सीकर.निकाय चुनाव के लिहाज से देखा जाए तो सीकर नगर परिषद, प्रदेश में कांग्रेस की सबसे सुरक्षित सीट मानी जा सकती है. यहां हर बार कांग्रेस का ही बोर्ड बनता आया है और बीजेपी कभी अपना बोर्ड नहीं बना सकी है. एक बार सभापति के सीधे चुनाव में उपचुनाव हुए. उस दौरान कुछ समय के लिए बीजेपी को सभापति की कुर्सी जरूर मिली. लेकिन बोर्ड उस वक्त भी कांग्रेस का ही था. सीकर शहर में मुस्लिम आबादी की बहुलता के चलते इस बार भी यहां बीजेपी की राह आसान नहीं होगी. ईटीवी भारत की टीम ने शहर के प्रमुख लोगों से बातचीत के आधार पर यहां की ग्राउंड रिपोर्ट जुटाई तो यहां कुछ इस प्रकार से तथ्य सामने आए.
नगर परिषद की बात की जाए तो इस बार के चुनाव में यहां 65 वार्ड हो गए हैं. मुस्लिम और जाट वोट बैंक के चलते यहां कांग्रेस हमेशा बोर्ड बनाने में कामयाब रही. साल 2009 में जब सीधे चुनाव हुए तब भी कांग्रेस की ही सलमा शेख यहां से सभापति चुनी गईं थीं. लेकिन उनके निधन के बाद दोबारा से हुए उपचुनाव में बीजेपी अपना बोर्ड बनाने में सफल रही. उसमें सीधे चुनाव में कुछ समय के लिए बीजेपी की राजेश्वरी सैनी सभापति बनीं. लेकिन नगर परिषद में कभी भाजपा को बहुमत नहीं मिल पाया. इसके तुरंत बाद प्रदेश में फिर से पार्षदों के द्वारा सभापति चुनने की प्रक्रिया शुरू हुई और साल 2014 के चुनाव में कांग्रेस ने ही बोर्ड बनाया और जीवन खान सभापति बने.
सीकर नगर परिषद का इतिहास
सीकर में साल 1944 में राव राजा कल्याण सिंह ने नगर पालिका का गठन किया. उस समय चुनाव नहीं हुए और उन्होंने जानकी प्रसाद मारू को मनोनीत चेयरमैन बनाया था. उसके बाद हुए चुनाव में मन्मथ कुमार मिश्रा सीकर के पहले निर्वाचित चेयरमैन बने. वहीं बाद में हर 3 साल में चुनाव होने लगे और प्यारे लाल माथुर सीकर नगर पालिका के चेयरमैन बने. उनके बाद भी कांग्रेस के ही सोमनाथ त्रिहन चेयरमैन बने. सीकर में नगर परिषद बना दी गई, लेकिन 17 साल तक चुनाव नहीं हुए और एडीएम को प्रशासक लगाया गया. इनके बाद कांग्रेस के ही वारिस खान, प्रभुलाल जैन नगर पालिका के चेयरमैन रहे. इनके बाद कांग्रेस के मोहम्मद हनीफ खत्री और सलमा शेख सभापति रहीं. पिछले 5 साल से जीवन खान यहां सभापति हैं.