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भाजपा प्रदेशाध्यक्ष ने स्वीकारा यह बड़ा कड़वा सच, निकाय जैसे छोटे चुनाव में अनुशासन की अपेक्षा नहीं की जा सकती : पूनिया

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने भी मान लिया है की इस छोटे चुनाव में किसी भी दल में कार्यकर्ताओं से अनुशासन और वफादारी की अपेक्षा नहीं की जा सकती है. वहीं पार्षदों की बाड़ेबंदी के मामले में भी पूनिया ने सवालों के बेबाकी से जवाब दिए.

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Published : Nov 21, 2019, 2:40 PM IST

जयपुर. निकाय चुनाव परिणाम आने के बाद अब निकायों में बोर्ड और प्रमुख बनाने के लिए जोड़-तोड़ की गणित शुरू हो गई है. कहीं बाडेबंदी हो रही है, तो कहीं राजनीतिक दल एक-दूसरे के विजेता पार्षदों पर डोरे डाल रहे हैं.

सतीश पूनिया ने स्वीकारा यह बड़ा कड़वा सच

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने भी मान लिया है की इस छोटे चुनाव में किसी भी दल में कार्यकर्ताओं से अनुशासन और वफादारी की अपेक्षा नहीं की जा सकती है. वहीं पार्षदों की बाड़ेबंदी के मामले में भी पूनिया ने सवालों के बेबाकी से जवाब दिए.

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पार्षद चुनाव के रिजल्ट आने के बाद अब भाजपा और कांग्रेस निकाय प्रमुख और बोर्ड बनाने में जुटी है, लेकिन इस बीच अनुशासित पार्टी का दम भरने वाली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने एक कड़वा सच स्वीकार किया है. उन्होंने यह मान लिया कि भाजपा के कुछ पार्षद कांग्रेस में जा सकते हैं क्योंकि इस छोटे चुनाव में अनुशासन की उम्मीद किसी भी राजनीतिक दल में कार्यकर्ताओं से करना बेमानी होगा. पूनिया के अनुसार भाजपा से भी कई कांग्रेसी और निर्दलीय पार्षद संपर्क में मतलब बोर्ड और निकाय प्रमुख बनाने के लिए पार्षदों का दल बदल करना तय है.

छोटे चुनाव में अनुशासन की उम्मीद ना करने की बात तो पूनिया ने मानी ही, साथ ही यह भी मान लिया कि भाजपा ने निकायों के स्तर पर अपने विजयी पार्षदों को एक स्थान पर एकत्रित कर रखा है. हालांकि सतीश पूनिया इसे पार्षदों की बाड़ेबंदी नहीं मानते है. उनके अनुसार इस तरह के क्रियाकलाप अब सभी राजनीतिक दलों में होने लगे हैं.

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इस दौरान जब पूनिया से बाड़ेबंदी के नाम पर पार्षदों पर होटलों में रुकने और इस पर होने वाले खर्चे को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने यह खर्चा वहन करने वाले नेता और पार्टी पदाधिकारियों की संख्या गिना डाली.

खैर, जो बात पूनिया ने कही वो सच्चाई के कितने करीब है, ये तो पार्टी प्रदेशाध्यक्ष ने मौजूदा स्थिति को देखते हुए भांप लिया होगा. लेकिन जिस बेबाकी से अनुशासित पार्टी के मुखिया ने इस चुनाव में पार्टी की स्थिति सामने रखी है, उससे तय है कि निकायों में बोर्ड और प्रमुख बनाने के लिए दोनों ही प्रमुख दल सियासी लाभ के लिए अनुशासन को दरकिनार सारी हदें पार कर सकते हैं.

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