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टूटी 165 साल पुरानी परंपरा...भगवान जगन्नाथ नहीं करेंगे रथ यात्रा - भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा

अलवर में हर साल आषाढ़ शुक्ल नवमी को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है. जिसमें इलाकों के आस-पास के हजारों लोग शामिल होते हैं. इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ जी का विवाह जानकी जी के साथ होता है. जिसके लाखों लोग साक्षी बनते हैं, लेकिन इस बार देश में फैले कोरोना संक्रमण के कारण ये यात्रा नहीं निकाली जाएगी. हालांकि अभी इस मामले पर मंदिर प्रशासन और जिला प्रशासन की अंतिम मीटिंग बाकी है.

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अलवर में नहीं निकलेगी 165 साल पुरानी रथ यात्रा

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Published : Jun 13, 2020, 12:10 PM IST

अलवर.जिले में हर साल भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है. हर साल यात्रा में हजारों संख्या में लोगों की भीड़ शामिल रहती है. ढ़ोल नगाड़ों के साथ निकलने वाली रथ यात्रा के दौरान लोग नाचते गाते हुए शामिल होते हैं. इस यात्रा में हर साल भगवान के विवाह की प्रकिया होती है. जिसमें भगवान जगन्नाथ जी का विवाह जानकी जी से होता है, लेकिन इस बार इस यात्रा पर भी कोरोना का खतरा मडंरा रहा है.

अलवर में नहीं निकलेगी 165 साल पुरानी रथ यात्रा

अलवर में इस बार 165 साल पुरानी भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा नहीं निकलेगी. बिना रथ यात्रा के भगवान जगन्नाथ का जानकी जी से विवाह होगा. जगन्नाथपुरी के बाद देश में सबसे लोकप्रिय और पुरानी रथ यात्रा अलवर में भगवान जगन्नाथ की निकलती है. इसमें पूरे जिले और आस-पास के क्षेत्र के लाखों लोग साक्षी बनते हैं. हर साल की तरह इस बार भी भगवान के विवाह की प्रक्रिया होगी, लेकिन वो बिना ढोल नगाड़ा और लोगों के होगी. अलवर सहित पूरे प्रदेश में सरकार ने 30 जून तक मंदिरों को बंद रखने के आदेश दिए हैं. हालांकि मंदिर प्रशासन और जिला प्रशासन की अंतिम मीटिंग होना अभी बाकी है.

अलवर में हर साल आषाढ़ शुक्ल नवमी को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकलती है. इंद्र विमान में सवार होकर भगवान जगन्नाथ जानकी जी विहाने के लिए शहर का भ्रमण करते हुए मेला स्थल पहुंचते हैं. 2 दिनों तक वहां मेला भरता है. इस बीच भगवान जगन्नाथ और जानकी जी से विवाह होता है. उसके बाद भगवान जानकी जी के साथ वापस रथ में सवार होकर मंदिर लौटते हैं. इस विवाह की पूरी प्रक्रिया में सभी तरह की विवाह के दौरान होने वाली सभी रस्म अदा की जाती है.

मंदिर में पूजा करते महंत

29 जून को निकलेगी जगन्नाथ की रथ यात्रा...

इस बार 29 जून को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा रूपबास के लिए निकलनी थी. जबकि 28 जून को सीता राम जी की सवारी निकलना पहले से तय था. अब बिना सवारी के ही भगवान को चुपचाप रूपबास मंदिर ले जाया जाएग. जहां भीड़ की अनुमति नहीं होगी. विवाह तय शुदा तारीख पर कुछ लोगों की मौजूदगी में होगा. उसके साथी यहां भरने वाले मेले पर रोक रहेगी. ऐसा पहली बार होगा जब 165 सालों में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा नहीं निकलेगी.

अलवर के पुराना कटरा स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर करीब ढाई सौ साल पुराना है. इस मंदिर से करीब 165 साल से भगवान जगन्नाथ की यात्रा निकल रही है. भगवान जगन्नाथ की यात्रा उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर निकाली जाती है, लेकिन पुरी में भगवान जगन्नाथ जानकी जी के साथ शहर के भ्रमण पर निकलते हैं. जबकि अलवर में भगवान का विवाह जानकी जी से होता है. अलवर में मालाखेड़ा और राजगढ़ में भी दोज को यात्रा निकलती है.

मंदिर पड़ा खाली

भगवान जगन्नाथ और जानकी जी का होता है विवाह...

बता दें कि रथ यात्रा के साथ ही हिंदू परंपरा के अनुसार भगवान जगन्नाथ और जानकी जी का विधि-विधान के साथ विवाह होता है. इसमें भगवान को कंगन डोरा, मेहंदी की रस्म, भात, विवाह संस्कार सभी कराए जाते हैं. विवाह का योग 15 दिन तक चलता है. इंद्र विमान में भगवान की शोभा यात्रा निकलती है, जो प्रमुख शेयर बाजारों से होती हुई रूपबास स्थित मंदिर पर पहुंचती है.

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जगन्नाथ रथ यात्रा मेले पर कोरोना की मार...

अलवर सहित पूरे प्रदेश में 30 जून तक मंदिर बंद है. ऐसे में जगन्नाथ रथयात्रा मेले पर कोरोना की मार पड़ती हुई दिखाई दे रही है. हालांकि मंदिर के महंत पंडित देवेंद्र शर्मा ने बताया कि प्रशासन और मंदिर समिति के पदाधिकारियों के बीच अभी अंतिम बैठक होना बाकी है, लेकिन प्रशासन के आदेश अनुसार पूरी प्रक्रिया होगी. जिस तरह के निर्देश मिलेंगे उनका पूरा पालन कराया जाएगा.

कोरोना के चलते नहीं निकलेगी जगन्नाथ यात्रा

रथ यात्रा के मेले में आते हैं लाखों लोग...

अलवर में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा देखने के लिए अलवर सहित आस-पास के जिलों से भी लाखों लोग अलवर आते हैं. वहीं मेले में राजस्थान, हरियाणा, पंजाब सहित कई राज्यों से लोग शामिल होते हैं. अलवर की जगन्नाथ यात्रा का मेला देश में जगन्नाथ पुरी के बाद दूसरी सबसे बड़ी यात्रा है.

पुराना है इतिहास...

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा इंद्र विमान में निकलती है. ये विमान अलवर के राजा जयसिंह ने दिया था. जबकि इससे पहले रथ यात्रा मंदिर की ओर से तैयार कराए गए एक विमान में निकलती थी. करीब 125 साल पहले अलवर के राजा ने अपना अभिमान भगवान जगन्नाथ को पेश किया था.

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