता चला कि इतना बड़ा ताला और खुल भी नहीं रहा. बहुत कोशिशें की गईं. इसके बाद लोहे का बेलचा लाकर ताला तोड़ने की कोशिश की गई. जब ताला तोड़ा जा रहा था, उसी दौरान उनका हत्था भी टूट गया. उस समय बहुत बड़ी भीड़ इस गेट के पास मौजूद थी. उसके बाद गवाही देने के लिए कोर्ट जाया करते थे. लगभग 16 दिन गवाही देने के लिए गए थे.

पुलिस बैरिकेडिंग तोड़कर आ गई थी भीड़

सीताराम यादव कहते हैं कि बहुत कुछ याद आता है. हमारी दुकान तब मंदिर में ही हुआ करती थी. हमारे पिताजी पहले रामलला के लिए भोग ले जाया करते थे. उनके बाद मैं रामलला को भोग पहुंचाने का काम कर रहा हूं. उस समय जब ढांचा गिराया गया था, तब का दिन भी याद है. हम अपनी दुकान पर ही थे. अचानक से हजारों लोगों की भीड़ आई और पुलिस बैरिकेडिंग हटाकर ढांचे पर चढ़ गई. हम लोग उस समय समझ नहीं पाए. लेकिन, बाद में पता चला था. सब कुछ तोड़ दिया गया था. इतनी भीड़ देखकर पुलिस भी सकते में आ गई थी.

कोर्ट में गवाही देने जाते थे सीताराम यादव

उन्होंने बताया कि जब मंदिर विवाद चल रहा था तो उन्हें भी गवाही के लिए बुलाया गया था. लगभग 15 बार कोर्ट में गवाही देने के लिए गए. वहां पर स्थान को लेकर कई सवाल किए जाते थे. जैसे कि ये मजार है या समाधि? उस स्थान की तस्वीर और मैप दिखाकर पूछा जाता था. कई ऐसे सवाल किए जाते, जिसमें मंदिर और मस्जिद होने के सवाल होते थे. मैंने हर बार बस यही कहा कि यहां पर मंदिर था और मेरे दादा, पिताजी लोगों ने बचपन से ही बताया था कि ये किन लोगों की समाधि है. मैं वहां पर फूल चढ़ाया करता था. हम लोग मंदिर स्थल को लेकर कभी डिगे नहीं थे.

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