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पाकिस्तान के छक्के छुड़ाने वाले लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह हो सकते हैं पाठ्यक्रम में शामिल, मंत्री ने दिया आश्वासन - जयपुर

बंग्लादेश में पाकिस्तान की सेना के सामने इंडियन आर्मी की लोहा मनवाने वाले जनरल सगत सिंह को पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग की गई है. शप्त शक्ति कमांड के कमांडर ने शिक्षा विभाग के समक्ष अपनी यह मांग प्रस्तुत की है.

जनरल सगत सिंह की राजस्थान बोर्ड के पाठ्यक्रम में हो सकती है एंट्री

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Published : Jun 21, 2019, 9:59 PM IST

जयपुर. बांग्लादेश को पाकिस्तान से मुक्ति और गोवा को आजादी दिलाने वाले लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह राजस्थान के पाठ्यक्रम में शामिल हो सकते हैं. लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह की जन्म शताब्दी मना रही सेना के शप्त शक्ति कमांड ने इसकी मांग की है. वहीं शिक्षा मंत्री ने उनकी मांग पूरी करने का आश्वासन दिया है.

जनरल सगत सिंह की राजस्थान बोर्ड के पाठ्यक्रम में हो सकती है एंट्री

पद्मभूषण विजेता लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह राजस्थान की किताबों में शामिल हो सकते हैं. राजस्थान के शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि कांग्रेस स्वतंत्रता सेनानियों देश के सैनिकों और देश के वीरों का जितना सम्मान करती है उतना आर एस एस और भाजपा नहीं करती. डोटासरा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने सेना के शौर्य और वीरता के नाम पर चुनाव तो लड़ा, लेकिन सेना के लिए काम करके हमने दिखाया है. उन्होंने कहा कि राजस्थान के पाठ्यक्रम में उन शहीदों की गौरव गाथा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है, वे महावीर चक्र शौर्य चक्र जैसा सम्मान प्राप्त कर चुके हैं. उन्होंने अपनी वीरता से देश और राजस्थान के नाम का मान बढ़ाया है.

डोटासरा ने कहा है कि राजस्थान सरकार आने वाली पीढ़ी के बच्चों को ऐसे वीरों की गाथा पढ़ाना चाहती है जिनका देश और राजस्थान मैं बड़ा योगदान रहा है. सरकार चाहती है कि बच्चे ऐसी गाथाएं पढ़ें और प्रेरणा ले जिससे कि भारत आगे आने वाले समय में और सशक्त बनें.


सप्त शक्ति कमांड के कमांडर ने जनरल सगत सिंह को पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग की
दरअसल, भारतीय सेना का सप्तशती कमांड इस साल को पद्म विभूषण लेफ्टिनेंट जनरल भगत सिंह की जन्म शताब्दी के साल के तौर पर मना रहा है. लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह को गोवा और बांग्लादेश के लोग आज भी बड़े सम्मान के साथ याद करते हैं. कारण इन दोनों की आजादी में लेफ्टिनेंट सगत सिंह की बड़ी भूमिका थी. बांग्लादेश सरकार ने तो बकायदा उनके परिजनों को वहां बुलाकर अपने सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया, लेकिन राजस्थान में लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह के बारे में किसी को ज्यादा जानकारी नहीं होने पर सेना के कमांडर ने दुख भी जताया और यह भी कहा की राजस्थान में जन्मे इस अधिकारी के बारे में सेना के लोगों को छोड़ दिया जाए तो जिस राजस्थान के जनरल सगत सिंह थे उस प्रदेश के बच्चों को ही अपने वीर योद्धा के बारे में नहीं पता.

आर्मी कमांडर चेरिश मैटसन ने साफ कहा कि फौज मांग नहीं करती है, लेकिन राजस्थान की स्कूलों में बच्चों को अपने योद्धा के बारे में तो स्कूल से लेकर कॉलेज स्तर तक पढ़ाया जाना चाहिए. उन्होंने सरकारी स्तर पर अधिकारियों से बात करने के लिए भी कहा था और सरकार से अपील की थी कि ऐसे योद्धा के बारे में अगर राजस्थान के लोग ही नहीं जानेंगे तो फिर यह उस योद्धा के साथ अन्याय है. इसी सवाल के जवाब में गोविंद डोटासरा ने कहा कि सरकार सैन्य अधिकारियों की भावनाओं को समझते हुए इस मामले को जल्द ही दिखाएगी.

