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इस बार के परिणाम तय करेंगे मारवाड़ के इन परिवारों और दिग्गजों का राजनीतिक भविष्य, कइयों की साख है दांव पर

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Dec 3, 2023, 5:00 AM IST

राजस्थान में सत्ता की कुर्सी पर कौन काबिज होगा और किसे मात मिलेगी, इसका फैसला आज ईवीएम से निकलने वाले मतों से होगा. ईवीएम में कैद प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला जैसे-जैसे होता जाएगा, उसी तरह से राजनीति की तस्वीर भी साफ होती जाएगी. इस चुनाव में मारवाड़ के कई परिवारों और दिग्गज नेताओं की साख भी दांव पर लगी हुई है.

Rajasthan Assembly Election Result
दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर

जोधपुर.राजस्थान की 199 सीटों पर उतरे प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला आज ईवीएम खुलने के साथ होगा. ईवीएम से निकलने वाले मत ये निर्धारित करेंगे कि कौन सियासत का सिकंदर होगा और किसे मात खानी पड़ेगी. उससे पहले जारी हुए एग्जिट पोल सर्वे रिपोर्ट ने भाजपा और कांग्रेस की बेचैनी बढ़ा दी है. सियासत के जानकार हर सीट के गुणा-भाग में लगे रहे तो राजनेता लगातार जीत के दावे कर रहे हैं. इस बीच बात मारवाड़ की करें तो यहां कई परिवारों और राजनीति के दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव में पर लगी हुई है.

खास तौर से मिर्धा, मदरेणा, जसोल और विश्नोई परिवार के अलावा पारिवारिक राजनीतिक से इतर अपना स्थान बनाने वाले हरिश चौधरी, देवजी पटेल, अमीन खान, ज्ञानचंद पारख, पुष्पेंद्र सिंह राणावत, ओटाराम देवासी महंत प्रतापपुरी के चुनावी परिणामों पर हर किसी की निगाहें टिकी हुई हैं. यह चुनाव कई मायनों में आने वाले समय की राजनीतिक दिशा और दशा को तय करने वाला है.

जोधपुर जिले में इनकी प्रतिष्ठा दांव पर

ओसियां विधानसभा सीट से दिव्या मदेरणा दूसरी बार चुनाव लड़ रही हैं. दिव्या मदेरणा इस परिवार की तीसरी पीढ़ी हैं. उन्होंने पूरा चुनाव अपने दादा परसराम मदेरणा और पिता महिपाल मदेरणा के नाम पर लड़ा है. जाट बाहुल्य सीट पर जाटों को एकजुट करने का प्रयास किया. अगर परिणाम विपरित गया तो मदेरणा परिवार के लिए ये सेटबैक होगा.

लूणी से महेंद्र सिंह विश्नोई भी मैदान में हैं. महेंद्र सिंह विश्नोई भी इस परिवार की तीसरी पीढ़ी है, जो कि चुनावी मैदान में हैं. लूणी में जाट, राजपूत, विश्नोई, पटेल और कुम्हार बाहुल्य हैं. जाटों की नाराजगी भारी पड़ सकती है. अगर हारे तो परिवार की राजनीतिक विरासत पर खतरा मंडरा सकता है.

भोपालगढ से गीता बरवड़ को कांग्रेस ने उतारा है. इनके पिता नरपतराम बरवड मंत्री रहे हैं. 2008 में यहां से उनकी मां चुनाव हारी थी. इस बार गहलोत ने नए चेहरे के रूप में गीता बरवड़ को मैदान में उतारा है. इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले में बहुत नजदीकी मामला रह सकता है.

दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर

बाड़मेर में इनकी प्रतिष्ठा दांव पर

हरिश चौधरी बायतू सीट से मैदान में हैं. वे पूर्व में सांसद और प्रदेश में मंत्री रह चुके हैं. कांग्रेस संगठन में हरीश चौधरी के पास बड़ा बद है, लेकिन बताया जा रहा है कि इस बार वे इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले में फंस गए हैं. जाट बाहुल्य इस सीट पर रालोपा ने परेशानी खड़ी की है . हरिश जीतते हैं तो उनका कद और बढ़ेगा.

मानवेंद्र सिंह जसोल को कांग्रेस ने सिवाना सीट से चुनाव मैदान में उतारा है. जसोल जैसलमेर सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन पार्टी के आदेश पर वे सिवाना से मैदान में उतरे. इस बीच सीएम अशोक गहलोत के खास सुनील परिहार ने बागी बनकर त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति इस सीट पर पैदा कर दी है. मानवेंद्र सिंह जसोल ने 2018 में झालरापाटन सीट से चुनाव लड़ा था और हार गए थे.

