बाड़मेर.ईटीवी भारत जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर कुंडला ग्राम पंचायत पहुंचा है. गांव में पहुंचते ही हमारी मुलाकात 8वीं क्लास में पढ़ने वाले छात्र सुरेंद्र से हुई. सुरेंद्र कहता है कि हाल ही में उसने 8वीं के एग्जाम दिए हैं. इस ग्राम पंचायत की आबादी करीबन 2 हजार 800 से ज्यादा है. ग्राम पंचायत में सात स्कूल हैं. अभी तक 31 से ज्यादा प्रवासी गांव में आ चुके हैं और सभी का क्वॉरेंटाइन समय फिलहाल पूरा हो चुका है.
छात्र सुरेंद्र कहता है कि हमारे गांव के लोग कोरोना वायरस को लेकर जागरूक हैं...मैंने लॉकडाउन के दौरान अपनी आगे की कक्षा की पूरी तैयारी घर पर बैठकर कर ली है. मुझे इस बात की बेहद खुशी है कि हमारा गांव पूरी तरह से कोविड-19 से मुक्त है और हमारे यहां के लोग इस महामारी से निपटने के लिए पूरी तरीके से सतर्क हैं.
ईटीवी भारत की टीम अब गांव में पहुंच चुकी थी, जहां बुजुर्ग सोशल डिस्टेंसिंग की पालना करते हुए नजर आए. ग्रामीण मदन सिंह बताते हैं कि जैसे ही लॉकडाउन हुआ तो गांव के बड़े बुजुर्गों ने यह फैसला किया कि इस बीमारी से लड़ने के लिए हम सबको एक होना चाहिए. गांव से कोई भी शहर नहीं जाएगा और अगर कोई सरकारी कर्मचारी है वह शहर जाएगा तो वापस आते समय कोविड-19 के नियमों की पालना करेगा.
मदन सिंह कहते हैं कि हमने पूरी तरह से बाहर से आने वाले लोगों के लिए अलग से गांव में व्यवस्था की थी, उन्हें 14 दिन के लिए हमने अलग रखा. गांव के अंदर 31 से ज्यादा लोग घर वापसी कर चुके हैं, जिनका क्वॉरेंटाइन पूरा हो गया है. मदन सिंह के अनुसार गांव में सबसे बड़ी दिक्कत कोविड-19 में हमें इस बात से लड़ रहे हैं कि पूरे शहर के प्लांट का गंदा पानी गांव के चारों तरफ फैला है.
वहीं, बुजुर्ग देवी सिंह से हमारी मुलाकात हुई, जिन्होंने अपनी जेब में रखे सैनिटाइजर से हमारे हाथ भी सैनिटाइज किए. उन्होंने कहा कि जब से यह महामारी शुरू हुई है उसके बाद से ही कोविड-19 के नियमों की पालना कर रहे हैं. बुजुर्ग कहते हैं कि मैं दो महीने तक अपने घर से बाहर नहीं निकला, लेकिन अब जब निकलता हूं तो मुंह पर मास्क और बार-बार हाथों को सैनिटाइज करता रहता हूं.
उन्होंने कहा कि मैंने अपनी 70 साल की उम्र में इस तरह की महामारी नहीं देखी है. हम ग्रामीणों से बात कर रहे थे इसी दौरान हमने पता किया तो पता चला कि मुंबई से भी कुछ प्रवासी हाल ही में कुंडला ग्राम पंचायत अपने घर लौटे हैं.
ग्रामीणों में रोजगार की पीड़ा...
मुंबई से आए इन सभी लोगों को होम क्वॉरेंटाइन किया गया था. फिलहाल, सभी का क्वॉरेंटाइन समय पूरा हो चुका है. ग्रामीण महेंद्र सिंह कहते हैं कि 29 मार्च को वह अपने गांव वापस लौटे थे और पूरी तरह से 15 दिन के लिए होम क्वॉरेंटाइन थे. उन्होंने कहा कि गांव वालों ने बहुत अच्छा अरेंजमेंट किया था. इसके लिए गांव वालों का आभारी हूं, लेकिन अब सबसे बड़ी समस्या हमारी रोजगार को लेकर है. मैं मुंबई में काम करता था, अब वहां जा नहीं सकता हूं. इसलिए रोजगार की चिंता बहुत सता रही है.