जयपुर. राजधानी में लगातार बढ़ती वाहन चोरी की घटनाओं में अब पार्किंग संचालकों की भूमिका भी संदिग्ध लग रही है. क्योंकि पिछले कुछ महीनों में बढ़ रही वाहन चोरी की वारदातों में शातिर चोर वारदात को अंजाम देने के बाद चोरी किए गए वाहनों को सुरक्षित पार्किंग स्थल पर छोड़ देते हैं. फिर यहां से कुछ दिन बाद मूवमेंट नहीं होते देख, चोरी के वाहनों को ग्रामीण इलाकों में जाकर सस्ते दामों में बेच देते.
पुलिस कमिश्नरेट जयपुर क्षेत्र में लगातार हुई चोरी की वारदातों में ज्यादातर वारदातों का पर्दाफाश होने के बाद चोरी किए गए वाहन पार्किंग स्थलों से बरामद हुए. यहां तक की पुलिस पूछताछ में शातिर चोरों ने भी कबूला है कि उनका सबसे सुरक्षित ठिकाना पार्किंग स्थल है. जहां वो वाहन चोरी की वारदात को अंजाम देने के बाद वाहनों को खड़े कर जाते और फिर मौका मिलते ही आगे बेच देते. ऐसे में कई चोरी की वारदातों में पार्किंग संचालकों की भी भूमिका संदिग्ध रही.
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डीसीपी वेस्ट प्रदीप मोहन शर्मा ने बताया कि, इसको लेकर एक विशेष अभियान चलाया जाएगा. क्योंकि पिछली कुछ वारदातों में चोरी के वाहन पार्किंग स्थलों से ज्यादा बरामद हुए हैं. इसको लेकर पार्किंग संचालकों से भी पूछताछ की गई. लेकिन उनकी भूमिका को लेकर कुछ ठोस सबूत हाथ नहीं लगे. हालांकि लगातार चोरी किए गए वाहनों का पार्किंग स्थलों पर मिलना बिना पार्किंग संचालकों की मिलीभगत के संभव नहीं है. इसको लेकर अब पुलिस विशेष सतर्क रहेगी.
देश में वाहन चोरी के मामले सबसे कम सॉल्व होते हैं. एनसीआरबी के डेटा के अनुसार सबसे कम जो केस सॉल्व हो पाते हैं वो वाहन चोरी के होते हैं. कुल चोरी के केसों में केवल 20 प्रतिशत वाहन चोरी के मामले ही पुलिस सुलझा पाती है. शहरों में वाहन चोरी की रोकथाम के लिए पुलिस की तरफ से कोई विशेष इंतजाम नहीं किए गए हैं.