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रियलिटी चेक: 'खाना तो मिलता है, लेकिन पेट नहीं भरता'...सोशल डिस्टेंसिंग की भी उड़ रहीं धज्जियां

लॉकडाउन के बाद कई लोगों के सामने काफी मुश्किलें आ गई हैं. उन लोगों के सामने ज्यादा दिक्कतें आईं हैं, जो अपने घर से दूर किसी अनजान शहर में मजदूरी करने के लिए गए थे और अपने घर न पहुंच सके. ऐसे लोगों को सरकारी स्तर पर रोकने के प्रयास तो हुए, लेकिन खुद सरकार की व्यवस्थाएं ही नाकाफी नजर आ रही हैं.

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रैन बसेरे में नहीं कोई इंतजाम

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Published : Apr 17, 2020, 8:12 PM IST

बीकानेर. लॉकडाउन के बाद दूसरे राज्यों में मजदूरी करने के लिए गए उन लोगों के सामने अधिक संकट गहरा गया है. इसको लेकर सरकार ने एक बार तो छूट दे दी. लेकिन बाद में सभी राज्यों की सीमाओं को सील कर दिया, जिसके चलते अब ऐसे लोग अपने घर से दूर फंसे हुए हैं. इन लोगों के लिए सरकारी स्तर पर कुछ व्यवस्थाएं भी की गईं हैं.

रैन बसेरे में नहीं कोई इंतजाम

वहीं नगर निगम क्षेत्र के रैन बसेरों में भी ऐसे लोगों को रोका गया है. लेकिन इन शेल्टर होम्स की हालात बहुत खराब है, जिस कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग की बात सरकार कह रही है. वह सोशल डिस्टेंसिंग भी यहां नजर नहीं आ रही. बीकानेर नगर निगम के श्रीगंगानगर रोड पर निजी बस स्टैंड के पीछे बने ऐसे ही एक आश्रय स्थल पर ईटीवी भारत की टीम पहुंची और हालातों का जायजा लिया.

जब पहुंची ईटीवी भारत की टीम...

इस शेल्टर होम्स के रिकॉर्ड में कुल 53 लोग ठहरे बताए गए. लेकिन मौके पर यहां 43 लोग ही मिले. ये लोग लॉकडाउन के चलते अपने घर नहीं जा सके, यहां रहे लोग करीब 20 दिन से यही पर हैं. वहीं करीब 14 लोग देर रात ही यहां पहुंचे और बीकानेर के किसी गांव से अपने घर हरियाणा और पंजाब जा रहे इन लोगों को रास्ते में पुलिस ने पकड़ लिया और इनकी सुबह स्क्रीनिंग करवाने और भोजन व्यवस्था होने की बात कहकर यहां छोड़ दिया.

सोशल डिस्टेंसिंग की भी उड़ रही धज्जियां

नहीं ले रहा कोई सुध...

छोटे बच्चों के साथ आए इन लोगों का कहना है कि अभी तक कोई हमारी सुध लेने नहीं आया और न ही हमारी कोई जांच हुई है. वहीं करीब 20 दिन से यहां रह रहे लोगों में से अधिकतर बिहार के हैं. मजदूरी की तलाश में यहां आए लोगों का कहना था कि हम लॉकडाउन से तीन दिन पहले ही आए थे. लेकिन लॉकडाउन के चलते रोजगार भी नहीं मिला और अब गांव भी नहीं जा सकते. इन लोगों ने अपने गांव जाने की बात कही. शेल्टर होम की व्यवस्था के सवाल पर इन लोगों का कहना था कि खाना दोपहर में बड़ी देर से आता है और वो भी पूरा नहीं आता. रहने की परेशानी को लेकर एक युवा ने कहा कि सरकार सोशल डिस्टेंसिंग की बात कहती है और हमें दो व्यक्तियों को एक पलंग पर सोना पड़ता है.

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वहीं शेल्टर होम की ठेका कम्पनी के कर्मचारी ने खाना कई बार लेट आने की बात कहते हुए कहा कि खाना तो पूरा आता है. लेकिन इन लोगों की खुराक ज्यादा है. कुल मिलाकर शेल्टर होम में दो कमरों में लगे पलंग और वहां मौजूद लोग जिस तरह से एक दूसरे से सटे हुए बैठे नजर आए. वह इस बात की तरफ साफ इशारा कर रहा है कि यहां रहने वाले लोगों के लिए पूरी व्यवस्था ही नहीं है.

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ऐसे में सवाल इस बात का है कि जिस संक्रमण की चेन को तोड़ने के लिए सरकारों ने राज्यों की सीमाओं को सील किया है. लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं जाने दे रहे हैं. वहीं दूसरी ओर इस शेल्टर होम की तरह होने वाली व्यवस्थाएं निश्चित रूप से कोरोना के संक्रमण के चेन को तोड़ने में सहायक होती नजर नहीं आ रही है.

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