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रीवा : महाभारत में शल्यकर्णी के पौधे की औषधि से सैनिक के भरे थे घाव अब केवल रीवा में बचा है यह पौधा - रीवा

शल्यकर्णी दुर्लभ प्रजाति का पौधा है जिसका उपयोग घाव ठीक करने में किया जाता है. वन विभाग लगातार इसे को विकसित करने का प्रयास कर रहा है जिससे इसे जल्द औषधि के रूप में उपयोग लिया जा सके.

शल्यकर्णी दुर्लभ प्रजाति का पौधा

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Published : Nov 14, 2019, 11:41 PM IST

Updated : Nov 14, 2019, 11:59 PM IST

रीवा। घाव ठीक करने की दवा है शल्यकर्णी. शल्यकर्णी दुर्लभ प्रजाति का पौधा है जो अब सिर्फ रीवा में पाया जाता है. महाभारत युद्ध में इसका बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया था, उस दौरान तीर भाला और तलवार से घायल होने वाले सैनिकों का घाव ठीक करने के लिए इसका बड़ा उपयोग किया जाता था.

शल्यकर्णी दुर्लभ प्रजाति का पौधा
शल्यकर्णी औषधि के बारे में चरक संहिता में भी उल्लेख मिलता है. इसकी पत्तियां और छाल के रस को कपड़े में डुबोकर गंभीर घाव में बांध दिया जाता था जिसके चलते घाव बिना किसी चीर फाड़ के बाद आसानी से कुछ दिनों में भर जाता था. घाव भरने के लिए शल्यक्रिया में उपयोग किए जाने की वजह से इसका नाम शल्यकर्णी रखा गया है. रीवा में शल्यकर्णी के संरक्षण के लिए कई वर्षों से प्रयास चल रहे हैं यहां के सुईया पहाड़ में इसके कुछ पुराने पेड़ पाए गए थे जिनकी शाखाओं से नए पौधे अनुसंधान वृत्त की ओर से विकसित किए गए हैं. इसके अलावा जिले के ककरहती के जंगल में भी कुछ पौधे यहां पर लाए गए हैं लेकिन वर्तमान में केवल रीवा के वन अनुसंधान एवं विस्तार व्रत में ही इसे विकसित किया जा रहा है. वन विभाग लगातार इस को विकसित करने का प्रयास कर रहा है जिससे आने वाले समय में फिर से शल्यकर्णी का उपयोग औषधि के रूप में होने लगेगा.
Last Updated : Nov 14, 2019, 11:59 PM IST

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