यह है वीर योद्धा जनरल सगत सिंह की कहानी
राजस्थान के चुरू जिले के कुसुम देसर गांव में 14 जुलाई 1919 को जन्मे सगत सिंह 1950 में भारतीय सेना में शामिल हुए. नायब सूबेदार के पद से वह बीकानेर के गंगा रिसाला में लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन हुए. फिर उन्होंने दूसरा विश्व युद्ध भी लड़ा. ये 1955 में पहले भारतीय अधिकारी थे, जिन्हें गोरखा राइफल की कमान दी गई. उस वक्त गोरखा राइफल में उनसे पहले सिर्फ ब्रिटिश अधिकारी ही तैनात होते थे.

ऐसा माना जाता है कि गोरखा भारतीय अधिकारी का नेतृत्व स्वीकार नहीं करेंगे, लेकिन लेफ्टिनेंट कर्नल सगत सिंह ने सभी का दिल जीत लिया. साल 1961 में ब्रिगेडियर सगत सिंह ने प्रसिद्ध 50 पैरा की कमान हाथ में ली. उस समय वह पैरा जंपिंग करना तक नहीं जानते थे. पैरा जंप करने वाले अधिकारी की वाह पर ही लगाए जाते थे. इसके बिना सैनिक सम्मान नहीं देते थे. ऐसे में 40 साल से अधिक उम्र होने के बावजूद उन्होंने पैरा जंपिंग का कोर्स पूरा किया. इस बीच वह मौका भी आया जब गोवा को पुर्तगाल के कब्जे से मुक्त कराने के लिए भारतीय सेना के तीनों सेना वायुसेना और नौसेना ने मिलकर संयुक्त ऑपरेशन चलाया. गोवा मुक्ति के लिए 1961 में भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय में 50 पैरा को सहयोगी की भूमिका में चुना गया और इसी के चलते आगे बढ़े 18 सितंबर को 50 पैरा को गोवा में उतारा गया.

19 दिसंबर को उनकी बटालियन गोवा के निकट पहुंच गई. बाहर रखने के बाद उनके जवानों ने तैरकर नदी को पार किया और शहर में प्रवेश किया. उन्होंने अचानक धावा बोलकर पुर्तगाल के सैनिकों सहित करीब 6 लोगों को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया. इसके साथ ही गोवा पर 451 साल से चल रहा हड़ताल का शासन समाप्त हुआ और वह भारत का हिस्सा बन गया.

आगरा में सिविल ड्रेस में जनरल सगत सिंह एक होटल में खाना खाने गए तो उन्हें होटल के कुछ विदेशी उन पर मोस्ट वांटेड होने के बारे में भी जानकारी दी. सगत सिंह का जलवा एक बार फिर साल 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजाद कराने के अभियान के दौरान देखने को मिला. माना जाता है कि अगर उस समय भारतीय सेना पूरी पाकिस्तान में रह रहे आम लोगों के लिए पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी ना होती तो शायद बांग्लादेश आजाद ना होता. सेना ने जब मेघना नदी को पार कर ढाका पर कब्जा किया. जिससे पाकिस्तान सेना की लड़ाई करने की क्षमता ही टूट गई. उन्होंने हथियार डाल दिए. उसके बाद नियाजी ने अपने 93000 सैनिकों के साथ समर्पण कर दिया.

इस तरह 16 दिसंबर 1971 बांग्लादेश का जन्म हुआ. आज इतने सालों बाद भी बंगलादेश के लोग जनरल सिंह का नाम नहीं भूलते. बकायदा बांग्लादेश की सरकार ने सगत सिंह के परिजनों को बुलाकर उनके इस योगदान के लिए उन्हें सम्मानित भी किया है.

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