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Lok Devta Tejaji: वचन पालन के लिए तेजाजी महाराज ने दिया था बलिदान, जानिए जाटों के आराध्य देव की अमर गाथा

जाटों के आराध्य और नागौर के लोक देवता तेजाजी महाराज (Adorable Tejaji Maharaj of Jats) को उनके वचनों के लिए जाना जाता है. उन्होंने गोरक्षा के लिए अपने प्राण तक बलिदान कर दिए थे. नागौर के खरनाल गांव में तेजाजी का मंदिर (Tejaji Temple of Nagaur) है, जहां उनके दर्शन को भक्तों की भीड़ उमड़ती है. मान्यता है कि आज तक उनके दर से कोई खाली हाथ नहीं लौटा है.

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Published : Oct 6, 2022, 6:24 AM IST

Lok Devta Tejaji Maharaj , Adorable Tejaji Maharaj of Jats
लोक देवता तेजाजी महाराज के दर से कोई नहीं लौटा खाली हाथ.

नागौर.राजस्थान के नागौर में लोक देवता तेजाजी महाराज को पूजा (Tejaji Temple of Nagaur) जाता है. जिले के खरनाल में तेजाजी महाराज का मंदिर है, जहां भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. मान्यता है कि इस मंदिर से आज तक कोई खाली हाथ नहीं लौटा है. सच्चे मन से मुराद मांगने वाले हर भक्त की मन्नत तेजाजी पूरी करते हैं. वहीं, अब तेजाजी के मंदिर को भव्य रूप देने की तैयारी शुरू हो गई है. मंदिर का करीब 400 करोड़ की लागत से पुनरुद्धार (Tejaji temple builds at cost of 400 crores) होगा. माना जा रहा है यह मंदिर देश में पर्यावरण और जल संरक्षण की अनूठी मिसाल (Unique example of environment) पेश करेगा.

इन सबके बीच सबसे बड़ी बात यह कि तेजाजी महाराज के जयकारे अब विधानसभा और लोकसभा में भी सुनने को मिलते हैं. लोक देवता तेजाजी महाराज केवल नागौर व राजस्थान ही नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश और गुजरात में भी पूजे जाते हैं. वीर तेजाजी जाट समुदाय के आराध्य देव (Tejaji deity of Jat community) हैं. राजस्थान में तेजा दशमी के मौके पर नागौर से लेकर जोधपुर और झुंझुनू से लेकर सवाई माधोपुर तक मेले भरते हैं. इस मौके पर जाट समुदाय के लोग तेजाजी की अमर कथा सुनते हैं और अपनी खुशहाली की कामना करते हैं.

तेजाजी मंदिर

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तेजाजी का जन्म राजस्थान के नागौर स्थित ग्राम खरनाल में ताहड़ जाट व राजकुंवर के घर हुआ था. यह राजस्थान के 6 चमत्कारिक सिद्धों में से एक है. तेजाजी सबसे बड़े गोरक्षक भी माने गए. यहां तक कि गायों की रक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राणों की भी आहुति दे दी थी. तेजाजी के वंशज मध्यभारत के खिलचीपुर से आकर मारवाड़ में बसे थे. वहीं, उनका विवाद पेमलदे से हुआ था. साथ ही उनके पास एक घोड़ी भी थी, जिसे लीलण के नाम से जाना जाता था.

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गायों की रक्षा को दी प्राणों की आहुति:इतिहासकार घनश्याम मुंडेल बताते हैं कि सर्पदंश के कारण लोक देवता तेजाजी महाराज की मृत्यु हुई थी. तेजाजी महाराज बचपन से ही बहादुर थे. एक बार की बात है जब तेजाजी महाराज अपनी बहन को लेने उनके ससुराल पहुंचे तो पता चला कि दस्यु गिरोह उनकी बहन की सारी गायों को लूटकर ले गए. जिसके बाद तेजाजी महाराज अपने एक साथी के साथ जंगलों में बहन की गायों को छुड़ाने के लिए निकल गए. इस दौरान बीच रास्ते में एक सांप तेजाजी के घोड़े के सामने आ गया और उन्हें डसने की कोशिश करने लगा. यह देख तेजाजी ने उस सांप को वचन दिया कि जब वो अपनी बहन की गायों को छुड़ाकर आएंगे तब वो उन्हें डस ले. तेजाजी का वचन सुनकर सांप उनके रास्ते से हट गया.

यहां पूरी होती है भक्तों की हर मुराद

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इसके बाद दस्यु गिरोह से लोहा लेते हुए तेजाजी अपनी बहन की गायों को छुड़ाने में सफल गए, लेकिन दस्यु गिरोह के प्रहार से तेजाजी बुरी तरह से जख्मी हो गए थे. ऐसे में जब तेजाजी अपना वचन पूरा करने के लिए सांप के पास पहुंचे तो सांप खून से सना हुआ देखकर उनसे कहा कि आपका शरीर तो पूरी तरह से अपवित्र हो गया है. ऐसे में मैं कहां डंक मारूं. इसके बाद लोक देवता तेजाजी महाराज ने अपना वचन पूरा करने के लिए सांप को डसने के लिए अपनी जीभ आगे कर दी.

बस तेजाजी के नाम का धागा बांध लीजिए:तेजाजी ने जब अपना वचन पूरा करने के लिए सांप के समक्ष जीभ निकाला तो नागदेव ने उन्हें आशीर्वाद दिया. नागदेव ने कहा कि जब भी कोई शख्स सर्पदंश से बचने को तुम्हारे नाम का धागा बांधेगा, उस पर जहर का कोई असर नहीं होगा. इसी प्रचलित मान्यता के चलते हर साल भाद्रपद शुक्ल की दशमी को तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन लोक देवता तेजाजी महाराज की पूजा की जाती है. वहीं, जो लोग सर्पदंश से बचने को तेजाजी के नाम का धागा बांधे हुए होते हैं, इस दिन उसे खोला जाता है. इस प्रक्रिया को राजस्थान के कई इलाकों मे बंद काटना या फिर तांतिया काटना भी कहते हैं.

यहां पूरी होती है भक्तों की हर मुराद

400 करोड़ की लागत से बन रहा मंदिर:खरनाल में 400 करोड़ की लागत से बनने वाले मंदिर के बारे में इतिहासकार घनश्याम मुंडेल ने बताया कि 10 जून को तेजाजी की जयंती पर 400 करोड़ की लागत से बनने वाले मंदिर की नींव रखी गई. इसमें 11 किलो की चांदी की ईंट और एक सवा किलो की चांदी की ईंट को नींव डाल भराई की रस्म पूरी की गई.

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