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विश्व साक्षरता दिवसः 30 प्रतिशत लोगों को आज भी साक्षरता की जरूरत - जयपुर की खबर

निर्भरता को समाप्त करने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन ने 17 नवंबर 1965 के दिन 8 सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस मनाने का फैसला लिया था. लेकिन अभी भी 30 प्रतिशत लोगों को साक्षरता की जरूरत है.

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Published : Sep 8, 2019, 1:39 PM IST

जयपुर. दुनिया से अशिक्षा को समाप्त करने के संकल्प के साथ रविवार को 53वां अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया जा रहा है, लेकिन आजादी के बाद भी आज देश का एक तबका साक्षरता के सर्टिफिकेट के लिए भागदौड़ कर रहा है.आपको बता दे कि यह तो हालत तब है जब देश टेक्नोहब की दुनिया में प्रवेश कर गया है. तेजी से टेक्नोसेवी होती दुनिया में इंटरनेशनल लिटरेसी डे 2017 की थीम 'लिटरेसी इन डिजिटल वर्ल्ड' रखा गया था. लेकिन असल मायनों में फिलहाल कुछ लोग तो कलम पकड़ने की जुगत में ही लगे है.

30 प्रतिशत लोगों को साक्षरता की जरूरत

आज भी पांच में से एक पुरुष और दो तिहाई महिलाएं अनपढ़ है, शिक्षा पर वैश्विक निगरानी रिपोर्ट के तथ्य यह साबित करते है. हालांकि साक्षरता अभियान चलाया गया. जिसके बाद कुछ के पास है कम साक्षरता कौशल है, लेकिन आज भी पूरी तरह से सक्षम नहीं हो पाया है.कुछ बच्चों की पहुंच आज भी स्कूलों से बाहर है और कुछ बच्चे स्कूलों में अनियमित रहते है. लगभग 58.6 फीसदी सबसे कम साक्षरता दक्षिण और पश्चिम एशिया के नाम है.

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साक्षरता के मामले में आजादी के बाद से भारत देश में लगातार वृद्धि की है. वर्ष 1950 में साक्षरता की दर 18 फीसदी थी जो वर्ष 1991 में 52 फीसदी और 65 फीसदी से ज्यादा है, लेकिन सवाल यह है कि अभी भी साक्षरता दिवस का दिन हमें सोचने को मजबूर करता है कि हम क्यों 100 प्रतिशत सक्षम नहीं है. यदि केरल को छोड़ दिया जाए तो बाकी राज्यों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती. सरकार ने साक्षरता को बढ़ाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान, मिड डे मील योजना, प्रौढ़ शिक्षा योजना, राजीव गांधी साक्षरता मिशन आदि ना जाने कितने अभियान चलाए गए। मगर सफलता आशा के अनुरूप नहीं मिली.

राजस्थान की स्थिति
राजस्थान जनगणना 2011 के अनुसार साक्षरता 66.11 फीसदी है जो देश स्तर पर 33वें स्थान पर है. महिला साक्षरता 52.12 फीसदी, पुरुष साक्षरता 52.12 फीसदी है. राजस्थान में सबसे ज्यादा साक्षरता कोटा, जयपुर, झुंझुन, सीकर, भरतपुर और अलवर में है तो वही प्रतापगढ, सिरोही, झालोर में साक्षरता बढ़ाने की आवश्यकता है,

जागरूकता की आवश्यकता
साक्षरता का मतलब केवल पढ़ना लिखना या शिक्षित होना ही नहीं है. यह लोगों में उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूकता लाकर सामाजिक विकास का आधार बन सकती है. शिक्षक शशि भूषण शर्मा ने बताया कि पहले साक्षरता दिवस पर राज्य स्तरीय कार्यक्रम हुआ करता था.
जिसमें निरक्षर लोगों को दो किताब, बैग, स्टेशनरी सहित पूरा किट दिया जाता था लेकिन केंद्र से बजट नहीं आने से अब धीरे धीरे ये खत्म होता जा रहा और साक्षरता अभियान भी नहीं चलाया जा रहा है। यहां तक कि जो प्रेरक लगे हुए थे उनको भी पदों से मुक्त कर दिया गया. शर्मा ने बताया कि केंद्र से बजट नहीं आएगा और राज्य सरकार इसमें कोई सुध नहीं लेगी तो आने वाले समय में साक्षरता विभाग भी बंद हो जाएगा.

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