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बांसवाड़ा में सोयाबीन की समर्थन मूल्य पर खरीदारी: कमाई तो दूर, शर्तों की इतनी उलझन की मूल भी पड़ रहा सरकार के माथे

बांसवाड़ा में सोयाबीन की समर्थन मूल्य पर खरीद के लिए प्रदेश में खोले गए खरीद केंद्र नेफेड के माथे पड़ते दिखाई दे रहे हैं. सरकार की बनाई नीतियों में बेवजह की शर्तों से किसानों इसमें रूचि दिखाते नजर नहीं आ रहे है.

banswara special report, बांसवाड़ा न्यूज

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Published : Nov 7, 2019, 3:10 PM IST

बांसवाड़ा.सोयाबीन की समर्थन मूल्य पर खरीद के लिए प्रदेश में खोले गए खरीद केंद्र नेफेड के माथे पड़ते दिखाई दे रहे हैं. कमाई तो दूर की बात उल्टा जेब से खर्च करना पड़ रहा है. बांसवाड़ा पर नजर डाले तो यहां दो केंद्र खोले गए हैं, लेकिन 1 सप्ताह बाद भी सोयाबीन का एक दाना नहीं पहुंचा. जबकि नेफेड के जरिए बांसवाड़ा क्रय-विक्रय सहकारी समिति केंद्र के संचालन पर खर्चा कर रही है.

सोयाबीन की समर्थन मूल्य पर खरीदारी

केंद्र सरकार की एजेंसी नेफेड द्वारा सोयाबीन की समर्थन मूल्य पर खरीदारी के लिए बांसवाड़ा क्रय-विक्रय सहकारी समिति को अधिकृत किया गया है. इसके लिए नेफेड द्वारा खरीदारी पर समिति को कमीशन देने का प्रावधान है. उसी को देखते हुए समिति द्वारा कृषि उपज मंडी में खरीद केंद्र प्रारंभ किया गया है. इसके अलावा भी समिति को खरीद केंद्र संचालन के लिए अन्य खर्चे वहन करने पड़ रहे हैं, जबकि अब तक किसानों द्वारा बांसवाड़ा और बागीदौरा में खरीद केंद्रों पर बेचने के लिए एक दाना तक नहीं लाया गया है.

दोनों ही केंद्रों पर समिति द्वारा तीन तीन कर्मचारी लगाए गए हैं. हालांकि किसानों के माल लेकर नहीं पहुंचने के कारण फिलहाल एक-एक कर्मचारी खरीद केंद्र को संभाल रहे हैं. इसके अलावा भी छाया पानी और कंप्यूटर सेट कुर्सियां तथा ग्रेडिंग उपकरण आदि की व्यवस्था की गई है. यह व्यवस्थाएं बांसवाड़ा ही नहीं बागीदौरा केंद्र पर भी की गई है. लेकिन अब तक खरीददारी के आंकड़ों पड़ जाए तो समिति का यह खर्चा माथे पड़ता नजर आ रहा है.

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प्रारंभ में बांसवाड़ा में दो और बागीदौरा में 27 काश्तकारों ने सोयाबीन बेचने के लिए अपना पंजीयन कराया था. लेकिन राज्य सरकार की खरीद शर्तों को देखते हुए किसान केंद्र की ओर मुड़कर तक नहीं देख रहे हैं. वहीं 3 हजार 710 रुपए सरकार द्वारा प्रति क्विंटल सोयाबीन का जो समर्थन मूल्य रखा गया है, काश्तकारों को मार्केट में उससे भी अधिक भाव घर बैठे मिल रहा है. इस कारण किसान खरीद केंद्रों पर आने की वजह मार्केट में अपना माल बेचना पसंद कर रहे हैं.

सरकार द्वारा खोले गए इन खरीद केंद्रों का खर्च भी समिति पर पड़ता दिख रहा है. बागीदौरा क्रय-विक्रय सहकारी समिति के प्रबंधक कमल कुमार के मुताबिक बांसवाड़ा और बागीदौरा दोनों ही केंद्रों पर किसानों के लिए उचित व्यवस्था की है. हालांकि अब तक कोई भी किसान अपना माल लेकर नहीं पहुंचा है.

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शर्तों की उलझन

बता दें कि सरकार द्वारा सोयाबीन खरीद के लिए कई विसंगति पूर्ण शर्तें लगाई है. इसके अंतर्गत संबंधित काश्तकार को पहले ई-मित्र से अपना पंजीयन कराना होगा. इसके लिए पटवारी से P35 गिरदावरी रिपोर्ट पेश करनी होगी. साथ ही ग्रेडिंग कराने के लिए मजदूर काश्तकार को लगाने होंगे. इसके अलावा घर से खरीद केंद्र तक अपना माल लाने का ट्रांसपोर्टेशन खर्च अलग है.

सरकार की इन शर्तों में सबसे बड़ी विसंगति प्रति हेक्टर पैदावार 4 से 5 क्विंटल मानते हुए उसका 25 फीसदी हिस्सा खरीदने की है. इस प्रकार प्रति बीघा 50 से 60 किलोग्राम तक सोयाबीन, केंद्रों पर बेची जा सकती है जबकि उत्पादन इसका ठीक 2 गुना तक हुआ है. ऐसे में शेष माल को मार्केट में बेचने का एकमात्र विकल्प बचा है. इसी कारण किसान अपना माल सरकारी खरीद केंद्रों की बजाए मार्केट में बेचने को मजबूर है.

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