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सावन में करें 10वीं सदी की शिवलिंग के दर्शन, जहां पांडवों ने की गुप्त साधना

अगर आप शिव भक्त हैं और अगर सावन के इस महीने में पातालेश्वर स्वरूप में विराजे भगवान शिव के दर्शन नहीं किए तो फिर क्या किए ईटीव्ही भारत लगातार सावन के इस महीने में आपको अलग-अलग भगवान शिव के दर्शन करा रहा है.

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Published : Jul 26, 2020, 6:30 PM IST

10th century shivling
पातालेश्वर महादेव

शहडोल। सावन के चौथे सोमवार को अगर आपका प्लान किसी शिवालय में जाकर शिव जी के दर्शन करने का है, तो इस बार आप बूढ़ी माता मंदिर परिसर में ही पातालेश्वर स्वरूप में विराजे भगवान भोलेनाथ के दर्शन करें कहते हैं, श्रावण मास में यहां विराजे भगवान शिव के दर्शन मात्र से ही सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है.

10वीं सदी की शिवलिंग

बताया जाता है कि पातालेश्वर स्वरूप में विराजे भगवान शिव की यह शिवलिंग करीब 10 वीं सदी की है और यहां पर जिस तरह का दृश्य दिखाई देता है उसे देखकर यही लगता है ऋषि मुनियों का साधना स्थल रहा है. इस शिवलिंग को लेकर कई कहानियां हैं.

शहडोल संभाग में पर्यटन और अद्भुत देव स्थलों की कमी नहीं है, आप यहां जिस दिशा में भी जाएंगे आपको अद्भुत और अलौकिक देव स्थल मिल जाएंगे. बूढ़ी माता मंदिर परिसर में स्थित पातालेश्वर शिव का मंदिर भी उन्हीं स्थानों में से एक है यहां मौजूद शिवलिंग अद्भुत, आलौकिक, चमत्कारी और साथ ही प्राचीन भी है. इस स्थान को ऋषि मुनियों की तपस्थली भी कहा जाता है.

पतालेश्वर का मंदिर

शहडोल महज कुछ किलोमीटर में ही शहडोल उमरिया बॉर्डर पर स्थित है, बूढ़ी माता मंदिर और इसी जगह पर स्थित है पातालेश्वर भगवान शिव का शिवलिंग, जिसकी भव्यता देखकर ही आपका मन मोहित हो जाएगा और यहां किसी दिव्य स्थान की अनुभूति होने लगेगी.

हमेशा लिपटे रहते थे नागदेव

मंदिर के पुजारी नर्मदा प्रसाद कहते हैं कि ये मंदिर अद्भुत है, प्राचीन है और यहां विराजे शिव जी भी चमत्कारी हैं, वो कहते हैं पहले ये जगह बहुत खतरनाक थी क्योंकि यहां पर भगवान शिव के ऊपर अक्सर नाग लिपटा रहता था हालांकि अभी भी कभी कभी उनके दर्शन मंदिर के आस पास हो जाते हैं

मंदिर का गर्भगृह

गुप्त शिव मंदिर भी नाम

धार्मिक स्थलों के जानकार ज्योतिषाचार्य सुशील शुक्ला शास्त्री कहते हैं कि शिव मंदिर है को अज्ञात शिव मंदिर भी कहा जाता हैं, यहां जब राजा विराट की नगरी रहा करती थी उसी समय पांडव अज्ञातवास पर आए हुए थे. अज्ञातवास के दौरान यहां पांडवों ने एक गुफा बनाकर उसमें शिव जी की स्थापना की थी और गुप्तकाल के दौरान यहां रुककर शिव की गुप्त साधना की थी. कहा जाता है कि जो भी मनुष्य शिव मंदिर में जाकर दूध, दही, शक्कर, गंगाजल से विधिवत शिव जी को स्नान कराकर बेलपत्र अर्पण और ताली बजाकर पूजा करते तो उस पर शिवजी की विशेष कृपा होती है.

पातालेश्वर स्वरूप में हैं शिव

शहडोल संभाग के जानकार और पुरातत्वविद रामनाथ सिंह परमार कहते हैं कि शहडोल में सोहागपुर ऐतिहासिक है, इसी से लगा हुआ स्थान बूढ़ी माई का मंदिर है, जो कि एक शक्तिपीठ है. इस परिसर में एक खास शिवालय है, जिसमें शिव पातालेश्वर स्वरूप में विराजमान हैं. ये स्थान धरती की सतह से लगभग 10 से 15 फीट गहराई पर है. मंदिर का जहां तला आता है, उसमें शिवलिंग जलहरी के साथ स्थापित हैं जो कि 10वीं सदी की शिवलिंग जलहरी प्रतिमा है. पुरातत्वविद कहते हैं, यहां शिव का स्वरूप ब्रह्मांड के संरचना को दर्शाता है. अब इस मंदिर ने आधुनिक रूप ले लिया है. लेकिन पहले ये अपने प्राचीन स्वरूप में था, यहां पर मंदिर के आस-पास बिखरे हुए अवशेष से इस स्थान के विशेष साधना स्थल होने का पता चलता है.

अगर आप इस सावन के चौथे सोमवार को भगवान शिव के दर्शन करना चाहते हैं और इस कोरोनाकाल में कहीं दूर नहीं जा पा रहे हैं तो निराश न हों, इस पातालेश्वर शिवलिंग के दर्शन करें जो अपने आप में अद्भुत और दिव्यता से परिपूर्ण है. कहते हैं, यहां मांगी गई हर मुराद पूरी होती है. जनश्रुति के मुताबिक यहां पांडवों ने गुप्तकाल के दौरान गुप्त साधना की और ऋषि-मुनियों ने भी यहां शिव की आराधना की है. अगर आप शहडोल जिले से होकर गुजर रहे हैं तो बूढ़ी माता मंदिर के दर्शन जरूर करते हुए जाएं, क्योंकि यहां एक साथ कई देवों के दर्शन होंगे.

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