जयपुर. ग्रेटर नगर निगम अपनी आर्थिक तंगी दूर करने के लिए हाउसिंग एंड अर्बन डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (हुडको) से लोन लेने की तैयारी कर रहा है. 28 जनवरी को होने वाली साधारण सभा में ये प्रमुख एजेंडे में शामिल हैं. ग्रेटर निगम 500 करोड़ रुपए का कर्ज तो लेगा, लेकिन इस कर्ज को चुकाने की कोई प्लानिंग नहीं की गई है.
जयपुर ग्रेटर नगर निगम हुडको से लोन लेने की तैयारी कर रहा है... जयपुर ग्रेटर नगर निगम पर तकरीबन 350 करोड़ रुपए का बकाया चल रहा है. बीते 22 महीने से निगम के ठेकेदारों को पैसे नहीं दिए गए हैं. यही वजह है कि फिलहाल ये ठेकेदार हड़ताल पर चल रहे हैं. वहीं, अब 150 वार्डों में खाली जेब से विकास कार्य कराना निगम प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती बन गई है. ऐसे में हुडको से 500 करोड रुपए का लोन लेने की तैयारी की गई है. ये प्रस्ताव ग्रेटर नगर निगम की पहली बोर्ड मीटिंग का प्रमुख एजेंडा भी है. हालांकि, निगम के पास फिलहाल इस लोन को चुकाने की कोई प्लानिंग नहीं है.
महापौर डॉ. सौम्या गुर्जर ने बताया कि विकास कार्य करवाने के लिए 500 करोड. रुपए का लोन हुडको से मांगा गया है. ग्रेटर नगर निगम में कुछ वार्ड विकसित नहीं है. ऐसे में वहां नए प्लान और योजनाएं लानी होंगी. साथ ही, निगम की प्रारंभिक व्यवस्थाओं को सुचारू रखने के लिए लोन लिया जा रहा है. वर्तमान में ग्रेटर नगर निगम की तिजोरी खाली है. 350 करोड़ की देनदारी है. भले ही मार्च तक 100 करोड़ राजस्व इकट्टा कर लिया जाए. फिर भी पुराने दायित्व पूरे नहीं हो पाएंगे.
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बीते 2 साल में निगम पर आर्थिक भार छोड़ दिया गया है, वो एक बड़ा संकट है. इस लोन के माध्यम से उनसे भी निपटा जाएगा और विकास कार्य भी किए जाएंगे. उन्होंने स्पष्ट किया कि शुरुआती 2 साल में निगम को कर्ज़ नहीं चुकाना पड़ेगा. इतने समय में निगम खुद को आर्थिक रूप से सक्षम कर लेगा, ताकि लोन भी चुकाया जा सके और सभी 150 वार्डों में विकास कार्य भी किए जा सकेंगे. जो सफाई और विकास कार्य से जुड़े मुद्दे पार्षद जनता के माध्यम से लेकर के आए हैं. उन्हें एजेंडा में शामिल किया गया है. शहर को स्मार्ट बनाने की दृष्टिकोण से मैकेनिज्म पार्किंग और अंडर ग्राउंड डक्टिंग करना भी प्लानिंग में शामिल है. ग्रेटर नगर निगम को ये लोन तकरीबन 15 साल में चुकाना होगा. 2 साल का पीरियड मोरेटोरियम होगा. जिसमें निगम को पैसा नहीं देना होगा, लेकिन इसके बाद हर महीने तकरीबन 4.80 करोड़ रुपए चुकाने होंगे. जो वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए टेढ़ी खीर नजर आ रहा है.