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राजस्थान के 18 गांवों में अक्षय तृतीया पर सदियों से नहीं बजी शहनाई, मनाया जाता है शोक

वैसे तो राजस्थान में अक्षय तृतीया का विशेष महत्व है. इस दिन को शादी और अन्य मांगलिक कार्यों के लिए सबसे शुभ दिन माना जाता है. इस अवसर पर पूरे देश में बड़ी संख्या में मांगलिक कार्य होते हैं. लेकिन प्रदेश के विभिन्न इलाकों से इतर सवाई माधोपुर के चौथ का बरवाड़ा और उससे जुड़े 18 गांव में अक्षय तृतीया पर किसी तरह का कोई मांगलिक कार्य नहीं होता है. यहां तक की लोग घरों में सब्जियां भी नहीं बनाते हैं. सालों से चली आ रही यह परंपरा आज भी कायम है.

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Published : May 7, 2019, 10:29 PM IST

अक्षय तृतीया पर यहां मनाया जाता है शोक

सवाई माधोपुर. अक्षय तृतीया के अबूझ सावे पर जहां प्रदेश ही नहीं देश भर में गली-गली मंगल गीत और शादी की शहनाइयों की गूंज सुनाई देती है. वहीं जिले के चौथ का बरवाड़ा क्षेत्र में 18 गांव ऐसे हैं. जहां अक्षय तृतीया के मौके पर बैंड बाजों के स्वर सुनाई नहीं देतीं. न ही इन गांवों में कोई मंगल कार्य होता है. सदियों से चली आ रही इस परंपरा को यहां के लोग आज भी बिना किसी तर्क- वितर्क के निभाते चले आ रहे हैं.

सवाई माधोपुर के 18 गांवों में अक्षय तृतीया पर सदियों से नहीं बजी शहनाई

अक्षय तृतीया के मौके पर चौथ का बरवाड़ा क्षेत्र के 18 गांव में शादियों की शहनाई नहीं गूंजने के पीछे जानकारों ने अपनी राय दी है. उनका कहना है कि रियासत काल में 1319 की वैशाख सुदी तीज पर आसपास के 18 गांवों के विभिन्न समुदायों के नव दंपति चौथ माता का आशीर्वाद लेने माता के मंदिर आए हुए थे. उसी दौरान दुल्हन घूंघट में होने के कारण अपने दूल्हे को पहचान नहीं पाई और दूसरे दूल्हे के साथ जाने लगी. इस बात का पता जब दूल्हे और उनके परिजनों को लगा तो दुल्हनों के बदलने को लेकर विवाद हो गया. देखते ही देखते विवाद इतना बढ़ गया कि आपस में मारकाट मच गई.

इस दौरान चाकसू की ओर से मेघ सिंह गौड़ ने यहां आक्रमण कर दिया. इसमें करीब 84 जोड़ों की मौत हो गई. तब से यहां के तत्कालीन शासक मेलक देव चौहान ने 84 नव दंपतियों की मौत पर अक्षय तृतीया के मौके पर इलाके में शोक मनाने की बात कही थी. तभी से लेकर आज तक इस इलाके के 18 गांव के लोग इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं.

इस दिन इन 18 गांव में किसी भी घर में कढ़ाई नहीं चढ़ती और न ही खुशी मनाई जाती है. न ही किसी की शादी अक्षय तृतीया पर की जाती है. और तो और घरों में जब लोग सब्जियां बनाते हैं तो वे उसमें हल्दी तक नहीं डालते. गांव के किसी भी मंदिर में आरती के वाद्य यंत्र नहीं बजाए जाते हैं. चौथ माता के मंदिर में लगे घंटों को भी अक्षय तृतीया की पूर्व संध्या पर ऊंचाई पर बांध दिया जाता है. ताकि कोई इन्हें बजा न सके.

यहां चौथ माता मार्ग पर जहां रियासत काल के 84 दूल्हा-दुल्हन मारे गए थे. वहां उनके चबूतरे बने हुए हैं. आज भी इलाके के कई समुदाय के लोग यहां पूजा अर्चना के लिए आते हैं. उस दिन के बाद से रियासत के इन 84 गांव में आखा तीज के अवसर पर कोई भी मंगल कार्य नहीं किया जाता है. रियासत काल में घटित हुई इस घटना को लेकर आज भी यहां के लोग अक्षय तृतीया पर शादी विवाह नहीं करते और सदियों से चली आ रही इस परंपरा को बिना किसी तर्क वितर्क के निभाते आ रहे हैं.

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