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कोरोना कालचक्र पेट पर पड़ रहा भारी, सहरिया परिवार 'महुआ' खाने को मजबूर - corona virus

शाहबाद आदिवासी अंचल क्षेत्र में निवास करने वाले गरीब मजलूम वर्ग के लोगों को मेहनत मजदूरी नहीं मिलने से परिवार का खर्चा चलाना मुश्किल हो गया है. ऐसे में अब सहरिया परिवार जंगलों का रुख करने लगे हैं.जंगलों से महुआ लाकर अपने परिवार का भरण पोषण करने में लगे हुए हैं.

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जंगलों से महुआ लाकर पेट पालता है सहरिया परिवार

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Published : Apr 21, 2020, 2:31 PM IST

शाहबाद (बारां).प्रदेश में कोरोना के चलते लॉकडाउन लगा हुआ है, ऐसे में शाहबाद आदिवासी अंचल क्षेत्र में निवास करने वाले गरीब मजलूम वर्ग के लोगों को मेहनत मजदूरी नहीं मिलने से परिवार का खर्चा चलाना मुश्किल हो गया है. ऐसे में अब सहरिया परिवार जंगलों का रुख करने लगे हैं.

जंगलों से महुआ लाकर पेट पालता है सहरिया परिवार

बता दें, कि जंगलों से महुआ लाकर अपने परिवार का भरण पोषण करने में लगे हुए हैं. जंगलों में महुआ संग्रहण करने के लिए कई परिवारों ने डेरे डाल दिए हैं. परिवार के लोगों का कहना है, कि महुआ संग्रहण से अच्छी आमदनी हो जाती है. अब लॉकडाउन के चलते रोजगार भी नहीं मिल रहा है. ऐसे में जंगलों पर निर्भर रहकर ही अपनी आजीविका का संचालित कर रहे हैं. महुआ संग्रहण कर एक साथ व्यापारी को बेचते हैं तो अच्छी मोटी इनकम हो जाती है.

गोविंदा सहरिया ने बताया, कि कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन लगा हुआ है. ऐसे में घर परिवार का खर्चा चलाना मुश्किल साबित हो रहा है. घर परिवार के बाल बच्चों को लेकर के जंगलों में महुआ बीनने के लिए सहरिया परिवार डेरा जमाए हुए हैं. अगर घर पर रहे तो कोई खाने पीने का जुगाड़ नहीं है. थोड़ी बहुत राशन मिलता है, उससे घर परिवार में खर्चा चलाने का जुगाड़ नहीं हो पाता है. ऐसे में मजबूर होकर घर परिवार के बच्चों को लेकर जंगलों में पड़े रहना मजबूरी बन गया है.

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कैसे रहते हैं बियाबान जंगल में आदिवासी...

लॉकडाउन के चलते अब सहरिया परिवारों को रोजगार नहीं मिल रहा है. इसके चलते सहरिया परिवार जंगलों की ओर रुख करने लगे हैं. जंगलों में अपने बाल बच्चों के साथ सहरिया परिवार किस तरीके से अपनी गुजर-बसर करते हैं, यह घर से सारी सामग्री लेकर जंगलों में पहुंच जाते हैं और महुआ संग्रहण का कार्य करते हैं. बता दें, कि 23 परिवार एक साथ रहते हैं कांटेदार झाड़ियों में.

आजीविका संचालन में सहायक होते हैं जंगल...

जंगलों से महुआ गांव अचार जैसी लघु वनोपज को संग्रहण करना इनका पैतृक धंधा सदियों से चला आ रहा है. जंगलों में रहकर सहरिया परिवार के लोग अपनी आजीविका का संचालन करने के लिए लघु वनोपज का संग्रहण करते हैं और बाद में खरीददारों को भेज देते हैं. इंसान को अच्छा मुनाफा मिलता है जिससे यह अपने खाने-पीने का जुगाड़ करते हैं और कुछ घर परिवार में बच्चों की शादी विवाह मैं भी खर्च कर देते हैं. अंगूरी बाई सहरिया ने बताया, कि पहले तो आदिवासी लोग जंगलों पर ही अपनी आजीविका संचालन करने का भरोसा रखते थे और जंगलों से ही अपनी आमदनी करते थे. लेकिन धीरे-धीरे जंगलों का घनत्व कम होता जा रहा है.

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