जयपुर.बिहार और पूर्वोत्तर में असम समेत ज्यादातर राज्यों को हर साल बाढ़ की मार से भारी नुकसान होता है. लाखों हेक्टेयर में खड़ी अन्नदाता की मेहनत देखते ही देखते आपदा की भेंट चढ़ जाती है. बाढ़ को लेकर सरकार हर साल कई तरह के प्रयास करती है. लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहता है.
कई जगहों पर तो बाढ़, नेताओं के लिए वरदान की तरह आती है, जिसमें राहत बांटने के नाम पर जमकर राजनीति होती है. वैसे तमाम राज्यों में आपदा प्रबंधन बल का गठन किया गया है, जो सक्रिय होती है बाढ़ आने के बाद.
सही मायनों में अब तक किसी भी सरकार ने ठोस बाढ़ नियंत्रण योजना बनाने की कवायद नहीं की, जिससे हर साल होने वाले जान-माल के नुकसान को बचाया जा सके. 1953 में राष्ट्रीय बाढ़ नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया गया था. इस पर अब तक अरबों रुपये खर्च करने के बावजूद हालात जस के तस हैं.
बिहार और असम की बाढ़
हर बार की तरह इस बार भी मानसून की पहली दस्तक के साथ ही बिहार और असम बेजार है. बिहार में अब तक करीब 57 हजार लोग बाढ़ से प्रभावित हैं, और इस साल 19 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं, असम में 70 लाख लोग प्रभावित हैं, और करीब 110 लोग आपदा की भेंट चढ़ चुके हैं. जबकि 1.14 लाख हेक्टेयर खेत जलमग्न हो गए.
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असम की ज्यादातर नदियां अरुणाचल प्रदेश से निकलती है. वहां लगातार भारी बारिश की वजह से यह नदियां असम के मैदानी इलाकों में पहुंच कर कहर बरपाने लगती हैं. हर साल की तरह इस साल भी काजीरंगा नेशनल पार्क का ज्यादातर हिस्सा बाढ़ की चपेट में हैं. आलम ये है कि पार्क से निकलकर जानवर हाईवे पर आ गए हैं.
बाढ़ से बदहाल होने वाले राज्य
भारत में बंगाल, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, केरल, असम, बिहार, गुजरात, उत्तरप्रदेश ऐसे राज्य हैं, जिनमें बाढ़ का ज्यादा असर होता है.