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पंचकोसी परिक्रमा के लिए अयोध्या पहुंचे लाखों श्रद्धालु, जानें क्या है महत्व

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Published : Nov 7, 2019, 4:07 PM IST

अयोध्या में 12 नवंबर तक चलने वाले कार्तिक मेले में देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. 14 कोसी परिक्रमा के बाद 7 नवंबर सुबह से पंचकोसी परिक्रमा शुरू हो गई है.

अयोध्या में पंचकोसी परिक्रमा

अयोध्या: विश्व के प्रमुख तीर्थ स्थलों में राम की नगरी अयोध्या का नाम शामिल है, जिसकी मिट्टी में बसी सभ्यता ही इसकी पहचान है. पुराणों की मान्यता के अनुसार प्रदक्षिणा यानी परिक्रमा धार्मिक स्थान का ही एक रूप है. मान्यता है कि अयोध्या नगरी सृष्टि की उत्पत्ति का केंद्र रही है. इसकी परिक्रमा करने से हजारों यज्ञ करने के बराबर पुण्य फल मिलता है.

पंचकोसी परिक्रमा के लिए अयोध्या पहुंचे लाखों श्रद्धालु.

राम की नगरी अयोध्या में 12 नवंबर तक चलने वाले कार्तिक मेले में देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. 14 कोसी परिक्रमा के बाद 7 नवंबर गुरुवार को सुबह 9:47 से पंचकोसी परिक्रमा शुरू हो गई है, जिसमें करीब 25 लाख की भीड़ जुटने की उम्मीद की जताई जा रही है. हालांकि इस परिक्रमा का क्षेत्र 14 कोसी परिक्रमा से कम है.

महंत रामानंद दास जी महाराज ने दी जानकारी
अयोध्या में पंचकोसी परिक्रमा के महत्व को बताते हुए श्री रामकुंज कथा मंडप के महंत रामानंद दास जी महाराज कहते हैं कि इस परिक्रमा से व्यक्ति को जो फल मिलता है, वह शायद ही किसी धार्मिक अनुष्ठान से मिलता हो. विश्व में सप्तपुरियों में से अयोध्या एक है. ये सप्तपुरियां अयोध्या, मथुरा, माया, कांची, अवंतिका, पुरी और द्वारावती हैं. सभी पुरियों की पंचकोसी परिक्रमा का शास्त्रों में वर्णन है. अयोध्या में भगवान श्री राम के अनेकों रूप विद्यमान हैं. यहां कई सिद्धपीठ हैं, जहां पर लगातार यज्ञ और हवन होते रहते हैं. इन मंदिरों में भगवान के दिव्य रूपों की प्राण-प्रतिष्ठा कराई गई है.

रामानंद दास जी कहते हैं कि शास्त्रों के अनुसार अयोध्या की पांच कोस की परिक्रमा करने से व्यक्ति को पंचकोषों से छुटकारा मिल जाता है. यहां कोषों का अर्थ मानव शरीर में मौजूद कोष से है. ये कोष हैं- अन्नमय कोष, प्राण में कोष, मनोमय कोष, विज्ञानमय कोष और आनंदमय कोष. इन सभी कोषों का वेदों में विस्तार से उल्लेख मिलता है. मान्यता यह भी है कि जिस प्रकार से कार्तिकेय और भगवान गणेश में सबसे तेज ब्रह्मांड की परिक्रमा करने की बात जब सामने आई तो गणेश ने महज शिव और पार्वती की प्रदक्षिणा करने से ही पूरे ब्रह्मांड की परिक्रमा करने का फल प्राप्त कर लिया था.

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