अजमेर. जिले में सिलिकोसिस मरीजों को उनके हक की मुआवजा राशि नहीं मिल रही है. सिलिकोसिस मरीजों के लिए काम करने वाले मजदूर-किसान संगठन का दावा है कि जिले के 600 सिलिकोसिस मरीज हैं, जिन्हें प्रवधानों के तहत पूरा मुआवजा नहीं मिला है.
अजमेर में मुआवजे के लिए भटक रहे सिलिकोसिस पीड़ित गौरतलब है कि खनन क्षेत्रों में कार्य करने वाले श्रमिक सिलिकोसिस बीमारी की चपेट में आते हैं. सरकार ने सिलिकोसिस मरीजों की सहायता के लिए मुआवजे का प्रवधान भी किया है, लेकिन सिलिकोसिस मरीजों के लिए बनी गाइडलाइंस स्पष्ठ नहीं होने से पीड़ित एवं मृतकों के परिजन सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते रहते हैं. अजमेर जिले में सिलिकोसिस पीड़ित मरीजों को मुआवजा राशि पाने के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है. इनमें कई मरीज ऐसे हैं, जिन्हें 3 साल से भी अधिक का समय मुआवजा राशि पाने के लिए संघर्ष करने में बीत चुका है.
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वहीं, कुछ मरीज ऐसे हैं, जिन्हें जिंदा रहते तो मुआवजा राशि मिल गई. लेकिन, मौत के बाद उनके परिजनों को मुआवजा कई वर्षों से नहीं मिला है. मजदूर-किसान संगठन से जुड़े नोरत मल बताते हैं कि सिलिकोसिस मरीज के लिए सरकार ने पॉलिसी तो बना दी है. पॉलिसी को लागू करने के लिए गाइडलाइंस स्पष्ट नहीं की गई है. इस कारण सिलिकोसिस मरीज या मृतक आश्रित को मुआवजा राशि लेने में काफी अड़चनों का सामना करना पड़ता है.
मरीज नंदराम बताते हैं कि तीन वर्षों से वो सिलोकोसिस मरीज हैं. इसका प्रमाण पाने और मुआवजा राशि के लिए चक्कर लगा रहे हैं. उन्होंने बताया कि दस्तावेज जुटाने के बाद भी उन्हें सहायता राशि नही दी जा रही है. वहीं, एक मृत आश्रित बताते हैं कि उनकी पत्नी को सिलिकोसिस बीमारी थी. उस वक्त एक लाख रुपये मुआवजा राशि मिली. बीमारी के डेढ़ वर्ष बाद पत्नी की मौत हो गई. इसके बाद भामाशाह कार्ड से पत्नी का नाम हटा दिया गया. अब कहा जा रहा है कि भामाशाह कार्ड में पत्नी का नाम जुड़वाएं. पत्नी की मौत हो चुकी है, ऐसे में ऑनलाइन उसका नाम कैसे जुड़वाया जा सकता है.
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गौरतलब है कि सिलोकोसिस बीमारी होने के बाद मरीज मौत के करीब होता है. ऐसे में उसकी तकलीफें और बढ़ जाती है. वहीं, मुआवजे के लिए उसे दर-दर भटकना पड़ता है.