चित्तौड़गढ़. जैसे-जैसे सर्दी का असर तेज हो रहा है, उसी रफ्तार से लोगों की खानपान की शैली में भी बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. खासकर गर्म खाद्य पदार्थों का महत्व बढ़ गया है. मक्का के साथ-साथ तिलहन के खाद्य पदार्थों का उपयोग बढ़ गया है. सूखे मेवे की मांग भी तेजी पकड़ ली है. गरीब से लेकर अमीर हर परिवार में मक्का से बनने वाले दाल ढोकले की डिश सजने लगी है.
मेवाड़ में दाल ढोकले को स्पेशल डिस माना जाता है. तिलहन की गजक और अधकचरे तिलहन की मांग काफी तेज हो गई. सर्दी में शरीर को काफी एनर्जी की जरूरत होती है और इस मौसम को खानपान के लिहाज से बेहतर माना जाता है. ऐसे में खाद्य पदार्थों में सूखे मेवे की अहमियत भी बढ़ गई है.
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दीपावली के बाद से ही सर्दी का मौसम दस्तक दे देता है, लेकिन इस बार दिसंबर से सर्दी चमकी और इसके साथ ही लोगों के खानपान में भी तेजी से बदलाव देखने को मिला. सर्दी को खानपान और पहनावे के लिहाज से सबसे बेहतर मौसम माना जाता है. शरीर को इस मौसम में एक्स्ट्रा एनर्जी की आवश्यकता रहती है. ऐसे में गर्म और ऊर्जा देने वाले खाद्य पदार्थों की अहमियत बढ़ जाती है.
मेवाड़ में आने वाले चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, उदयपुर, राजसमंद आदि जिलों में शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्र तक खानपान में काफी बदलाव देखा जा सकता है. खासकर मक्का का उपयोग बढ़ जाता है. मक्के की रोटी के साथ तिलहन का तेल और गुड़ के अलावा स्पेशल डिश दाल-ढोकले का उपयोग बढ़ जाता है. इसे देखते हुए कच्ची घानी का उद्योग चमक उठा है. जगह जगह कच्ची घानी का तेल और अधकचरी तिलहन जिसे स्थानीय भाषा में कान्या कहा जाता है, उसकी डिमांड भी काफी जोर पकड़ रही है. इसमें तिलहन से तेल निकालने की बजाए केवल अधकचरा रख दिया जाता है और गुड़ काजू बादाम आदि मिलाकर खाने का चलन है. अकेले शहर में ही 15 से लेकर 20 कच्ची घानी चल रही है.