जोधपुर. मुगल कभी मारवाड़ पर अपना आधिपत्य नहीं जमा पाए थे. शाहजहां ने राजपूतों से संबंध बनाकर रखे थे. उसकी मृत्यु के बाद बादशाह बने औरंगजेब ने अपनी कुटिल नीतियों के बूते जोधपुर को हथिया लिया था. इसका नाम मोहम्मदाबाद करने की घोषणा कर दी गई. जोधपुर रियासत को खालसा घोषित कर दिया. 30 साल तक यहां कठपूतली शासक बने रहे. इस दौरान एक ही व्यक्ति था जिसने जोधपुर के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था. वे थे वीर दुर्गादास राठौड़. जिसने 30 साल तक जोधपुर के उत्तराधिकारी अजीतसिंह को औरंगजेब से बचाकर रखा और अंतत वापस राज गद्दी पर बैठाकर राजा जसवंतसिंह को दिया वचन निभाया था. इस दौरान दुर्गादास ने अपनी कूटनीति और शौर्य के बल पर औरंगजेब को मात दी थी.
औरंगजेब की लालसा थी जोधपुर पर कब्जा: सन 1658 में औरंगजेब दिल्ली के तख्त पर बैठ गया. उसने जोधपुर के राजा जसवंतसिंह को अपने पिता की तरह ही सेनापति बनाए रखा. उन्हें काबुल में लड़ने के लिए भेज दिया. पीछे से उनके बेटे पृथ्वीसिंह को मरवा कर जोधपुर को हथिया लिया. काबुल में यह समाचार मिलते ही गंभीर घायल जसवंतसिंह की मृत्यु हो गई. इससे पहले उन्होंने दुर्गादास राठौड़ से वचन लिया कि दूसरी रानी के गर्भ में पल रहे उनके वंश की रक्षा करेंगे और जोधपुर को मुगलों से वापस लेंगे.
दुर्गादास रानियों को लेकर जोधपुर नहीं गए. कुछ समय बाद दो कुमारों का जन्म हुआ. जिसकी जानकारी मिलते ही औरंगजेब ने यह कहकर दिल्ली बुलाया कि उनकी परवरिश खुद करेगा. दुर्गादास भांप चुके थे. दुर्भाग्य से दिल्ली जाते समय एक कुमार की मृत्यु हो गई. जबकि अजीतसिंह सकशुल थे. दिल्ली में औरंगजेब ने दुर्गादास को मनसबदारी का लालच देकर कुमार को वहीं छोड़ने का कहा. लेकिन दुर्गादास नहीं माने. बमुश्किल औरंगजेब से बचाकर अजीतसिंह को ले गए और युवावस्था तक छिपाए रखा.
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मारवाड़ को किया एकजुट: औरंगजेब के मन में एक ही बात थी कि दुर्गादास कभी भी अजीतसिंह के हक के लिए हमला कर सकता है. इसलिए दुर्गादास को सूबेदार बनाकर दक्षिण में भेज दिया. लेकिन अजीतसिंह औरंगजेब को नहीं मिले. वापस आकर दुर्गादास ने मारवाड़ के राजाओं को एक करना शुरू किया. इसकी भनक लगते ही औरंगजेब ने अपने सिपाहसालार भेज दिए. जिनसे दुर्गादास का कई जगह पर युद्ध हुआ. कहा जाता है कि वो ऐसा दौर था जिसमें दुर्गादास घोड़े पर बैठ कर ही नींद लेते थे. आटे की बाटी भी घोड़े पर बैठे-बैठे भाले की नोंक पर रखकर सेककर खाते थे. बरसों तक यह सिलसिला चलता रहा. दूसरी और औरंगजेब की सेना ने जमकर रक्तपात मचाया. मंदिरों को तोड़ा. दुर्गादास की तलाश में सेना लगा दी गई. सूबेदार शमशेर खां ने दुर्गादास की मां की हत्या तक कर दी.