जयपुर.पुरानी कहावत है मजदूर मजबूर होता है. लॉकडाउन 3 के दौर में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को संबोधित करके अर्थव्यवस्था के लिहाज से एक बड़े पैकेज के ऐलान की बात कर रहे थे. उसी दरमियान जयपुर की सड़कों पर मजदूरों का एक समूह गुजरात से पैदल चलकर आने के बाद बिहार की ओर रुख कर रहा था. इन मजदूरों की दास्तान बयां कर रही थी कि सरकार के दावे अभी जमीन पर खोखले साबित हो रहे हैं. श्रमिकों के लिए सुविधाओं का जिक्र सीमित लोगों तक सिमट कर रह गया है और आम समय अभी लाचार और बेबसी के आलम में गांव की तरफ रुख कर रहा है.
सैकड़ों किलोमीटर पैदल ही घर जा रहे मजदूर ईटीवी भारत की टीम लॉकडाउन के दौरान जमीनी हालात को देखते हुए आगरा रोड पर पहुंची तो मजदूरों का एक समूह पैदल आगरा की तरफ रुख करता हुआ देखा गया. जब उनसे बात की तो जाना कि ये लोग गुजरात के गांधीनगर से पैदल चलते हुए जयपुर आए हैं और उन्हें बिहार के गया जाना है. लोगों ने खुद के साथ गांधीनगर के कारखानों में हो रही ज्यादती का जिक्र किया और बताया कि सरकार के ऐलान के बावजूद कारखानों में उन्हें काम नहीं मिल सका. यहां तक कि मालिक कम पैसों में चोरी-छिपे उनसे काम करवा रहे थे और बार-बार पुलिस उन्हें परेशान कर रही थी.
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ऐसे में उन्हें लगा कि आगे भूखे मरने की नौबत आ सकती है. इसी डर में वे लोग सैकड़ों किलोमीटर के पैदल सफर पर निकल गए. इस दौरान तपती धूप जलती सड़क और भूखे पेट ने भी उनके इरादों में बाधा डालने की कोशिश नहीं की. इन लोगों की दर्द भरी दास्तान को सुनने के बाद ये समझ में आया कि सरकार की तरफ से जितने भी दावे किए जा रहे हैं. दरअसल वे दावे इन मजदूरों की हकीकत से खासा दूर हैं.
राजस्थान सरकार के मुताबिक उनके पास आने और जाने वाले श्रमिकों का लेखा-जोखा है. परंतु जो लोग सरकार के रजिस्टर में अपनी आवाजाही दर्ज नहीं करा रहे हैं, बल्कि हालात से हार मानकर अपने घरों की ओर निकल पड़े हैं. क्या सरकार ऐसे लोगों की भी जानकारी रख रही है. पटरी पर सो रहे मजदूरों की दर्दनाक मौत को हिंदुस्तान नहीं भूला है. ऐसे में अगर सरकार के आह्वान और लाख दावों के बाद भी मजदूरों का पलायन बदस्तूर जारी है तो क्या सिस्टम पर इसकी जिम्मेदारी नहीं बनती है.
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सवाल उन लोगों का है, जो हजारों की संख्या में रोजाना राजस्थान से होकर गुजर रहे हैं. इन लोगों के लिए स्वयंसेवी संस्थाएं और सरकारी मदद से खाना पानी तो मिल जाता है. पर सवाल स्वास्थ्य जांच का भी है, सवाल सरकारी प्रयत्नों का है, सवाल उन सुविधाओं का है जिनके दम पर लॉकडाउन को कामयाब साबित करने की दुहाई दी जा रही है. तो क्या ये सारे सवाल यहीं आकर थम जाते हैं.