धौलपुर. कोरोना वायरस और लॉकडाउन का अर्थव्यवस्था पर कितना बुरा असर हुआ है, ये किसी से छिपा नहीं है. धौलपुर शहर का साड़ियों का कुटीर उद्योग कोरोना की भेंट चढ़ गया है. कुटीर उद्योग बंद होने के कारण वहां काम कर रही महिलाओं के परिवारों पर सबसे अधिक असर पड़ा है. परिवारों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है और इनके पास आजीविका का दूसरा कोई जरिया भी नहीं है. ऐसे में करीब 500 महिला श्रमिकों के परिवार रोजी-रोटी के संकट से जूझ रहे हैं.
कुटीर उद्योग पर कोरोना का असर धौलपुर शहर के कोटला मोहल्ले में पिछले 10 वर्ष से साड़ियों का कुटीर उद्योग संचालित हो रहा है. इस कुटीर उद्योग की करीब 12 शाखाएं जिले के विभिन्न उपखंड और कस्बों में भी संचालित थीं. कुटीर उद्योग के अंदर महंगी एवं बेशकीमती साड़ियों पर रंगाई, कढ़ाई, जयपुर के स्टोन और छटाई का बारीकी से काम किया जाता है. इस बारीकी काम को अंजाम देने में महिला श्रमिक महती भूमिका अदा करती हैं. कुटीर उद्योग के माध्यम से 500 से अधिक महिलाओं की आजीविका का संचालन होता रहा है.
धौलपुर का साड़ी उद्योग ठप माल की खरीद ही नहीं हो रही
कुटीर उद्योग संचालक ने महिलाओं को उनके घरों पर ही साड़ियों की कढ़ाई बुनाई के फ्रेम उपलब्ध कराकर सुविधा भी दी गई है. लेकिन माल की खरीद बंद होने से यह बेशकीमती उद्योग लगभग ठप होने के कगार पर पहुंच चुका है. इस कुटीर उद्योग में जयपुर और जोधपुर के राजघराने की बेशकीमती साड़ियां भी तैयार की जाती थीं. कुटीर उद्योग संचालक असलम खान ने बताया कि कोरोना की पहली लहर आने के बाद लगे लॉकडाउन के बाद ही कारोबार पर बुरा असर पड़ा था. लेकिन दूसरी लहर ने इस कुटीर उद्योग को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है.
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कई राज्यों में जाती हैं धौलपुर में तैयार साड़ियां
कई लाखों की लागत से बनी हुई साड़ियां बर्बाद हो रही हैं. स्टॉक रखा माल खराब होने के कगार पर पहुंच गया है. व्यापारियों के डिमांड पूरी तरह से बंद हो चुकी है. हालात ये हैं कि कारोबार पूरी तरह से चौपट हो गया है. असलम ने बताया कि यहां की बेशकीमती साड़ियां उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, उड़ीसा, तमिलनाडु, हैदराबाद और राजस्थान में सप्लाई की जाती थी. बड़े-बड़े शोरूम संचालक धौलपुर की साड़ियों की डिजाइन को पसंद करते थे. लेकिन कोरोना की दूसरी लहर ने बेशकीमती कुटीर उद्योग को औंधे मुंह ला दिया है.
सैंकड़ों महिलाओं को मिल रहा था रोजगार
इस कुटीर उद्योग के माध्यम से जिले की 500 से अधिक महिलाओं को रोजगार दिया जा रहा था. जिसमें महिलाएं साड़ियों पर कढ़ाई, बुनाई, कटाई और छटाई का बारीकी से काम करती थीं. इस काम के एवज में महिलाएं 500 से लेकर 1000 तक की मजदूरी 1 दिन में कमाती थीं. लेकिन मौजूदा समय में धंधा बिल्कुल बंद पड़ा हुआ है.
कुटीर उद्योग खत्म होने से खाने के लाले महिला श्रमिकों ने बताया कि इस कुटीर उद्योग के माध्यम से ही उनके परिवार का भरण-पोषण हो रहा था, पिछले वर्ष भी लॉकडाउन के दौरान परिवारों की हालत खराब हुई थी. लेकिन कोरोना की दूसरी लहर ने इनके परिवारों को दाने-दाने के लिए मोहताज कर दिया है. मौजूदा समय में रोजी-रोटी के लाले पड़ रहे हैं. परिवारों पर आर्थिक संकट गहरा गया है.
कोरोना का उद्योगों पर बुरा असर उद्योग संचालक असलम ने बताया कि 1 वर्ष में उसके कारोबार का लगभग 2 से 3 करोड़ रुपए का टर्नओवर होता था, लेकिन मौजूदा समय में कोरोना महामारी के कारण यह कारोबार पूरी तरह से चौपट हो चुका है. अगर सरकार और बैंक इसमें आर्थिक मदद प्रदान करती है तो कारोबार को खड़ा किया जा सकता है.