अजमेर. यूं तो ब्रह्मनगरी पुष्कर (atmteshwar mahadev of pushkar) में साल भर भक्तों का मेला लगता है लेकिन सावन में संख्या और बढ़ जाती है. खासतौर पर अटमटेश्वर महादेव के दर्शनार्थ लोग खिंचे चले आते हैं. इस मंदिर की अपनी कहानी, अपना खूबसूरत इतिहास है. यहां स्वयंभू भोले बाबा धरती से 15 फुट नीचे बिराजे हैं. वराह घाट के नजदीक ही प्राचीन अटमटेश्वर महादेव का मंदिर है.मंदिर के ठीक ऊपर महादेव का एक और मंदिर है जो सर्वेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हैं.
अनादि काल से कहा जाता रहा है कि भगवान की लीला अकारण नहीं होती. उनके हरेक कार्य में रहस्य छीपा होता है. सुधिजन या गुरु के ज्ञान से वो भेद खुलता है तो भक्त तर जाता है. पुष्कर में अपनी गलती को सुधारने का प्रयास जगतपिता ब्रह्मा ने भी किया. मानवजाति को एक सबक दिया कि अपने दोष को स्वीकार कर उसको सुधारना सहज प्रक्रिया है, जितनी जल्दी अपनी भूल का मनुष्य प्रायश्चित करले उतनी जल्दी ही कल्याण का भागी होता है. आखिर ब्रह्माजी ने ऐसा किया कि भगवान अटपटे रूप में यहीं के होकर रह गए?
बिन भोले सब सून: तीर्थ गुरु पुष्कर को जगतपिता ब्रह्मा की नगरी माना जाता है. इस तपोभूमि के दर्शन के लिए लोग विदेशों से भी आते हैं. आस्था की डुबकी लगाते हैं और चले जाते हैं. लेकिन ये कम ही लोग जानते हैं कि तीर्थ गुरु पुष्कर सरोवर में स्नान के बाद जगतपिता ब्रह्मा के दर्शन करने से पहले उन्हें महादेव के इस स्थान के दर्शन करना जरूरी होता है. अन्यथा पुष्कर तीर्थ का फल यात्री को नही मिलता. इसके पीछे कारण भी है. कहानी जगतपिता के सृष्टि रचना यज्ञ से लेकर नर मुंड तक की है!
अटमटेश्वर महादेव की विचित्र लीला: पुष्कर के पवित्र सरोवर में वराह घाट के प्रधान पंडित रवि शर्मा बताते हैं- जगतपिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना से पहले यज्ञ किया था. यज्ञ में सभी देवी देवताओं का आह्वान किया गया था. लेकिन महादेव को आमंत्रित करना ब्रह्मा देव भूल गए. उनके लिए यज्ञ में उचित स्थान भी नहीं रखा गया. इससे भोले बाबा नाराज हो गए और उन्होंने विचित्र लीला रच डाली. यज्ञ में शामिल होने के लिए महादेव एक हाथ में खप्पर और दूसरे हाथ में कपाल (नरमुंड) लेकर पहुंच गए. अटपटे रूप में महादेव को कोई नही पहचान सका. यज्ञ स्थल के मुख्य द्वारपाल इंद्र और कुबेर ने विचित्र रूप धारी महादेव को रोक दिया. यज्ञ में शामिल विप्रजन ने भी विरोध करते हुए कहा कि तामसी वस्तुओं और अघोर वेष में यज्ञ में शामिल नही हुआ जा सकता. इस पर महादेव ने कपाल यज्ञ स्थल के बाहर रखा और खुद सरोवर में स्नान के लिए चले गए.
कपाल को देख एक विप्र ने डंडे से उसे दूर फेंक दिया. इसी तरह कपाल को डंडे से लोग आगे फेंकते रहे. जितनी बार भी कपाल को फेंका गया उतने ही कपाल प्रकट होते गए. हालात ऐसे बन गए कि पुष्कर में जहां देखो वहां कपाल नजर आने लगे बल्कि यज्ञ स्थल पर भी कपाल ही कपाल हो गए. पंडित शर्मा बताते है कि यज्ञ स्थल श्मशान सा प्रतीत होने लगा और हर तरफ कपाल से भय उत्पन्न हो गया. यज्ञ में मौजूद देवता और विप्र किसी मायावी का कृत्य मान रहे थे. किसी को समझ नही आ रहा था आखिर यह सब क्यों हो रहा है. जगतपिता ब्रह्मा जी ने जब ध्यान लगाकर देखा तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि यह महादेव की लीला है. ब्रह्मा जी को अपनी भूल का भान हो गया और उन्होंने चंद्रशेखर स्त्रोत गाकर महादेव को प्रसन्न किया. तब जाकर कपाल गायब हुए.