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भारत का इकलौता Tax Free राज्य... नहीं देना पड़ता आयकर, जानें इसकी खास वजह - SIKKIM TAX ACT

Sikkim Tax Free: सरकारों के लिए राजस्व जुटाने का प्रमुख स्रोत टैक्स होता है, इसलिए सरकारें अपने नागरिकों से विभिन्न प्रकार से टैक्स वसूलती है.

state in India Sikkim exempted from Income Tax Act
भारत का इकलौता Tax Free राज्य... नहीं देना पड़ता आयकर, जानें इसकी खास वजह (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : 2 hours ago

हैदराबाद: भारत में नागरिकों को इनकम टैक्स से लेकर जीएसटी तक कई प्रकार से टैक्स भरने पड़ते हैं. केंद्रीय टैक्स के साथ-साथा राज्य सरकारों की तरफ से टैक्ट वसूले जाते हैं.

देश में सरकार द्वारा निर्धारित आय सीमा के बाद सभी नागरिकों को इनकम टैक्स देना पड़ता है, अगर आपकी कमाई तय सीमा से ज्यादा है. लेकिन, देश में एक राज्य के नागरिकों को कमाई पर कोई टैक्स नहीं भरना पड़ता है.

हम बात कर रहे हैं, हिमालयी राज्य सिक्किम की. हिमालय पर्वत श्रंखला की खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा यह राज्य भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित है. सिक्किम अपनी सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है. भारत के अन्य राज्यों के विपरीत सिक्किम को इनकम टैक्स में छूट प्राप्त है.

भारतीय आयकर अधिनियम की धारा 10 (26AAA) के तहत एक विशेष प्रावधान के तहत सिक्किम को भारत में विलय के बाद से आयकर का भुगतान करने से छूट मिली हुई है. यह छूट राज्य की उस समय की कर संरचना को संरक्षित करने के लिए दी गई थी, जो भारत में विलय से पहले सिक्किम में लागू थी.

1975 में, भारत में शामिल होने से पहले सिक्किम के पास खुद की कर प्रणाली थी. यहां के निवासी भारतीय आयकर अधिनियम के अधीन नहीं थे. उस समय की कर प्रणाली बनाए रखने के लिए भारत सरकार ने सिक्किम को आयकर से विशेष छूट दी.

सिक्किम आयकर छूट अधिनियम
2008 के केंद्रीय बजट में सिक्किम कर अधिनियम को निरस्त कर दिया गया और आयकर अधिनियम की धारा 10 (26AAA) के जरिये सिक्किम के निवासियों को आयकर का भुगतान करने से छूट दी गई. यह कदम भारत के संविधान के अनुच्छेद 371(एफ) के तहत सिक्किम के विशेष दर्जे को बनाए रखने के लिए उठाया गया था.

कानूनी अड़चनें

2013 में, सिक्किम के निवासियों के संघ और अन्य ने आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 10 (26AAA) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी. उनका तर्क था कि इस धारा के तहत 'सिक्किमी' की परिभाषा ने गलत ढंग से दो श्रेणियों के व्यक्तियों को टैक्स छूट से बाहर रखा है:

  • 26 अप्रैल, 1975 को भारत में विलय से पहले सिक्किम में बसे भारतीय
  • 1 अप्रैल, 2008 के बाद गैर-सिक्किमी पुरुषों से विवाह करने वाली सिक्किम की महिलाएं

करदाताओं ने तर्क दिया कि यह बहिष्कार अनुचित और भेदभावपूर्ण है. वे चाहते थे कि कर छूट में 1 अप्रैल, 1975 से पहले सिक्किम में बसे सभी व्यक्ति शामिल हों, जिनके नाम रजिस्टर में नहीं थे. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि 1 अप्रैल, 2008 के बाद गैर-सिक्किमी पुरुषों से शादी करने वाली सिक्किमी महिलाओं को छूट देने से इनकार करना भेदभावपूर्ण है.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने फैसला सुनाया कि 1 अप्रैल, 2008 के बाद गैर-सिक्किमी पुरुषों से शादी करने वाली सिक्किम की महिलाओं को टैक्स छूट देने से इनकार करना वास्तव में भेदभावपूर्ण है. यह नियम सिक्किम के उन पुरुषों पर लागू नहीं होता जिन्होंने गैर-सिक्किमी महिलाओं से शादी की या उन सिक्किमी महिलाओं पर लागू नहीं होता जिन्होंने इस तिथि से पहले गैर-सिक्किमी पुरुषों से शादी की. शीर्ष अदालत ने इस नियम को अनुचित और समानता के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन पाया.

26 अप्रैल, 1975 से पहले सिक्किम में बसे उन भारतीयों के लिए, जिनके नाम सिक्किम सब्जेक्ट्स रजिस्टर में नहीं हैं, जजों ने इस बात पर सहमति जताई कि छूट न देना भेदभावपूर्ण है, लेकिन उन्होंने अलग समाधान सुझाए. जस्टिस एमआर शाह ने छूट न देने वाले नियम को खारिज कर दिया, जबकि जस्टिस बीवी नागरत्ना ने संविधान के अनुच्छेद 142 का उपयोग करके केंद्र सरकार को इन व्यक्तियों को टैक्स छूट देने के लिए धारा 10 (26AAA) में एक खंड जोड़ने का निर्देश दिया. उन्होंने आदेश दिया कि जब तक कानून में संशोधन नहीं हो जाता, तब तक इन व्यक्तियों को धारा 10 (26AAA) के तहत टैक्स छूट मिलनी चाहिए.

