गोरखपुर: मुस्लिम समुदाय के तीर्थ स्थल मक्का और मदीना को बहुत पाक और पवित्र माना जाता है. इस यात्रा को हज यात्रा कहते हैं. हर मुस्लिम अपनी जिंदगी में एक बार हज करना जरूर चाहता है, जो शारीरिक और आर्थिक रूप से मजबूत होता है.
रविवार को इस वर्ष जाने वाले हज यात्रियों को हज ट्रेनर एम अंसारी और डॉ. अजीजुद्दीन ने हज पर जाने से पहले वहां के रीति-रिवाज पूरी तरह से समझाए. इस प्रशिक्षण में शहर के विभिन्न क्षेत्रों से लोग मौजूद थे, वहीं महिलाओं ने भी इस प्रशिक्षण में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. प्रशिक्षण के दौरान हज यात्रियों को बताया गया कि एहराम कहां बांधे, तवाफ कैसे करें और कौन सी दुआ कब पढ़े ताकि हज सही तरीके से हो सके.
- एहराम का अर्थ - मक्का पहुंचने पर पुरुषों को सफेद कपड़े पहने होते हैं, जो बिना किसी गांठ के सिले होते हैं. उसी को एहराम कहते हैं.
- तवाफ- तीर्थयात्री बड़ी मस्जिद, मस्जिद-अल-हराम में प्रवेश करते हैं, यहां बीच में स्थित काबा इमारत के चारों ओर 7 बार चक्कर लगाते हैं.
- हर एक चक्कर की शुरुआत में काले पत्थर हजारे अस्वद को छूते और चूमते हैं. बहुत अधिक भीड़ होने पर तीर्थ यात्री उस पत्थर की ओर हाथ से इशारा करके फेरा शुरू कर सकते हैं.
- यहां खाना वर्जित होता है, लेकिन बहुत अधिक गर्मी की वजह से यहां पानी पी सकते हैं.
- पुरुषों को पहले 3 फेरे जल्दी-जल्दी तेज चल कर पूरे करने को कहा जाता है, जिसे रामाल कहते हैं.
- तवाफ पूरा करने के बाद 2 रकात प्रार्थना होती है, जो काबा के पास मस्जिद के बाहर इब्राहिम के स्थान पर होती है.
- हज के दौरान बहुत अधिक भीड़ होने के कारण तीर्थयात्री मस्जिद के किसी भी स्थान में इस प्रार्थना को पूरा कर सकते हैं.
प्रार्थना के बाद पीते है जमजम का पानी