बूंदी. साल 2010 का वह दिन, जो बूंदी जिले के लिए तबाही लेकर आया था. 15 अगस्त को अचानक ही जिले के 35 किलोमीटर दूर स्थित गरड़दा बांध सुबह के समय टूटकर गिर गया. बांध का बड़ा हिस्सा टूट जाने के चलते हजारों क्यूसेक पानी बेकार में बह गया. इस तबाही के चलते बांध के आस-पास के सभी गांव जलमग्न हो गए थे. भष्ट्राचार की नींव पर बना यह बांध घटिया सामनों के कारण टूटा था.
इस साल भी नहीं बनेगा गरड़दा बांध 2010 की वह सुबह बूंदी के लिए तबाही का मंजर लेकर आई थी. बांध ढह जाने के कारण पानी से कई ग्रामीणों के मकान टूट गए. इसके बाद इस बांध की मरम्मत के लिए कई कंपनियां आईं और चली गईं. लेकिन इस बांध के पुर्ननिर्माण का सपना अब तक पूरा नहीं हो सका है.
इस मानसून में भी नहीं भर पाएगा बांध...
वर्तमान में भी बूंदी के इस गरड़दा मध्यम बांध परियोजना में निर्माण कार्य चल रहा है. लेकिन जिस जगह से यह बांध टूटा था वह हिस्सा अभी तक नहीं बन पाया है. 10 साल बीत गए, लेकिन अभी तक भी यह बांध जस का तस है. ऐसे में साफ है कि इस साल के मानसून में भी यह बांध भर नहीं पाएगा और पानी का स्टोरेज नहीं हो पाएगा.
वर्तमान में जारी है निर्माण कार्य साल 2010 में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस बांध का शिलान्यास किया था और यह बांध बनकर तैयार हो गया था. जैसे ही बरसात हुई तो बांध लबालब हो गया और सभी ग्रामीणों को उम्मीद जगी कि इस बांध से जरूर आदिवासी इलाके पठारी इलाके को पानी नसीब होगा. लेकिन 2010 को ही यह बांध के अचानक टूट जाने से लोगों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा.
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बांध से 100 गांवों में सप्लाई हो सकता है पानी...
इस बांध से करीब 100 से अधिक बड़े गांवों को पानी मिलता है. साथ में नहरी सिंचाई परियोजना भी इस बांध से जुड़ जाती तो बूंदी का बड़ा हिस्सा जो पठारी इलाके से जुड़ा हुआ है, उस इलाके में पानी पहुंच जाता. लेकिन वह सपना साकार नहीं हो सका और बांध टूट जाने से आज तक उन ग्रामीणों और किसानों को पानी नसीब नहीं हो सका.
इस बांध से 100 गांव के लोगों की दूर हो सकती है पानी की समस्या बांध का पानी ना मिल पाने से परेशान किसान अपने निजी स्तरों से पानी का जुगाड़ कर काम चला रहे हैं. इलाके के लोगों ने मांग की है कि सरकार जल्द से जल्द निर्माण कार्य में गति बढ़ाए, ताकि समय पर इस बांध का निर्माण करवाया जा सके.
फिल्म के सहारे तैयार हो रहा बांध...
वर्तमान में कोटा की एक कंट्रक्शन कंपनी इस बांध के निर्माण कार्य को करने में लगी हुई है. इस बांध को अब एक फिल्म के सहारे बनाया जा रहा है और पाल को फिल्म लगाकर तैयार किया जा रहा है. 3 तरह की बड़ी फिल्में यहां पर लगाई गई हैं. जिससे बांध में पानी रुका रहेगा और रिसाव नहीं होगा.
राजस्थान का पहला बांध जो फिल्म पर टिका होगा...
इस बांध में कपड़े की फिल्म का उपयोग किया जा रहा है. राजस्थान में पहली बार किसी बांध के निर्माण में इस फिल्म का उपयोग किया गया है. जिससे जियो टेक्सटाइल के नाम से जाना जाता है. यह पानी को छानने का काम करती है. बांध में पानी के दबाव के दौरान भी इस फिल्म से दीवारें सुरक्षित रहेंगी ऐसा दावा कंपनी द्वारा किया गया है.
10 साल पहले अचानक टूट गया था गरड़दा बांध बांध निर्माण कंपनी के इंचार्ज अहमद इकराम ने बताया कि जल्द ही बांध के निर्माण कार्य को पूरा कर लिया जाएगा. लेकिन इस वर्ष बांध का काम पूरा नहीं होगा, क्योंकि बांध जहां से टूटा था वहां पर पठारी इलाका होने से इस निर्माण में दिक्कत आ रही है. साथ में बांध की पालो पर फिल्म लगाने का काम किया जा रहा है. जहां-जहां से रिसाव होता है, वहां-वहां रिसाव रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं. कंपनी का दावा है कि अगले साल इस बांध के मरम्मत का कार्य पूरा हो जाएगा.
लॉकडाउन बना रोड़ा...
बांध का निर्माण कोटा की कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा किया जा रहा है. जिसने 3 साल पूर्व बांध का निर्माण कार्य शुरू किया था और 2020 फरवरी में इस कार्य को पूरा करना था. लेकिन यह कार्य अभी तक भी अधूरा है. इस साल भी लॉकडाउन होने की वजह से यह अधूरा ही रहने वाला है.
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ग्रामीणों ने चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि समय पर इसका काम पूरा हो जाता तो आज नए मानसून में हमें इस बांध से कुछ ना कुछ पानी जरूर मिलता. लेकिन फिर हमें अगले साल का इंतजार करना होगा.
10 साल बाद भी नहीं हो पाया बांध का पुनर्निर्माण कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि लॉकडाउन की वजह से बजरी हमें समय पर नहीं मिल पाई. जिसके चलते हम इस कार्य को पूरा नहीं कर सके. लेकिन कंपनी का कहना है कि अगले साल यह बांध पूरी तरह से बनकर तैयार हो जाएगा.
बूंदी में हर साल मानसून में 24 बांध लबालब होकर भर जाते हैं और गरड़दा बांध के ग्रामीण अपने इस बांध को टूटा हुआ देख बड़े ही चिंतित रहते हैं. जिस जगह से यह टूटा था, वहीं से पानी रिसता हुआ चला जाएगा. अब जरूरत है कि निर्माण कंपनी को कि वह इस बांध को जल्द से जल्द तैयार करे, ताकि बूंदी के इस इलाके के लोग अपनी प्यास बुझा सकें.