राजस्थान

rajasthan

ETV Bharat / state

बांसवाड़ाः चिलचिलाती धूप में मजदूरों का दल पैदल ही निकल पड़ा अपने गांव, साथ में महिलाएं और बच्चे भी - बांसवाड़ा के प्रवासी मजदूर

बांसवाड़ा जिले के कुशलगढ़ क्षेत्र के मजदूर लॉकडाउन लगने के बाद पैदल ही नीमच जिले से अपने गांव के लिए निकल पड़े. जिसके बाद अंतर राज्य सीमा पर उन्हें रोक कर 14 दिन के लिए क्वॉरेंटाइन में रखा गया. सभी मजदूर में कोई संक्रमण नहीं पाया गया. इन लोगों को घर भेजने के लिए प्रशासन की तरफ से सरकार से परमिशन मांगी गई लेकिन 4 दिन बाद भी कोई जवाब नहीं मिला. तो यह मजदूर पैदल ही करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर कुशलगढ़ के लिए रवाना हो गए.

बांसवाड़ा के प्रवासी मजदूर, Banswara migrant laborers
मजदूरों का दल पैदल ही निकल पड़ा अपने गांव की ओर

By

Published : Apr 18, 2020, 8:57 PM IST

कुशलगढ़ (बांसवाड़ा). पिछले कुछ दिनों से प्रदेश में तापमान भी अपने तीखे तेवर दिखा रहा है. पारा 37 डिग्री के पार हो चुका है. कोरोना संक्रमण के रोकथाम के लिए सरकार की तरफ से अचानक लॉकडाउन लगाने के बाद बांसवाड़ा जिले के कुशलगढ़ क्षेत्र के मजदूर नीमच जिले से अपने गांव के लिए निकले. लेकिन रास्ते में ही अंतर राज्य सीमा पर उन्हें रोक लिया गया. जैसे-तैसे इन लोगों ने सीमा पर लगाए गए कैंप मैं क्वॉरेंटाइन के 14 दिन निकाल लिए. किसी भी प्रकार का कोई संक्रमण नहीं पाया गया.

मजदूरों का दल पैदल ही निकल पड़ा अपने गांव की ओर
क्वॉरेंटाइन के बाद उन्हें घर भेजने का आश्वासन दिया गया था. लेकिन 14 अप्रैल के बाद सरकार की तरफ से लगाए गए लॉकडाउन को आगे बढ़ा दिया गया. इसे लेकर 33 मजदूरों का दल अपने घर जाने के लिए निकल पड़ा. हालांकि इन लोगों को घर भेजने के लिए प्रशासन की तरफ से सरकार से परमिशन मांगी गई लेकिन 4 दिन बाद भी कोई जवाब नहीं मिला. तो यह मजदूर पैदल ही करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर कुशलगढ़ के लिए रवाना हो गए.सिर पर खाने पीने का सामान... गोद में बच्चे

जब ईटीवी भारत की टीम लॉकडाउन 1 के बाद राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 113 का नजारा देखा तो हैरतअंगेज तस्वीरें देखने को मिली. मजदूरों का यह दल चिलचिलाती धूप में गर्म हवा के थपेड़ों के बीच तेज गति से अपनी मंजिल पाने को बेताब दिखा. 6 बच्चों और 10 महिलाओं के साथ गेहूं काटने के लिए यह लोग कुशलगढ़ से निकले थे लेकिन कभी सपने में भी नहीं सोचा की लौटने के दौरान उनको इन परिस्थितियों का सामना करना होगा. अधिकांश मजदूरों के सिर पर खाने-पीने के सामान की गठरी होने के साथ ही करीब 6 से अधिक महिला और पुरुषों के कंधों पर बच्चे भी नजर आए.

2 दिन में डेढ़ सो किलोमीटर पार

सिर पर इतना वजन होने के बावजूद इन लोगों की तेजी कमाल की थी. इन लोगों के पैदल चलने की गति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि छोटी सादड़ी नीमच बॉर्डर पर स्थित क्वॉरेंटाइन कैंप से महज 2 दिन में 13 किलोमीटर तक पार कर गए. इसके बावजूद भी उनके चेहरों पर थकान का नाम तक नहीं था. इन मजदूरों में शामिल मेघजी ने बताया कि वह लोग गेहूं कटाई के लिए नीमच गए थे. अचानक खेत मालिक की तरफ से काम पर आने से इंकार कर दिया गया. इस कारण वे तत्काल अपने घर के लिए रवाना हो गए. लेकिन बॉर्डर पर उन्हें रोक लिया गया. वहीं देवीलाल का कहना था कि 14 दिन हमें कैंप में रखा गया. इस अवधि के बाद वाहन के जरिए घर भेजने का आश्वासन दिया गया. लेकिन 15 अप्रैल को भी कोई व्यवस्था नहीं की गई. ऐसे में न जाने कब घर पहुंच पाते इसलिए हमने पैदल ही घर जाने का निर्णय किया. धीम जी के अनुसार हम पिछले 2 दिन से लगातार पैदल चल रहे हैं. एक स्थान पर खाना बना लेते हैं और जब भी भूख लगती है चलते-चलते खाना खा लेते हैं. यह जरूर है कि इन मजदूरों की सरकार से एक शिकायत थी कि जब वह लोग पूरी तरह से स्वस्थ है और 14 दिन तक क्वॉरेंटाइन में रह चुके हैं तो आखिर उन्हें घर क्यों नहीं पहुंचाया जा रहा हैं.

ABOUT THE AUTHOR

...view details