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दलहन आयात खोलने का इफेक्ट: कमजोर पड़े दलहन के दाम, सरकारी खरीद पर बढ़ा रुझान...लेकिन सरसों की सरकारी खरीद अब तक जीरो

दलहन के आयात पर प्रतिबंध हटाने का असर किसान, बाजार और चने की सरकारी खरीद पर दिखने लगा है. सहकारिता विभाग द्वारा सरसों और चने की खरीद जारी है लेकिन अबतक सूने पड़े सरकारी क्रय-विक्रय केंद्र धीरे-धीरे किसानों से आबाद होने लगे हैं. दलहन आयात की नीति का किसान बाजार और सहकारिता विभाग पर क्या पड़ा असर, देखें इस खास रिपोर्ट में...

government procurement of mustard
दलहन आयात खोलने का इफेक्ट

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Published : Jun 5, 2021, 8:18 PM IST

जयपुर: 15 मई को देश में दलहन के आयात से प्रतिबंध हटाने का नोटिफिकेशन निकाला गया तो किसानों ने इसका विरोध भी किया. दलहन का आयात भले ही अबतक शुरू ना हुआ हो लेकिन बाजार, किसान और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर होने वाली सरकारी खरीद पर इसका असर जरूर दिखने लगा है.

दहलन आयात होने से सरकारी खरीद बढ़ी

बाजार में 15 मई से पहले दलहन के जो भाव थे, उनमें पिछले एक पखवाड़े के दौरान काफी गिरावट आ गई है. आलम यह है कि जिन किसानों ने अपने चने की फसल एमएसपी (MSP) पर बेचने के लिए सहकारिता विभाग में रजिस्ट्रेशन कराया था, पहले वे अच्छे दाम मिलने के कारण बाजार में ही अपनी उपज बेच रहे थे. अब भाव गिरे तो उन्होंने एमएसपी पर अपनी उपज बेचने में रुचि दिखाना शुरू किया है.

दरअसल चने के बाजार मूल्य और एमएसपी ( MSP) पर खरीद के दामों में करीब 500 रुपये प्रति क्विंटल का अंतर है. इसका फायदा राजस्थान के केवल 25% किसान ही उठा पाएंगे, जिन्होंने एमएसपी पर खरीद के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराया है. बाकी 75% किसानों को तो कम दामों में ही अपनी उपज बाजार में बेचना होगी.

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मंडियों के व्यापार से जुड़े पदाधिकारियों का कहना है कि जिस प्रकार दलहन के आयात के मामले को हवा बनाया गया, उसके कारण चने, मूंग और उड़द के दामों में गिरावट आई. हालांकि सबसे ज्यादा गिरावट चने के दामों में आई जबकि उड़द और मूंग में बेहद कम गिरावट है.

कमजोर पड़े दहलन के दाम

राजस्थान खाद्य पदार्थ व्यापार संघ के अध्यक्ष बाबूलाल गुप्ता के मुताबिक सरकार जो भी नीति तय करती है, उसमें ना तो किसानों की राय ली जाती है और ना ही मंडियों का संचालन कर रहे व्यापारियों की. हमारे यहां 240 लाख टन दलहन की खपत है. पैदावार 236 लाख टन है. सरसों का बाजार मूल्य आज भी एमएसपी से ज्यादा है. लिहाजा किसान बाजार में ही अपनी सरसों की उपज बेच रहा है.

एक नजर मौजूदा एमएसपी और बाजार मूल्य पर

सरसों:- समर्थन मूल्य -4650 रुपए प्रति क्विंटल है जबकि बाजार में किसान को 7 हजार से लेकर 7400 रुपये तक प्रति क्विंटल सरसों का मूल्य मिल रहा है.

चना :- समर्थन मूल्य -5100 रुपए प्रति क्विंटल है लेकिन बाजार में किसान को 4600 रुपए प्रति क्विंटल तक चने का मूल्य मिल रहा है. जबकि 15 मई से पहले बाजार में इसके भाव 5800 प्रति क्विंटल तक थे.

सरसों बेचने नहीं आया किसान, अब बेच रहा चना

राज्य में सरसों और चने की समर्थन मूल्य पर खरीद के लिए 25 मार्च से ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन शुरू किया गया था. 1 अप्रैल से सरसों और चना खरीद भी प्रारंभ की गई. 29 जून तक यह खरीदी जारी रहेगी. सहकारिता विभाग में इस बार किसानों से समर्थन मूल्य पर चना की 6 लाख 14 हजार 900 मीट्रिक टन और सरसों की 12 लाख 22 हजार 775 मीट्रिक टन खरीदी का लक्ष्य रखा गया था लेकिन सरकारी खरीद शुरू होने के 2 माह गुजर जाने के बाद भी एक भी पंजीकृत किसान ने अपनी सरसों की फसल समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद केंद्र पर नहीं बेची. हालांकि अब किसानों ने एमएसपी पर चना देना शुरू कर दिया है. 15 मई के बाद सहकारिता विभाग के खरीद केंद्रों पर पंजीकृत किसानों ने आना शुरू किया और 31 मई तक 4555.07 मीट्रिक टन चने की सरकारी खरीद राजस्थान में हो चुकी है.

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सरसों और चना की सरकारी खरीद के लिए पंजीकृत हुए किसानों की संख्या

सरसों :- समर्थन मूल्य पर सरसों की खरीद के लिए वर्तमान में 2188 किसानों ने ही अपनी उपज बेचने के लिए सहकारिता विभाग में रजिस्ट्रेशन कराया है जबकि इस बार 12 लाख 22 हजार 775 मीट्रिक टन सरसों की खरीद का लक्ष्य रखा गया है.

सरसों की खरीद अब तक जीरो

चना :- समर्थन मूल्य पर चना की खरीद के लिए वर्तमान में 80 हजार 690 किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया है जबकि इस बार 6 लाख 14 हजार 900 मीट्रिक टन चने की खरीद का लक्ष्य रखा गया है.

बहरहाल प्रदेश में सहकारिता विभाग ने सरसों और चने के लिए 674- 674 खरीद केंद्र बनाए हैं. सरकारी स्तर पर समर्थन मूल्य पर खरीद का यह काम 29 जून तक चलेगा. लेकिन जिस तरह बाजार में सरसों के बढ़े हुए दाम किसानों को मिल रहे हैं, उसके बाद ही निश्चित हो गया है कि इस बार राजस्थान में समर्थन मूल्य पर किसान अपनी सरसों की उपज सरकार को नहीं बेचेगा. हालांकि चने के बाजार मूल्य कम होने के कारण राजस्थान में चने की सरकारी खरीद का लक्ष्य जरूर पूरा हो सकता है.

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