जयपुर.सरपंच संघ की ओर से 22 मार्च को किया जाने वाला विधानसभा घेराव स्थगित हो गया है. ग्रामीण और पंचायती राज विभाग मंत्री रमेश मीणा ने सरपंचों की सभी 13 सूत्रीय मांगों पर सहमति जताई (Sarpanch union Jaipur march postponed) है. सरकार से लिखित में मिले आश्वासन के बाद संघ ने जयपुर कूंच स्थगित कर दिया.
सभी मांगों पर बनी सहमति:दरअसल सरपंच संघ ने 22 मार्च को विधानसभा का घेराव करने की चेतावनी दी थी. जिसके बाद शनिवार को सरकार ने सरपंच संघ के प्रतिनिधि मंडल को वार्ता का न्यौता दिया. पंचायतीराज सचिव पीसी किशन के साथ करीब 5 घंटे से ज्यादा लंबी चली बातचीत के बाद भी कोई सकारात्मक नतीजा नही निकला था. इसके बाद फिर सोमवार को सरपंच संघ के प्रतिनिधि मंडल और पंचायती राज मंत्री रमेश मीणा के साथ लंबे दौर की वार्ता हुई जिसमें लगभग सभी मांगों पर लिखित में सहमति दे दी गई है.
सरपंचों का जयपुर कूंच स्थगित:सरपंच संघ के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर गढ़वाल ने बताया कि संघ अपनी 13 सूत्रीय मांगों को लेमर 22 मार्च को विधानसभा का घेराव करने जा रहा था. लेकिन सोमवार को मंत्री के साथ हुई वार्ता में लगभग सभी मांगों पर सहमति बन गई है. जिसके कारण 22 मार्च यानी की आज होने वाला विधनसभा घेराव स्थगित कर दिया गया है.
चरणबद्ध आंदोलन की रूप रेखा से सरकार पर बना दबाव:अध्यक्ष बंशीधर ने बताया कि 13 सूत्रीय मांग पत्र पहले ग्रामीण और पंचायती राज मंत्री रमेश मीणा को सौंपा गया था और आंदोलन की चेतावनी दी गई थी. लेकिन सरकार की ओर से कोई वार्ता के लिए सकारात्मक पहल नही की गई. इसके बाद सरपंच संघ ने आंदोलन चरणबद्ध तरीके से करने का कार्यक्रम तय किया.
सबसे पहले 13 मार्च तक सभी सरपंच अपने अपने क्षेत्र के विधायक को मांग पत्र देकर सरपंचों की आवाज को विधानसभा में उठाने की मांग रखी. जिसमें 15 से ज्यादा विधायकों ने सदन के अंदर सरपंचों की मांग उठाई. इसके बाद 14 मार्च को पंचायतों की तालाबंदी कर अनिश्चितकालीन तक कार्य का बहिष्कार कर दिया गया था. इसके साथ ही 22 मार्च को विधानसभा का घेराव तय किया गया. बंशीधर गढ़वाल ने बताया कि सरपंच संघ ने चरणबद्ध आंदोलन किया जिससे सरकार पर दबाव बन सका.
इन 13 सूत्री मांगों पर बनी सहमति:
ग्रामीण क्षेत्र में मूलभूत सुविधाओं के विकास के लिए पहले राज्य वित्त आयोग से पांचवें राज्य वित्त आयोग तक सकल राजस्व का देय अनुदान प्रतिशत हमेशा बढ़ाने की स्वीकृत जारी होती रही है. लेकिन 30 वर्षों में पहली बार छठे राज्य वित्त आयोग में पांचवे राज्य वित्त आयोग के सकल राजस्व के 7.18 प्रतिशत अनुदान की तुलना में 6.75 प्रतिशत अनुदान देने की सिफारिश की गई है. जिससे पंचायती राज संस्थाओं को लगभग 200 करोड़ रुपए का वार्षिक नुकसान हो रहा है. यह पंचायती राज संस्थाओं के वित्तीय हितों पर कुठाराघात है. इसकी पुनर्समीक्षा करते हुए अनुदान प्रतिशत को बढ़ाकर सकल राजस्व का 10 फीसदी किया जाए.
ग्राम पंचायतों के विकास की राज्य वित्त आयोग और 15वें वित्त आयोग की वर्ष 2021-22 की शेष राशि ग्राम पंचायतों को हस्तातरित की जाए. साथ ही महानरेगा योजना स्वच्छ भारत मिशन योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना के प्रशासनिक मद में से ग्राम पंचायतों के हिस्से की राशि संबंधित ग्राम पंचायतों को हस्तांतरित की जाए.
सरपंच पद की गरिमा को ठेस पहुंचाते हुए विभिन्न प्रशासनिक अधिकारों में कटौती कर अन्य कर्मचारी / अधिकारियों को दिए जा रहे कार्यों / अधिकारों पर पूर्णतया अंकुश लगाया जाए.