यह भी पढ़ें- ऑनलाइन वेटिंग टिकट वालों पर दोहरी मार, कैसे खत्म होगी ट्रेन यात्रियों की समस्या !

हैदराबाद: भारत में नागरिकों को इनकम टैक्स से लेकर जीएसटी तक कई प्रकार से टैक्स भरने पड़ते हैं. केंद्रीय टैक्स के साथ-साथा राज्य सरकारों की तरफ से टैक्ट वसूले जाते हैं.

देश में सरकार द्वारा निर्धारित आय सीमा के बाद सभी नागरिकों को इनकम टैक्स देना पड़ता है, अगर आपकी कमाई तय सीमा से ज्यादा है. लेकिन, देश में एक राज्य के नागरिकों को कमाई पर कोई टैक्स नहीं भरना पड़ता है.

हम बात कर रहे हैं, हिमालयी राज्य सिक्किम की. हिमालय पर्वत श्रंखला की खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा यह राज्य भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित है. सिक्किम अपनी सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है. भारत के अन्य राज्यों के विपरीत सिक्किम को इनकम टैक्स में छूट प्राप्त है.

भारतीय आयकर अधिनियम की धारा 10 (26AAA) के तहत एक विशेष प्रावधान के तहत सिक्किम को भारत में विलय के बाद से आयकर का भुगतान करने से छूट मिली हुई है. यह छूट राज्य की उस समय की कर संरचना को संरक्षित करने के लिए दी गई थी, जो भारत में विलय से पहले सिक्किम में लागू थी.

1975 में, भारत में शामिल होने से पहले सिक्किम के पास खुद की कर प्रणाली थी. यहां के निवासी भारतीय आयकर अधिनियम के अधीन नहीं थे. उस समय की कर प्रणाली बनाए रखने के लिए भारत सरकार ने सिक्किम को आयकर से विशेष छूट दी.

सिक्किम आयकर छूट अधिनियम
2008 के केंद्रीय बजट में सिक्किम कर अधिनियम को निरस्त कर दिया गया और आयकर अधिनियम की धारा 10 (26AAA) के जरिये सिक्किम के निवासियों को आयकर का भुगतान करने से छूट दी गई. यह कदम भारत के संविधान के अनुच्छेद 371(एफ) के तहत सिक्किम के विशेष दर्जे को बनाए रखने के लिए उठाया गया था.

कानूनी अड़चनें

2013 में, सिक्किम के निवासियों के संघ और अन्य ने आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 10 (26AAA) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी. उनका तर्क था कि इस धारा के तहत 'सिक्किमी' की परिभाषा ने गलत ढंग से दो श्रेणियों के व्यक्तियों को टैक्स छूट से बाहर रखा है:

  • 26 अप्रैल, 1975 को भारत में विलय से पहले सिक्किम में बसे भारतीय
  • 1 अप्रैल, 2008 के बाद गैर-सिक्किमी पुरुषों से विवाह करने वाली सिक्किम की महिलाएं

करदाताओं ने तर्क दिया कि यह बहिष्कार अनुचित और भेदभावपूर्ण है. वे चाहते थे कि कर छूट में 1 अप्रैल, 1975 से पहले सिक्किम में बसे सभी व्यक्ति शामिल हों, जिनके नाम रजिस्टर में नहीं थे. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि 1 अप्रैल, 2008 के बाद गैर-सिक्किमी पुरुषों से शादी करने वाली सिक्किमी महिलाओं को छूट देने से इनकार करना भेदभावपूर्ण है.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने फैसला सुनाया कि 1 अप्रैल, 2008 के बाद गैर-सिक्किमी पुरुषों से शादी करने वाली सिक्किम की महिलाओं को टैक्स छूट देने से इनकार करना वास्तव में भेदभावपूर्ण है. यह नियम सिक्किम के उन पुरुषों पर लागू नहीं होता जिन्होंने गैर-सिक्किमी महिलाओं से शादी की या उन सिक्किमी महिलाओं पर लागू नहीं होता जिन्होंने इस तिथि से पहले गैर-सिक्किमी पुरुषों से शादी की. शीर्ष अदालत ने इस नियम को अनुचित और समानता के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन पाया.

26 अप्रैल, 1975 से पहले सिक्किम में बसे उन भारतीयों के लिए, जिनके नाम सिक्किम सब्जेक्ट्स रजिस्टर में नहीं हैं, जजों ने इस बात पर सहमति जताई कि छूट न देना भेदभावपूर्ण है, लेकिन उन्होंने अलग समाधान सुझाए. जस्टिस एमआर शाह ने छूट न देने वाले नियम को खारिज कर दिया, जबकि जस्टिस बीवी नागरत्ना ने संविधान के अनुच्छेद 142 का उपयोग करके केंद्र सरकार को इन व्यक्तियों को टैक्स छूट देने के लिए धारा 10 (26AAA) में एक खंड जोड़ने का निर्देश दिया. उन्होंने आदेश दिया कि जब तक कानून में संशोधन नहीं हो जाता, तब तक इन व्यक्तियों को धारा 10 (26AAA) के तहत टैक्स छूट मिलनी चाहिए.

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