नाथद्वारा (राजसमंद).दीपावली में गोवर्धन पूजा का प्रभु श्रीनाथजी के मंदिर में विशेष महत्व है. नाथद्वारा में दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट महोत्सव और गोवर्धन पूजा का उत्सव मनाया जाता है. इस दौरान गौ क्रीड़ा के दौरान ग्वाल बाल गायों को रिझाते हैं. गौमाता भी ग्वाल बाल को अपने पुत्र समान समझकर उनके साथ खेलती हैं. सैकड़ों लोगों की भीड़ के बीच होने वाले इस खेल में किसी दर्शक को आज तक चोट नहीं लगी है. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि गौ माता सभी लोगों को पुत्र समान समझकर वात्सल्य स्वरूप उनके साथ खेलती हैं लेकिन उन्हें चोट नहीं पहुंचाती है.
वहीं मंदिर के महाराज तिलकायत राकेश बाबा के पुत्र युवराज चिरंजीवी गोस्वामी विशाल बाबा ने बताया कि उनके पुरखों से उन्हें यही सीख मिली है कि जन्माष्टमी से भी बढ़कर दीपोत्सव का महत्व है. क्योंकि जन्माष्टमी को तो केवल प्रभु का जन्म ही हुआ था. लेकिन गोवर्धन पूजा पर प्रभु ने अन्याश्रय (अन्य देवी देवो की पूजा करना) से दूर रहने की बात कहते हुए केवल गोवर्धन व गोवर्धन धारी की पूजा करने की बात कहीं इसीलिए पुष्टिमार्गीय संप्रदाय में दीपोत्सव का विशेष महत्व है.
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नाथद्वारा में दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट महोत्सव व गोवर्धन पूजा का उत्सव मनाया जाता है. दीपावली के दिन प्रभु श्रीनाथजी की गौशाला से गायों को श्रीनाथजी मंदिर लाया जाता है. यहां ग्वाल बाल उन्हें खूब रीझाते हैं. इस गौ क्रीड़ा को देखने हजारों की संख्या में लोग आते है. जिसके बाद उन्हें श्रीनाथजी मंदिर में ले जाया जाता है. जहां प्रभु को गोवर्धन पूजा के चौक में विराजित किया जाता है. उनके सामने गायों के खुर से गोवर्धन को कुचला जाता है. इसके पहले मंदिर के महाराज तिलकायत गोवर्धन की पूजा अर्चना करते हैं. यहां लाने से पहले गायों को खूब सजाया संवारा जाता है. करीब 10 दिन पहले गौशाला में तैयारियां की जाती है. गायों को नहला-धुला कर उनपर मेहंदी लगाकर विभिन्न आकृतियां उकेरी जाती है. वहीं उनके सींग को रंग कर उन पर मोरपंख लगाए जाते हैं, गले और पैरों में घुंगरू बांधे जाते हैं.