जयपुर. कोरोना वायरस महामारी से बचाव के लिए पीएम मोदी ने 25 मार्च से लॉकडाउन की घोषणा कर दी. लेकिन अचानक लगाया गए इस लॉकडाउन ने पूरे देश को उलट-पलट कर रख दिया. सबसे ज्यादा अगर किसी पर इसका असर हो रहा है तो वे हैं देश के किसान और दिहाड़ी मजदूर. इन मजदूरों को अब खाने तक के लाले पड़ गए हैं. ऐसे ही कुछ मजदूरों की स्थिति जानने ईटीवी भारत की टीम शहर से सटे श्री किशनपुरा गांव पहुंची. जहां लावणी करते हुए किसान यानी फसल काट रहे खेतिहर मजदूरों से हमने बातचीत की.
लॉकडाउन में परेशान खेतीहर मजदूर घर का खर्च चलाना हुआ मुश्किल
दिहाड़ी मजदूरों के मुताबिक बाहर काम मिलना बंद क्या हुआ. उन्हें औने-पौने दाम पर खेतों में आकर काम करना पड़ रहा है. इन मजदूरों के मुताबिक उन्हें रोजाना 500 रुपए मिल जाया करते थे. लेकिन अब खेतों में महज 250 से 300 रुपए ही मिल पाता है. ऐसे में हर दिन घर का खर्च चलाना भी मुश्किल हो गया है. यहां पर सरकार की ओर से खाने की व्यवस्था कराने के सारे वादे झूठे साबित हो रहे हैं.
खेतों में लावणी का काम करती महिला नहीं मिल रही कोई सरकारी सुविधा
दिहाड़ी मजदूरों के मुताबिक शहर में ना जाने कितने स्कीमों की बात सरकार करती है. लेकिन हम तक ऐसी कोई भी सुविधा नहीं पहुंच रही है. ना तो यहां अभी तक कोई उनके हालात जानने पहुंचा है और ना ही उन तक कोई राशन पहुंचानें वाला आया.
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इन मजदूरों के मुताबिक उन्हें यह भी पता नहीं है कि लॉकडाउन कब तक चलेगा और उन पर कब तक तंगहाली के बादल मंडराते रहेंगे. उस पर पशोपेश यह भी है इस कल को अगर फाकाकशी के हालात हुए, तो क्या किसी रहनुमा की उन पर नजर पड़ेगी. खेतिहर मजदूरों की ख्वाहिश यही है कि जल्द से जल्द सबकी बेहतर सेहत के साथ हालात पटरी पर लौट आए, तो उनके अच्छे दिनों की तस्वीर साकार होगी.
नहीं मिल रही कोई सरकारी सुविधा कब छटेंगे संकट के बादल
लॉकडाउन की समय अवधि को लेकर कई तरह के विचारों के बीच इन किसानों के लिए यह सबसे बड़ा सवाल है कि कब बेहतर होकर तस्वीर पहले वाला रूप लेगी. कब मजदूरों को दैनिक काम मिलेगा और क्या बाजार पर कोई आर्थिक संकट के बादल होंगे या एक उजली तस्वीर भी सामने आएगी. फिलहाल सब एक होकर कोरोना के इस महा संकट से उबरने की कोशिश कर रहे हैं.