हनुमानगढ़.जिले में पैदा होने वाले धान की मांग विदेशों में भी है. लेकिन यहां की सरकार को इसकी कद्र नही है. अब धान के समर्थन मूल्य पर खरीद की मांग जिले में मुखर होती जा रही है, इसको लेकर आज भद्रकाली क्षेत्र विकास सेवा समिति की ओर से पत्रकार वार्ता की गई.
इस दौरान उपस्थित किसान व व्यापारी राज्य सरकार पर जमकर बरसे, और उनकी जायज मांग को नहीं मानने के आरोप लगाए. किसान मोर्चा नगर अध्यक्ष भगवान सिंह खुड़ी ने पत्रकार वार्ता में कहा कि पिछले लंबे समय से क्षेत्र के किसान धान की सरकारी खरीद की मांग कर रहे है, इसके लिए धरने प्रदर्शन भी किये जा चुके हैं. विधानसभा तक में मुद्दा उठाया जा चुका है लेकिन किसान हितैषी होने का दावा करने वाली राज्य की कांग्रेस सरकार ने अब तक केंद्र को समर्थन मूल्य पर खरीद करने की अनुशंसा तक नहीं भेजी है. इसका खामियाजा धान उत्पादक हजारों किसानों को भुगतना पड़ रहा है.
किसानों और व्यापारियों ने राज्य सरकार पर किसानों की सुनवाई नहीं करने के आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि हर वर्ष किसानों को करीब 50 करोड़ का नुकसान हो रहा है जिसकी जिम्मेदार राज्य सरकार है. इस मुद्दे को लेकर धान किसानों ने सरकार को चेतावनी दी है.
हालांकि किसानों की मांग को लेकर तीन पत्र कलक्टर ने चीफ सेक्रेटरी फूड एंड सप्लाई को लिखे, लेकिन कोई जवाब नहीं आया. किसान नेता भगवान सिंह खुड़ी ने बताया कि राजस्थान का चावल पंजाब, हरियाणा ने लेना बंद कर दिया है. इससे समस्या बढ़ गई है. किसान नेता खुड़ी ने इस बाबत सोमवार को जिला कलेक्टर को मांग पत्र सौंपने की बात भी कही.
ये है धान का गणित
जिले के काश्तकार परमल व वनस्पति धान की विभिन्न किस्मों की खेती करते हैं. केंद्र सरकार परमल धान का ही समर्थन मूल्य घोषित करती है और इसकी ही खरीद करती है. जिले में समर्थन मूल्य पर खरीद नहीं होने के कारण परमल धान के बाजार भाव बहुत कम रहते हैं. गत वर्ष 1888 रुपए प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य तय था, लेकिन बाजार भाव 1500 रुपए प्रति क्विंटल से भी कम रहे. ऐसे में किसानों को लगभग 50 करोड़ से अधिक का आर्थिक नुकसान हुआ.
इस बार केंद्र सरकार ने समर्थन मूल्य में 72 रुपए की बढ़ोतरी करते हुए प्रति क्विंटल दाम 1960 रुपए कर दिए हैं, लेकिन खरीद के कोई आसार नजर नहीं आ रहे. बाजार भाव कम रहने की वजह से पिछले साल भी समर्थन मूल्य पर खरीद की मांग उठी थी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. इस बार धान की बिजाई के समय से काश्तकार समर्थन मूल्य पर खरीद की मांग कर रहे हैं, लेकिन अब तक राज्य सरकार ने केंद्र को पत्र तक नहीं लिखा है. ऐसे में इस बार भी परमल धान के बाजार भाव कम रहने का अंदेशा है.