शहडोल। मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले शहडोल में कई अलग-अलग ऐसी अनोखी परंपराए हैं जो काफी अद्भुत हैं, जिनके बारे में जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे. दिवाली के समय में एक ऐसी ही आदिवासियों की परंपरा मौनी व्रत की है.जिसमें आदिवासी एक अजब गजब तरीके से व्रत को पूरा करते हैं. परंपरा के अनुसार मौन व्रत रहना गाय के बछिया की पूजा करना फिर गाय की तरह ही चार पैर बनाकर बिना हाथ के इस्तेमाल से मुंह से भोजन करके व्रत तोड़ने की काफी अनोखी परंपरा है.
आदिवासियों की अद्भुत परंपरा मौनी व्रत
मौनी व्रत आदिवासियों की एक ऐसी परंपरा है जो वाकई अद्भुत है. जिसमें अजब गजब अंदाज भी हैं. छल्कू बैगा जो कभी अपने समय में मौनी व्रत किया करते थे वह बताते हैं कि अब तो बहुत कुछ बदल गया है. लेकिन जब उनके जमाने में मौनी व्रत हुआ करता था तो काफी नियम से होता था और बहुत कुछ होता था छल्कू बैगा का कहना है कि मौनी व्रत में जो भी आदिवासी वर्ग या जो भी लोग मौनी व्रत करने का संकल्प लेता है, वो फिर 7 साल तक लगातार व्रत रहता है. तभी उस व्रत का पुण्य माना जाता है.
आदिवासियों की अनोखी परंपरा लड़कियों के वस्त्र पहनने पड़ते हैं
इस मौनी व्रत में एक और बात जो काफी अलग होती है जो व्यक्ति इस मौनी व्रत को करता है. वह उस दिन महिलाओं के वस्त्र धारण करता है फिर चाहे साड़ी पहने या फिर आम लड़कियों की तरह सलवार सूट पहने, सुबह से ही व्रत की शुरुआत हो जाती है. जिसमें गांव में ही एक स्थल बनाया जाता है. जहां पर केले के पत्ते से सजाया जाता है और वहां पर एक गाय के छोटे बच्चे की पूजा की जाती है उसे फूल माला पहनाई जाती है और उस मंडप में गौ लक्ष्मी की पूजा होती है.
आदिवासियों की अनोखी परंपरा 24 घंटे नहीं बोलने की परंपरा
कहा जाता है कि जिस गाय की बछिया की पूजा की जाती है उसे माला पहनाया जाता है और चंदन टीका किया जाता है. इसके बाद जो भी लोग व्रत रहते हैं उस गाय की बछिया के पैर के नीचे से 7 बार फेरे लगाते हैं, उसके चारों पैर को पखारते हैं, और फिर वहीं से व्रत की शुरुआत हो जाती है, जिसमें दिनभर वह जंगल में जाकर गायों को चराते हैं उस पूरे दिन 24 घंटे तक वह किसी से बोलेंगे नहीं.
24 घंटे नहीं बोलने की परंपरा व्रत में 14 लोगों का होता है जोड़ा
मुन्ना बैगा जो खुद मौनी व्रत के जानकार हैं कई सालों तक इस व्रत को करते आये हैं वो बताते हैं कि इस व्रत को जोड़ें में जोड़ीदार के साथ ही किया जाता है, मतलब एक और साथी तैयार करना पड़ता है और इस व्रत को पुरुष वर्ग ही करता है, जिसे जोड़ीदार को आदिवासी भाषा में जोटटी बोला जाता है और 7 लोगों की जोड़ी मतलब 14 लोग ज्यादा जोड़ीदार भी हो सकते हैं, अपने जोड़ीदार के साथ ही व्रत की शुरुआत करते हैं और जोड़ीदार के साथ ही पूरा करते हैं. और जो एक बार इस व्रत को करता है वह 7 सालों तक लगातार इस व्रत को करता है. मौनी व्रत करने वाले लोग सुबह 4 बजे से ही उठकर पूजा पाठ शुरू कर देते हैं और काफी उत्साह के साथ करते हैं.
गाय के बछिया के नीचे से निकलते लोग सदियों से है परंपरा
पिछले कई साल मौनी व्रत रख चुके रद्दु बैगा बताते हैं कि वह तो कई सालों तक मौन व्रत रहे और काफी उत्साह के साथ रहे और आज भी जब कहीं मौनी व्रत कोई रहता है या कार्यक्रम होता है तो वहां वह पहुंचते हैं. इस व्रत को तोड़ने की परंपरा भी बिल्कुल अलग है. इसमें दिन भर जो भी व्यक्ति व्रत रखता है वह मौनी व्रत का पालन करता है. आज के समय में अब बहुत कम लोग मौनी व्रत नहीं कर रहे हैं, लेकिन सदियों से लोग करते आ रहे हैं.
आदिवासियों की अद्भुत परंपरा मौनी व्रत आधुनिकता के दौर में लोग भूल रहे हैं पंरपरा
हालांकि इस मौनी व्रत की परंपरा पर युवाओं का रुझान क्यों ज्यादा नहीं है इसके बारे में जब आदिवासी समाज के कुछ बुजुर्गों से बात की गई तो उनका कहना था कि आज का युवा आधुनिकता के दौर में आधुनिकता का शिकार हो रहा है. युवा मोबाइल खरीदना पसंद करेगा लेकिन अपनी पुरानी परंपराओं को रीति-रिवाजों को अपनाना पसंद नहीं कर रहा है. इसके साथ ही नशे के गिरफ्त में भी युवा काफी तेजी से बढ़ता जा रहा है. जिसमें फंसता जा रहा है जिसके चलते इस तरह के रीति-रिवाजों में उसका ध्यान नहीं रहता है.