जोधपुर.सीरिया के रेगिस्तान में होने वाला पीला खजूर अब जोधपुर सहित पश्चिमी राजस्थान में भी नजर आएगा. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत आने वाले जोधपुर के काजरी के वैज्ञानिकों ने काजरी परिसर में इसको पनपाया है, जो कि ये प्रयोग सफल रहा है. वहीं, ये खजूर एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर है जो इम्यूनिटी बढ़ाने में मददगार भी है.
जोधपुर केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) में 6 साल पहले मेडुजल वैरायटी के खजूर लगाए गए थे. इस पीला खजूर भी कहा जाता है. बता दें कि खजूर के ये पौधे सीरिया के अनुसंधान केंद्र ने जोधपुर को दिए थे. इनमें पीले खजूर के पौधों को जोधपुर की भूमि में रास आई और ये अब अच्छे से फल-फूल रहा है.
एक पौधे से मिलता है 50 से 70 किलो खजूर...
काजरी के निदेशक डॉ. ओपी यादव का कहना है कि हमारे वैज्ञानिकों ने लगातार 6 साल तक इस पर काम किया. जिसका परिणाम अब सबके सामने है. अब इसके फल पकने लगे हैं. इस फल की खासियत ये है कि इसे पकने से पहले ही खाने के लिए उपयोगी है.
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उन्होंने बताया कि इसके साथ ही छह साल पहले गुजरात के आनंद से लाए गए लाल खजूर एडीपी-1 का भी सफल प्रयोग हुआ है. इसकी फसल भी प्राप्त हो गई है. एक पौधे से 50 से 70 किलो खजूर मानूसन से पहले ही प्राप्त किए जा सकेंगे. खजूर की इस अवस्था को डेको कहते हैं. वहीं स्वाद के मामले में यह बहुत ही स्वादिष्ट और मीठा होता है.
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डॉक्टर ओपी यादव ने जानकारी दी कि टिशू कल्चर तकनीक से मरूस्थल में खजूर की खेती का प्रयोग सफल रहा है. अब यह किसान के लिए भी उपयोगी है और वे इसका खेती कर सकते हैं. ये खजूर परिपक्व अवस्था से पहले ही बड़े और मीठे हो गए हैं. इनको मानसून से पहले ही उपयोग किया जा सकता है. इसे तोड़कर सीधा बाजार में बेचा जा सकता है. यानी कि खजूर का पिंड बनने से पहले ही इसका उपयोग कर सकते हैं
सीरिया से आए थे 18 पौधे...
बता दें कि सीरिया के इंटरनेशनल सेंटर फॉर ड्राई लैंड एग्रीकल्चर की ओर से 2014 में काजरी को खजूर की 3 किस्म के 18 पौधे दिए गए थे. इनमें मेडुजल वैरायटी का पौधा यहां की परिस्थितियों में पनपने लगा है. इन पौधों में पीले रंग के फल लगे हैं. इसके अलावा कजरी में दूसरा लाल रंग का खजूर भी है. जिसकी पौध गुजरात के आनंद से लाई गई थी. अब काजरी ने इस प्रयोग के सफल होने के बाद थार के मरुस्थल में लगाने के लिए भी हरी झंडी दे दी है.