अमीन खां लगातार शिव से विधायक रहे हैं. इस बार भी वे मैदान में उतरे हैं. वहीं, उनके सामने जिलाध्यक्ष फतेह खां ने बागी बनकर इस बार ताल ठोक दी है, जिससे उनका खेल बिगड़ सकता है. इस सीट पर भाजपा में भी बागी बनकर रविंद्र सिंह भाटी खड़े हो गए हैं. जिसके बाद इस सीट पर चतुष्कोणीय मुकाबला हो गया है. इस सीट के परिणाम पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं.

बाड़मेर सीट से मेवाराम जैन लगातार चौथी बार चुनाव के मैदान में उतरे हैं. वे तीन बार चुनाव जीत चुके हैं. इस सीट पर इस बार भाजपा की बागी प्रियंका चौधरी ने मुकाबला त्रिकोणीय बनाया हैं. यहां जाट वर्सेज अदर की स्थिति में जैन की राजनीतिक बिसात दांव पर लगी हुई है.

नागौर में इनकी प्रतिष्ठा दांव पर

नागौर की राजनीति मिर्धा परिवार ने ही चलाई है. यहां की राजनीति में हमेशा से मिर्धा परिवार चर्चा में रहा है. इस बार इस सीट पर चाचा हरेंद्र मिर्धा कांग्रेस से और भतीजी ज्योति मिर्धा भाजपा से आमने सामने है. यहां के मुकाबले को हबीबुर्रहान ने त्रिकोणीय बना दिया है. चुनाव में मिर्धा हारे तो उनकी राजनीति को बड़ा नुकसान होगा.

राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल खिंवसर से मैदान में हैं. बेनीवाल को खुद की जीत के साथ साथ जिले में अपनी पार्टी की मौजूदगी के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है.

नावां सीट से चुनावी मैदान में कांग्रेस प्रत्याशी और संसदीय सचिव महेंद्र चौधरी हैं. इस सीट पर धुर विरोधी हनुमान बेनीवाल और भाजपा ने चौधरी को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. चौधरी तीन चुनाव में पिछली बार ही जीते थे. गहलोत के खास होने से संसदीय सचिव बनाया गया था.

दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर

पाली में इनकी प्रतिष्ठा दांव पर

पाली सीट से भाजपा के ज्ञानचंद पांच चुनाव जीत चुके हैं, वे छठी बार मैदान में हैं. इस बार कांग्रेस ने भीमराज भाटी को चुनावी मैदान में उतारकर मुकाबला रोचक बना दिया है.

सोजत से कांग्रेस ने पूर्व आईएएस निरंजन आर्य को चुनावी रण में उतारा है. पिछले चुनाव में उनकी पत्नी हारी थी. मुख्य सचिव के पद से रिटायर होने के बाद से वे सक्रिय थे. अगर आर्य चुनाव जीतते हैं तो कांग्रेस के लिए ब्रेक थ्रू होगा, क्योंकि भाजपा बीस साल से काबिज है. वहीं, यदि वे हारते हैं तो राजनीतिक करिअर शुरू होने से पहले समाप्त हो जाएगा.

पाली के बाली सीट पर भी मुकाबला रोचक हैं. यहां भाजपा के पुष्पेंद्र सिंह राणावत चार चुनाव जीत चुके हैं. वे पांचवीं बार मैदान में हैं. उनके सामने कांग्रेस ने पूर्व सांसद बद्रीराम जाखड़ को उतारा है. जाखड़ पर बाहरी होने का ठप्पा हैं. वहीं, राणावत के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई है.

सिरोही में इनकी प्रतिष्ठा दांव पर

सिरेाही सीट से भाजपा ने पूर्व मंत्री ओटाराम देवासी तो कांग्रेस ने संयम लोढ़ा को मैदान में उतारा है. लोढ़ा पिछली बार बागी बनकर जीते थे. इस चुनाव में दोनों ही राजनेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है.

जालोर में इनकी प्रतिष्ठा दांव पर

सांचौर सीट से कांग्रेस ने मंत्री सुखराम विश्नोई को मैदान में उतारा है. उनके सामने भाजपा ने सांसद देवजी पटेल को उतारा है, लेकिन बागी बन गए जीवाराम भाजपा के लिए परेशानी बने हुए हैं. कांग्रेस के लिए भी बागी बने बसपा से शेर मोहम्मद भी परेशानी खड़ी कर सकते हैं. वहीं इस चुनाव में सांसद पटेल की साख दांव पर लगी हुई है.

जैसलमेर पर टिकी सभी की निगाहें

जैसलमेर जिले की पोकरण सीट से कांग्रेस व भाजपा से धर्मगुरु मैदान में हैं. कांग्रेस से मंत्री सालेह मोहम्मद गत बार 839 से चुनाव जीते थे. उन्होंने तारातरा मठ के महंत प्रतापपुरी को हराया था. इस बार प्रातपपुरी की स्थिति मजबूत नजर आ रही है. इस सीट पर प्रदेश में सर्वाधिक मतदान भी हुआ है. ध्रुवीकरण की इस सीट पर सबकी निगाहें बनी हुई हैं.

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