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विश्व धरोहरों से समृद्ध रायसेन जिला

18 अप्रैल यानी आज के दिन विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है. इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि पूरे विश्व में मानव सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण के प्रति जागरूकता लाई जा सकें. इससे परिपूर्ण मधय प्रदेश का रायसेन जिला है, जहां ऐतिहासिक काल और मध्य काल में बनी रॉक पेंटिंग आज भी अपने मूल स्वरूप में विद्यमान है.

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Published : Apr 18, 2021, 12:28 PM IST

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विश्व धरोहरों से समृद्ध रायसेन

रायसेन। विरासतओं को संरक्षित करने के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए 18 अप्रैल को पूरे विश्व में धरोहर दिवस मनाया जाता है. इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य है कि पूरे विश्व में मानव सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण के प्रति चेतना जगाई जा सकें.

धरोहर यानी मानवता के लिए अत्यंत महत्व की जगह, जो आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए बचा कर रखी जाती है. उन्हें विश्व धरोहर के रूप में जाना जाता है. ऐसे महत्वपूर्ण स्थलों के संरक्षण की पहल संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय संगठन यूनेस्को ने सन् 1968 में की थी. इसके तहत सर्वप्रथम विश्व प्रसिद्ध इमारतों और प्राकृतिक स्थलों की रक्षा के लिए एक साझा विचार बनाया गया. फिर सन् 1972 में शुरू डेंट की राजधानी स्टॉकहोम में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान इन प्रस्तावों को संयुक्त राष्ट्र के सामने प्रस्तावित किया गया. इस दौरान विश्व के लगभग सभी देशों ने मिलकर ऐतिहासिक और प्राकृतिक धरोहर को बचाने की शपथ ली. इस तरह यूनेस्को वर्ल्ड हेरीटेज सेंटर का अस्तित्व प्रकाश में आया.

भारत के महत्वपूर्ण विश्व धरोहर स्थलों में मध्य प्रदेश का रायसेन ही एकमात्र ऐसा जिला है, जिसे दो विश्व धरोहर होने का गौरव प्राप्त है. रायसेन पूरा संप्रदा और शैल चित्रों से समृद्ध जिला है. जितनी बड़ी संख्या में रॉक शेल्टर और रॉक पेंटिंग यहां है. उतनी शायद देश के किसी अन्य कोनें में नहीं है. ऐतिहासिक काल और मध्य काल में बनी रॉक पेंटिंग आज भी अपने मूल स्वरूप में विद्यमान है.

विश्व धरोहरों से समृद्ध रायसेन

विशाल भू-भाग में फैले रॉक शेल्टर में बनी रॉक पेंटिंग को देखते हुए रायसेन को विश्व धरोहर की राजधानी भी कहा जा सकता है. विश्व धरोहर सांची बौद्ध स्तूप, भीमबेटका के साथ-साथ भोजपुर शिव मंदिर, रायसेन का किला, आशापुरी मंदिर, बौद्ध स्मारक, सतधारा सोनारी सहित अनेक रमणीय स्थल है.

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सांची बौद्ध स्तूप दुनिया भर में बौद्ध धर्म अलंबियों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है. पुरातत्व की दृष्टि से इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर में भी शामिल किया गया है. यहां कई बौद्ध स्मारक है, जो तीसरी शताब्दी से लेकर 12वीं शताब्दी के बीच के हैं. वहीं वर्ष 1989 में इसे यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल का दर्जा प्रदान किया गया था.

अप्रैल माह में यूनेस्को की टीम कर सकती है दौरा

दिसंबर 2020 में यूनेस्को द्वारा ओरछा और ग्वालियर को हिस्टोरिक अर्बन लैंड स्केप के लिए चयनित कर लिया गया. अब पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में ओरछा सहित ग्वालियर की सांस्कृतिक धरोहरों को शामिल किया गया है. इससे पहले यूनेस्को की टीम को हेरिटेज साइट्स का चुनाव करने के लिए शहर का दौरा करना था, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण दौरे को रद्द करना पड़ा. अब उम्मीद जताई जा रही है कि अप्रैल माह के अंत में टीम दौरा कर सकती है.

भीमबेटका
अब्दुल्लागंज शहर से नौ किलोमीटर दूर भीमबेटका पाषाण आश्रय स्थल स्थित है. भीमबेटका पाषाण आश्रय स्थल एक आर्कलॉजिकल साइट, पाषाण काल और भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीन जीवन दृष्टि को दर्शाने वाली जगह है. यहीं से दक्षिण एशियाई पाषाण काल की शुरुआत हुई थी. यहां पर स्थापित कुछ आश्रय होम ऐरैक्टस द्वारा 100000 साल पहले से बसे हुए हैं. भीमबेटका में पाई जाने वाली कुछ कलाकृतियां तो तकरीबन 30000 साल पुरानी है. यहां की गुफाएं हमें प्राचीन नृत्य कला का उदाहरण भी देती हैं. वर्ष 2003 में इन गुफाओं को वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया गया था.

वर्तमान परिवेश में कोरोना संक्रमण के चलते सांची और भीमबेटका सहित प्रदेश की तमाम हेरिटेज साइट को पर्यटकों के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है, जिससे इन स्थलों पर पर्यटकों की खासी कमी देखी जा सकती है. अपनी कला, संस्कृति और प्राकृतिक संपदा से समृद्ध हमारी यह विश्व धरोहर है. हमें विश्व में एक अलग पहचान प्रदान करती हैं.

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