जयपुर. राज्य उपभोक्ता आयोग ने तीन साल के तय समय में फ्लैट का कब्जा नहीं देने को सेवा दोष (Highcourt Order in flat possession case) माना है. इसके साथ ही आयोग ने बिल्डर को फ्लैट के पेटे जमा राशि नौ फीसदी ब्याज सहित लौटाने के आदेश दिए हैं. मानसिक संताप और परिवाद व्यय के तौर पर दो लाख दस हजार रुपए भी परिवादी को अदा करने को कहा है. आयोग ने यह आदेश अनिल भुटानी के परिवाद पर दिए.
परिवाद में कहा गया कि परिवादी ने शिवराज रेजिडेंसी में अप्रैल 2014 में फ्लैट बुक कराया था जिसका कब्जा अक्टूबर 2017 में दिया जाना था. फ्लैट के पेटे परिवादी ने 22 लाख 54 हजार रुपए से अधिक राशि भी जमा करा दी, लेकिन जून 2019 तक कब्जा नहीं दिया गया. परिवाद में कहा गया कि नियमानुसार तीन साल में कब्जा दिया जाना चाहिए था और इसमें यदि छह माह की ग्रेस अवधि भी जोडी जाए तो अक्टूबर 2017 तक कब्जा मिलना था. जबकि बिल्डर ने लीगल नोटिस देने के बाद भी कब्जा नहीं दिया.
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वहीं बिल्डर की ओर से कहा गया कि मामला आर्बिट्रेशन के जरिए हल किया जाना चाहिए. इसके अलावा फ्लैट पूरी तरह बनकर तैयार है, लेकिन परिवादी ने कब्जा नहीं लिया है. दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि यदि निर्माण पूरा हो चुका है तो पूर्णता प्रमाण पत्र पेश किया जाना चाहिए था, लेकिन बिल्डर ने कोई पुख्ता साक्ष्य पेश नहीं किया. ऐसे में बिल्डर जमा राशि ब्याज सहित लौटाए और अलग से हर्जाना राशि के तौर पर दो लाख दस हजार रुपए भी याचिकाकर्ता को अदा करे.
हाईकोर्ट ने मांगा जवाब
राजस्थान हाइकोर्ट ने प्रदेश में न्यायिक अधिकारियों का दूसरे जिले में तबादला होने पर तत्काल आवास सुविधा उपलब्ध नहीं होने पर राज्य सरकार और अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. इसके साथ ही अदालत ने दो दिसंबर को विधि सचिव को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के आदेश दिए हैं. सीजे पंकज मिथल और जस्टिस एमएम श्रीवास्तव की खंडपीठ ने यह आदेश राजस्थान न्यायिक सेवा अधिकारी एसोसिएशन की याचिका पर दिए हैं.
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याचिका में कहा गया कि न्यायिक अधिकारियों का एक जिले से दूसरे जिले में तबादला होने पर उन्हें तत्काल सरकारी आवास नहीं मिलता है. इसलिए उन्हें सरकारी गेस्ट हाउस या सर्किट हाउस में ठहरना पड़ता है. यहां उनसे सात दिन तक सामान्य सरकारी दर पर किराया वसूला जाता है और बाद में बाजार दर से किराया मांगा जाता है. इसके चलते न्यायिक अधिकारियों को परेशानी उठानी पड़ती है. वहीं आईएएस अधिकारी और आरपीएस अधिकारी सर्किट हाउस में एक महीने से अधिक समय तक सरकारी दर पर रुक सकते हैं. इस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी करते हुए विधि सचिव को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के आदेश दिए हैं.