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बाल गृह में बच्चों के साथ लैंगिक हिंसा मामले में सामाजिक संगठनों की मांग, POCSO की धारा दर्ज हो मामला

जयपुर के बालगृह में लैंगिक हिंसा मामले में सामाजिक संगठन ने पॉक्सो की धारा में मामला दर्ज करने की मांग की हैं. PUCL ने कहा कि आश्रम के प्रधान, पदाधिकारी और कार्मिक के खिलाफ भी पॉक्सो एक्ट दर्ज की जानी चाहिए.

Jaipur Childrer home, POCSO
जयपुर के बालगृह में लैंगिक हिंसा

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Published : Nov 11, 2021, 8:57 PM IST

जयपुर.जिले में बाल गृह में लैंगिक हिंसा के मामले में सामाजिक संगठन ने पॉक्सो की धारा में मामला दर्ज करने की मांग की हैं. PUCL ने कहा कि बच्चों के लिए बनाई गई संस्थानों में बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न की शिकायतें थम सी नहीं रही हैं. बहुत ही शर्मनाक बात है कि मासूम उम्र के बच्चों के लिए बनाया गया सुरक्षित स्थान स्कूल और बाल गृहों ही यौनिक हिंसा के केंद्र बन रहे हैं. पिछले महीने में कई घटनाएं उजागर हुई और अब अनाथ आश्रम में 20 में से 7 बच्चों के साथ यौनिक हिंसा की गई.

बाल कल्याण इकाई सवालों में

बाल गृह में खुल्लम खुला नियमों का उल्लंघन किया गया है. यह एक दिन की लापरवाही तो नहीं हो सकता की कोई अधीक्षक, काउंसर नहीं रखा गया. बाल गृह में एक केयर टेकर 9 से 5 बजे ड्यूटी कर चला जाता है.बच्चे लौट कर शराब पार्टी कर रहे हैं इत्यादि. सवाल है की क्या बाल कल्याण समिति ने यह सब क्यों नहीं परखा. यह बात गले से नही उतरती है कि पिछले महीने के निरीक्षण में कुछ नहीं निकला. स्पष्ट है कि बाल कल्याण समिति ने भी पूर्णरूप से नियमों जो लागू नहीं हो रहे थे. अनदेखी की की गई है. सवाल जिला बाल कल्याण संरक्षण इकाई के ऊपर भी उठता है कि उन्होंने क्या किया.

पॉक्सो धारा जुड़े

पीयूसीएल ने कहा कि FIR में यौन अपराध में लिप्त आरोपियों के खिलाफ एफआईआर (390/2021 कोतवाली थाना) जरूर दर्ज की गई है लेकिन आश्रम के प्रधान, पदाधिकारी और कार्मिक जो इस बाल गृह को चला रहे थे. उनके खिलाफ भी पॉक्सो की धारा जोड़नी चाहिए.

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यह हुई मांग

आश्रम के प्रधान, पदाधिकारियों और कार्मिकों के खिलाफ पोकसों के तहत पोकसों की धारा 21 और 16 और धारा 120 (ब) के तहत कार्रवाई हो. पीड़ित बच्चों की मनोसामाजिक (psychosocial ) परामर्श तुरंत दिया जाए. अनाथ आश्रम का पंजीकरण निरस्त किया जाए. आश्रम को बच्चों के साथ कोई भी काम करने के लिए प्रतिबंधित की जाए. एक प्रबुद्ध नागरिकों की विजिटर्स कमेटी बनाई जानी चाहिए, जो साल मे 4 बार बाल गृहों का विजिट कर बच्चों के साथ मिले और संवाद करे.

साथ ही बाल कल्याण समिति को अपने काम में सजग और तत्परता और जवाबदेही लानी होगी नहीं तो संस्थाओं में रह रहे बच्चों का उत्पीड़न बढ़ता ही रहेगा. जिला बाल संरक्षण इकाई को भी इस लापरवाही की जिम्मेवारी लेनी होगी और अपने काम में तत्काल तत्परता से कार्य करना होगा. राज्य बाल अधिकार आयोग को और सख्ती से इन संस्थानों और गृहों की निगरानी करनी होगी और इस मसले में जिला बाल संरक्षण इकाई व बाल कल्याण समिति की भूमिका की जांच भी करनी चाहिए.

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