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Special: सर्दी ने बदला जीभ का जायका, घरों में दाल ढोकले और सूखे मेवे ने ली जगह

चित्तौड़गढ़ में सर्दी का असर तेज होने के साथ ही वहां के लोगों की खानपान में बदलाव दिखना शुरू हो गया है. जिले में तिलहन के खाद्य पदार्थों का उपयोग बढ़ गया है. देखिए ये रिपोर्ट...

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Published : Jan 17, 2021, 11:07 PM IST

सर्दी के पकवान,  winter food
सर्दी ने बदला जीभ का जायका

चित्तौड़गढ़. जैसे-जैसे सर्दी का असर तेज हो रहा है, उसी रफ्तार से लोगों की खानपान की शैली में भी बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. खासकर गर्म खाद्य पदार्थों का महत्व बढ़ गया है. मक्का के साथ-साथ तिलहन के खाद्य पदार्थों का उपयोग बढ़ गया है. सूखे मेवे की मांग भी तेजी पकड़ ली है. गरीब से लेकर अमीर हर परिवार में मक्का से बनने वाले दाल ढोकले की डिश सजने लगी है.

सर्दी ने बदला जीभ का जायका

मेवाड़ में दाल ढोकले को स्पेशल डिस माना जाता है. तिलहन की गजक और अधकचरे तिलहन की मांग काफी तेज हो गई. सर्दी में शरीर को काफी एनर्जी की जरूरत होती है और इस मौसम को खानपान के लिहाज से बेहतर माना जाता है. ऐसे में खाद्य पदार्थों में सूखे मेवे की अहमियत भी बढ़ गई है.

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दीपावली के बाद से ही सर्दी का मौसम दस्तक दे देता है, लेकिन इस बार दिसंबर से सर्दी चमकी और इसके साथ ही लोगों के खानपान में भी तेजी से बदलाव देखने को मिला. सर्दी को खानपान और पहनावे के लिहाज से सबसे बेहतर मौसम माना जाता है. शरीर को इस मौसम में एक्स्ट्रा एनर्जी की आवश्यकता रहती है. ऐसे में गर्म और ऊर्जा देने वाले खाद्य पदार्थों की अहमियत बढ़ जाती है.

सूखे मेवे ने ली जगह

मेवाड़ में आने वाले चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, उदयपुर, राजसमंद आदि जिलों में शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्र तक खानपान में काफी बदलाव देखा जा सकता है. खासकर मक्का का उपयोग बढ़ जाता है. मक्के की रोटी के साथ तिलहन का तेल और गुड़ के अलावा स्पेशल डिश दाल-ढोकले का उपयोग बढ़ जाता है. इसे देखते हुए कच्ची घानी का उद्योग चमक उठा है. जगह जगह कच्ची घानी का तेल और अधकचरी तिलहन जिसे स्थानीय भाषा में कान्या कहा जाता है, उसकी डिमांड भी काफी जोर पकड़ रही है. इसमें तिलहन से तेल निकालने की बजाए केवल अधकचरा रख दिया जाता है और गुड़ काजू बादाम आदि मिलाकर खाने का चलन है. अकेले शहर में ही 15 से लेकर 20 कच्ची घानी चल रही है.

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व्यवसायियों की मानें तो प्रतिदिन 40 से लेकर 50 हजार तक का कारोबार हो जाता है. इसके अलावा तिलहन से बनने वाले गजब की बिक्री में भी तेजी देखी जा सकती है. इस मौसम में गजक की स्पेशल दुकानें भी देखी जा सकती है, वहीं डिमांड को देखते हुए आजकल मिठाई से लेकर किराने की दुकानों पर भी गुड़ और शक्कर से बनी तिलहन और मूंगफली की गजक देखी जा सकती है. प्रतिदिन 1 से लेकर डेढ़ लाख के बीच गजब का कारोबार होने का अनुमान जताया गया है.

सर्दी के इस मौसम में सूखे मेवे का उपयोग भी अपेक्षाकृत बढ़ा हुआ दिखाई देता है. इसके अंतर्गत काजू, द्राक्ष, बादाम और खजूर आदि की बिक्री और भी तेज हो जाती है. घरों में मूंग की दाल के लड्डू बनाने का भी रिवाज है. प्रमुख चौराहों और मिठाई की दुकानों पर काजू बादाम के दूध की बिक्री भी तेजी पकड़ लेती है.

मिठाई की दुकान लगाने वाले उमेश पीरिया का कहना है कि गुड़ और चीनी की गजक की काफी डिमांड रहती है. स्थानीय स्तर पर बनने वाली गजक के अलावा बाहर से भी गजक मंगवाई जाती है. हालांकि ब्रांडेड गजक की मांग ज्यादा रहती है. किराना व्यवसाई विजय अग्रवाल के अनुसार सर्दी के मौसम में सूखे मेवे की मांग 40 फीसदी से अधिक तक पहुंच जाती है.

प्रतिदिन शहर में ही 3 लाख से लेकर 4 लाख के सूखे मेवे की बिक्री हो जाती है. कच्ची घानी चलाने वाले नारायण जाट का कहना है कि तिलहन के तेल की डिमांड अच्छी रहती है क्योंकि घरों में मक्के की रोटी के साथ तिलहन का तेल और गुड़ खाने का रिवाज है. कान्या की मांग भी अच्छी रहती है क्योंकि इसे काफी माना जाता है.

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