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SPECIAL: कोटा में मकान मालिकों को किरायदारों का इंतजार, करीब 50 हजार मकान खाली

कोटा शहर में करीब 40 हजार सिंगल रूम और 10 हजार फैमिली पोर्शन हैं. इनसे मकान मालिकों को हर महीने 25 करोड़ यानी सालाना 300 करोड़ रुपए की आमदनी होती है. कोटा में किसी इंडस्ट्री की तरह यह बिजनेस चल रहा था. लेकिन पिछले साल लॉकडाउन के बाद से ही ज्यादातर मकान खाली पड़े हैं.

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कोटा में मकान मालिकों को किरायदारों का इंतजार

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Published : Jun 6, 2021, 10:33 PM IST

कोटा. कोचिंग सिटी होने की वजह से कोटा में किराए पर कमरा देने का व्यापार भी काफी फल-फूल रहा था, लेकिन कोविड-19 संक्रमण की वजह से कोचिंग बंद होने के बाद से ज्यादातर मकान खाली हैं.

कोटा में मकान मालिकों को किरायदारों का इंतजार

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300 करोड़ का व्यापार चौपट

कोटा शहर की हॉस्टल इंडस्ट्री के 3000 हॉस्टल के डेढ़ लाख कमरों को हटा दिया जाए तो उनके बाद 40 हजार सिंगल रूम और 10 हजार फैमिली पोर्शन है. इनसे मकान मालिकों को हर महीने 25 करोड़ रुपए की आय होती थी. सालाना बात की जाए तो 300 करोड़ रुपए कोटा के मकान मालिकों को किराए के तौर पर सीधे मिल जाया करते थे. लेकिन पिछले लॉकडाउन के बाद से ही ज्यादातर मकान खाली पड़े हुए हैं.

हर मकान मालिक पर है लोन की लायबिलिटी

कोटा में ज्यादातर मकान मालिकों ने अपने घरों में ही किराए से देने के लिए पोर्शन तैयार किए हुए है. इसके लिए उन्होंने बैंकों से लोन भी लिया हुआ है. लेकिन हालात ऐसे हैं कि बीते 1 साल से किस्त भी जमा नहीं करा पा रहे हैं. जैसे-तैसे जनवरी के बाद ऑफलाइन कोचिंग शुरू होने से कुछ राहत मिली थी. लेकिन अप्रैल आते-आते ऑफलाइन कोचिंग फिर बंद हो गई. अब हालात ऐसे हैं कि सभी मकान और कमरे खाली पड़े हुए हैं. आज भी किरायेदारों का इंतजार है.

किरायदारों का इंतजार

पहले से कम हुआ किराया

किराया भी अब पहले से कम हो गया है. गिने-चुने कमरे ही किराए पर जा रहे हैं. सिंगल रूम का किराया पहले 3 से 6 हजार रुपए था. अब 2 से 4 हजार रुपए पहुंच गया है. गिने-चुने बच्चे ही कोटा में मौजूद हैं.

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पहले तीन से चार दिन में मिलता था मकान

रेंटल सर्विस का काम करने वाले एक युवक का कहना है कि मार्च से जून के बीच पहले दिन भर में करीब 45 से 50 इंक्वायरी उनके पास आ जाती थी, लेकिन अब हालात ऐसे हैं कि इक्का-दुक्का इंक्वायरी भी नहीं आ रही है. सभी घरों के बाहर टू-लेट के बोर्ड लगे हुए हैं. आसानी से लोगों को मकान भी किराए से मिल रहा है. पहले ढूंढने पर भी कमरा या पोर्शन नहीं मिलता था. रेंटल सर्विस प्रोवाइडर का कहना है कि कम किराए के बावजूद भी अब मकान मालिकों को किराएदार नहीं मिल रहे हैं.

मेंटनेंस भी पड़ रहा भारी

कोटा में किराए से कमरे का मकान देने का बिजनेस काफी अच्छा चल रहा था. इन कमरों की हर साल ही लगभग मरम्मत की जाती है. क्योंकि हर साल 1 महीने यह कमरे खाली हो जाते हैं. स्टूडेंट्स या उनके पेरेंट्स मकान खाली कर चले जाते हैं. कोटा में सीपेज की समस्या पूरे शहर में है. इसके चलते हर साल कमरों की मेंटनेंस या पुताई का काम कराया जाता है. अब मकान मालिकों को खाली पड़े इन कमरों या मकानों में मेंटनेंस भी भारी पड़ने लगा है.

कम किया रेंट लेकिन नहीं मिल रहे किराएदार

नए कोटा में 2 बीएचके पोर्शन या फ्लैट का किराया 12 से 15 हजार रुपए के बीच था लेकिन अब कोरोना काल में यह किराया गिरकर 7 से 9 हजार रुपए के बीच आ गया है. मकान खाली होने के चलते लोग भी अब कम किराए पर मकान देने को तैयार हैं. इसके बावजूद किराएदार नहीं मिल रहे हैं. नए कोटा में करीब 10,000 से ज्यादा इस तरह के पोर्शन खाली पड़े हुए हैं.

इन कॉलोनियों में हर घर के बाहर टू-लेट के बोर्ड

नए कोटा के तलवंडी, जवाहर नगर, दादाबाड़ी, बसंत बिहार, शास्त्री नगर, सुभाष नगर, महावीर नगर, रंगबाड़ी, महावीर नगर विस्तार योजन, टीचर कॉलोनी, विज्ञान नगर में मकान मालिकों ने अपनी जरूरत के अनुसार घरों में किराए से कमरे या पोर्शन देने के लिए तैयार किए हुए हैं. कोटा में बाहर से कोचिंग करने आने वाले छात्र या तो हॉस्टल में रहते हैं या फिर घरों में बने हुए इन सिंगल सिंगल रूम को अपना अस्थाई आशियाना बनाते हैं. पेरेंट्स के साथ रहने वाले स्टूडेंट भी फैमिली पोर्शन लेकर रहने लग जाते हैं. अब इन सब जगह पर हर घर में ही टू-लेट के बोर्ड लटके हुए हैं. लेकिन किराएदार नहीं मिल रहे हैं.

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व्यापार बंद होने से कामकाजी लोग भी छोड़ कर चले गए

शिक्षा नगरी कोटा में व्यापार या काम धंधे के लिए आसपास के जिलों या पूरे प्रदेश से ही लोग आते थे. यहां तक कि बिहार और उत्तरप्रदेश के लोग भी यहां मैस और फुटकर कार्यों से जुड़े हुए थे. अब कोचिंग बंद होने के चलते व्यापार नहीं चल रहा है. ऐसे में वे लोग भी किराए पर लिए मकानों और कमरों को खाली कर वापस लौट गए. इनके चलते भी करीब 10 से 12 हजार मकान और कमरे खाली पड़े हुए हैं.

चोरियां हो रहीं, सुरक्षा की भी चिंता

किराए के बिजनेस को देखते हुए लोगों ने मकानों को खरीद लिया था. उन्हें किराए से देने के लिए तैयार भी कराया था लेकिन अब यह मकान भी सूने पड़े हुए हैं. वहां न तो मकान मालिक रहते हैं ना किराएदार रह रहे हैं. किराएदार नहीं आने से इन मकानों की सुरक्षा भी मकान मालिक के लिए टेढ़ी खीर हो गया है. आए दिन सूनसान जगह होने की वजह से छोटी-मोटी चोरियां होने लग गईं हैं.

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