कार सेवकों से विशेष बातचीत जोधपुर.आयोध्या में 22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है. इस दिन के लिए 33 साल पहले सैंकड़ों राम भक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी. 2 नवंबर 1990 से अयोध्या में कार सेवा के लिए एकत्र हुए राम सेवकों के साथ अत्याचार होने का सिलसिला शुरू हुआ था, जो कई दिनों तक चला. इस दिन कई निहत्थे राम सेवकों पर गोलियां चलाई गई थी. जोधपुर के मथानियां से 22 रामभक्त कार सेवा के लिए रवाना हुए थे, जो बड़ी मुश्किल से अयोध्या तक पहुंच गए, लेकिन वहां पर उन्होंने जो देखा वह सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. घटना में मथानियां के एक कार सेवक सेठाराम परिहार के प्राण भी चले गए थे.
2 नवंबर 1990 को जो घटनाक्रम हुआ उसके चश्मदीद रामभक्तों ने ईटीवी भारत ने खास बातचीत की, जिसमें उन्होंने बताया कि उस दिन हम बहुत मुश्किल से अयोध्या में प्रवेश कर पाए थे. हनुमानढ़ी के सामने सबसे आगे हम थे. विहिप के अशोक सिंघल ने वहां से ऐलान किया था कि आज हमें कार सेवा हर हाल में करनी हैं. इसकी शुरुआत राजस्थान के मारवाड़ से आए शूरवीर करेंगे.
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भयावह हालात थे : कमलदान ने बताया कि 'सिंघल की इस घोषण से सभी में जोश भर गया था. हम सबसे आगे आ गए. हमें निर्देश दिया गया कि आगे बढ़ो और ढांचे को ढहा दो. इसके बाद हमने आगे बढ़ना शुरू किया. सामने यूपी पुलिस के जवान थे. उन्होंने गोलियां चलाने की चेतावनी दी. हमारा उनके साथ टकराव हुआ. फिर भी हम आगे बढ़ते रहे. मुख्य सड़क को छोड़कर जब गलियों के रास्ते रामजन्मभूमि की ओर जा रहे थे, अचानक घरों की छत से गोलियां चलने लगीं. पहले लगा कि प्लास्टिक की गोलियां हैं, लेकिन जब रामभक्त गिरने लगे उनके शरीर से खून आने लगा तो समझ आया कि असली गोलियां चल रही हैं. इससे हाहाकार मच गया. हमारे जत्थे के आगे चल रहे सेठाराम परिहार के गले में गोली लग गई, लेकिन फिर भी रामभक्त आगे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते गए. सरयू पर जो पुल बना हुआ था, वहां से भी पुलिस गोलियां चला रही थी. साफ कहा जा रहा था कि किसी को यहां से निकलने नहीं देना है. कई शवों को मिट्टी और इंटें बांधकर सरयू में डूबो दिया गया.'
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शव लेने के लिए भी मशक्कत :उन्होंने बताया किजोधपुर जिले से कुल 50 लोगों का जत्था था, जिसमें हम भी शामिल थे. भंवर भारती ने बताया कि खुद पुलिस वाले ऐसे थे जो यह देख रहे थे कि कौन ज्यादा उत्साह से नारे लगा रहा है, उसे निशाना बनाकर गोली मारी जा रही थी. सेठाराम भी युवा थे और आगे नारा लगा रहे थे, इसलिए उनको गोली मार दी गई. हमारे सेठाराम परिहार शहीद हुए तो उनका शव हमें नहीं मिला. फैजाबाद अस्पताल गए वहां भी शव नहीं था. बाद में बड़ी मुश्किल से शव मिला. दबाव बनाया गया कि यहां पर ही अंतिम संस्कार हो जाए, लेकिन साथ के लोगों ने प्रयास किए तो शव लाने में कामयाब हो पाए.
सपना हो रहा है सच :ओमप्रकाश जाजड़ा ने बताया कि 33 साल बाद हमारा सपना पूरा हो रहा है, जो साथी जिस काम के लिए वीरगति को प्राप्त हुए वह पूर्ण हो रहा है. उनकी कमी हमेशा खलती रहेगी, लेकिन एक उत्साह भी है कि जो काम 500 साल से नहीं हुआ वह पूरा हो रहा है. हमारे श्रद्धेय श्रीराम का मंदिर बन गया है. राम लला उसमें विराजमान होंगे. करोड़ों हिदुओं की आस्था पूरी हो रही है.