नागौर. करीब तीन महीने से लगातार टिड्डियों के हमले से जूझ रहे किसानों के लिए ये समस्या और भी गंभीर हो सकती है. क्योंकि मानसून की बारिश के साथ ही जिले में पड़ाव डालने वाली प्रौढ़ टिड्डियां अंडे दे चुकी हैं. कई गांवों में इन अंडों से बच्चे निकलने लगे हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में फाका कहते हैं और कृषि विज्ञान की भाषा में हॉपर्स. जानकारों का कहना है कि बीते दिनों में टिड्डियों के जितने भी हमले हुए हैं. उनसे ज्यादा खतरनाक टिड्डियों के बच्चों के हमले साबित हो सकते हैं.
जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर रेतीले टीलों के बीच स्थित खेतास और ढाकोरिया गांवों के खेतों में बीते दो दिन से टिड्डियों के अंडों से निकले बच्चे खेतों में दिखाई दे रहे हैं. मूंग, तिल और बाजरे के छोटे पौधों के बीच झुंड में बैठे मक्खियों के आकार के ये हॉपर्स अभी इतने खतरनाक नहीं हैं.
लेकिन करीब एक सप्ताह बाद ये खेतों में खड़ी फसलों को देखते ही देखते चट कर जाने की क्षमता रखते हैं. इसके बाद जैसे-जैसे ये बड़े होते जाएंगे. इनकी उड़ान भरने और फसलों को खाने की ताकत भी बढ़ती जाएगी. जानकारों का कहना है कि अगर अंडों से निकलने के दो-तीन दिन के भीतर इन्हें नष्ट नहीं किया गया, तो हालात बेकाबू हो सकते हैं.
दो दिन से इस तरह की समस्या से जूझ रहे किसान
खेतास गांव के भंवर सिंह ने बताया कि जब रविवार शाम को वो खेत गए, तो वहां सब ठीक था. लेकिन सोमवार सुबह गए तो खेतों में कई पौधों के आसपास सफेद रंग के छोटे-छोटे असंख्य जीव दिखे, जो जमीन से निकलने के कुछ ही देर बाद काले हो गए. इसकी जानकारी जब उन्होंने कृषि विभाग के अधिकारियों को दी तो पता चला कि ये टिड्डियों के बच्चे यानी हॉपर्स हैं.
इस गांव में करीब 10 दिन पहले पीले रंग की वयस्क पीली टिड्डियों ने पड़ाव डाला था. जिन्हें दवा का छिड़काव करके नष्ट कर दिया गया था. लेकिन तब तक वे जमीन में अपने अंडे छोड़ चुकी थी. ढाकोरिया गांव के किसान बीते दो दिन से इस तरह की समस्या से जूझ रहे हैं.
एक टिड्डी करती है 240 से 360 बच्चे पैदा
टिड्डियों के छोटे-छोटे बच्चों को कृषि विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर दवा का छिड़काव कर नष्ट किया जा रहा है. लेकिन बड़ी समस्या यह है कि पहले दिन जितने हॉपर्स को दवा का छिड़काव कर नष्ट करते हैं. अगले दिन उससे भी ज्यादा संख्या में ऐसे ही जीव जमीन से निकल आते हैं. कृषि अधिकारी शंकरलाल सियाग बताते हैं कि अभी जिले के साथ ही प्रदेश भर में हमला करने वाली टिड्डी रेगिस्तानी टिड्डी है. इस प्रजाति की पीले रंग की वयस्क टिड्डी जहां भी पड़ाव डालती है. वहां जमीन में अपना कोकून छोड़ देती है.
इसमें 80 से 120 अंडे होते हैं और एक टिड्डी सात दिन के भीतर तीन बार कोकून जमीन में छोड़ती है. ऐसे में एक टिड्डी 240 से 360 बच्चे पैदा करती है. बड़ी समस्या यह है कि वयस्क टिड्डियां अपने कोकून जमीन के भीतर छोड़ती हैं. इसलिए हॉपर्स के जमीन से बाहर आने से पहले यह पता लगाना मुश्किल है कि टिड्डियों ने कहां कोकून छोड़े हैं.