चूरू. कश्मीर के लिए प्यार कहे या घाटी के लिए अपनापन चाहे कुछ भी कहो घाटी के बाशिंदों के लिए जब मरुधरा का दिल पसीजा तो कश्मीरियों को अपनों से मिलाने की कवायद भी तेज हो गई. जब चारों ओर से निराशा हाथ लगी तो आशा की अब किरण भी दिखाई दी.
लॉकडाउन ने जहां घाटी के इन लोगों को वहां जाने को मजबूर किया जहां लोग मुर्दों को ले जाने से भी कतराते हैं. हालातों ने कब्रिस्तान में इन कश्मीरियों को रात बिताने को मजबूर किया. लॉकडाउन में पिछले दो माह से चूरू फंसे कश्मीरियों का दर्द कुछ ऐसा ही है. जिस दो वक्त की रोटी के लिए यह कश्मीरी चूरू आए उस रोटी के लिए पिछले दो माह से दर-दर भटकते इन कश्मीरियों को अपने घर तक पहुंचाने के लिए अब व्हाट्सएप ग्रुप मददगार बन रहा है और इस ग्रुप के माध्यम से इन कश्मीरियों को घर भेजने के लिए पैसे इकट्ठे किए जा रहे हैं.
दरअसल, लॉकडाउन के बाद जब रोजगार के सारे अवसर बंद हो गए तो इन कश्मीरियों के सामने दो वक्त के खाने और रहने का संकट आ खड़ा हुआ. लकड़ी काटने का काम करने वाले जब इन कश्मीरियों की जेब और पेट खाली हुए तो इन कश्मीरियों ने कब्रिस्तान में पनाह ली. जिसके बाद कुछ सामाजिक संगठन मदद के लिए आगे आए और खाने का जुगाड़ करवाया.